May-June 2024_DA | Page 11

न तो संविधान बदलेंगे , न आरक्षण खतम करेंगे , लेकिन दलितों और पिछड़े वर्ग के मधय संघ और भाजपा नेताओं के पुराने बयान भुनाए गए , जिनमें आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही गई थी । इस प्रचार का वयापक असर हुआ और उत्ि प्रदेश , राजसथान और हरियाणा में भाजपा के बड़ा वोर् विपक्ष के पास चला गया ।
ग्ामीण षिेत्ों में पिछड़ी भाजपा
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को देश के ग्ामीण क्षेत्ों वाली 398 लोकसभा सीर् ( इसमें ओडिशा शामिल नहीं है ) में से 165 सीर् पर ही जीत मिली , जबकि 2019 में ग्ामीण क्षेत्ों की 236 सीर्ों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी । ग्ामीण क्षेत्ों वाली 71 सीर्ों का नुकसान भाजपा के लिए भारी पड़ा । हालांकि भाजपा नेताओं ने मोदी सरकार की उपलसबधयों के साथ ही गरीब , दलित , पिछड़ी जनता के लिए किए गए कामों को जोर-शोर से जनता के सामने रखा । लेकिन आम जनता विशेर् रूप से ग्ामीण क्षेत् की जनता शिक्षा , सवास्थय , महंगाई , बेरोजगारी जैसे मुद्ों पर एकमत होकर सामने आयी । नए भारत और विकसित भारत का नारा भी उनमें नए उतसाह का संचार नहीं कर पाया । रेवड़ी संस्कृति से भाजपा ने सवयं को बचाकर रखा , पर कांग्ेस और उसके सहयोगी दलों ने अनेक ऐसी लोकलुभावन घोर्णाएं की , जिससे गरीब वर्ग की जनता विपक्षी दलों की तरफ आकतर््णि हुई । गरीब परिवार की महिलाओं को एक लाख रूपये सालाना देने की घोर्णा भी भाजपा के लिए संकर् का बड़ा कारण बनी I
उत्तर प्रदेश में मिला बड़ा झटका
भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ा झर्का उत्ि प्रदेश में लगा है । सपा-कांग्ेस के गठबंधन ने भाजपा को 33 सीर्ों पर समेर् दिया । इसके कारण भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी । भाजपा प्रदेश में अपना दल ( एस ) और तनर्ाद
पार्टी के साथ ही आरएलडी और सुभासपा जैसे नए साथी जोड़कर चुनावी मैदान में उतरी थी । भाजपा गठबंधन को 36 सीर्ें मिली , जबकि सपा-कांग्ेस गठबंधन 43 सीर्ें जीतने में सफल रही । बसपा का खाता नहीं खुल सका । उत्ि प्रदेश में भाजपा पिछले दस वर््ण से सवर्ण वोर्बैंक के साथ ही गैर-यादव पिछड़ा वर्ग और गैर-जार्व दलितों को जोड़कर नई सोशल इंजीनियरिंग बनाई थी । लेकिन इस बार भाजपा के समीकरण फेल हो गए । सपा का पीडीए ( पिछड़ा-दलित-अलपसंखयक ) दांव और संविधान और आरक्षण के मुद्े को जिस तरह विपक्ष ने उठाया , उसके चलते भाजपा पिछड़ गई । गैर-यादव पिछड़ा वर्ग की मललाह , कुमटी
और मौर्य-कुशवाहा जैसी जातियां भाजपा से दूर होकर सपा और कांग्ेस के साथ चली गईं । संविधान के नाम दलित समाज का झुकाव भी सपा-कांग्ेस के पक्ष में रहा ।
भाजपा ने प्रदेश में अपने 62 मौजूदा सांसदों में से 48 सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा था । प्रदेश के सभी केंद्रीय मंत्ी भी चुनाव में उतरे , लेकिन भाजपा के 26 मौजूदा सांसद चुनाव हार गए । इस सांसदों के विरुद जनता में पैदा हुए आरिोश को भाजपा नेतृतव समझ नहीं पाया । यूपी में भाजपा की बिगड़ी चाल के लिए सबसे अधिक जिममेदार पार्टी के ही बड़े नेताओं का अति आतमतवशवास है और जिस तरह से सथानीय और पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए तर्कर् का बंर्वारा किया गया , उसका बड़ा नुकसान पार्टी को हुआ । प्रदेश की 80 सीर्ों को जीतने के लिए भाजपा ने कई नए प्रयोग किए , लेकिन यह प्रयोग कुछ विशेर् कर दिखाने में असफल रहे । तर्तफन बैठक , विकसित भारत संकलप यात्ा , मोदी
का पत् वितरण जैसे कई प्रमुख अभियान और सरकार की कलयाणकारी योजनाओं के लाभार्थियों को साधने की कोशिश , फ्ी राशन वितरण और कानून वयवसथा के मुद्े पर बहुत जयादा निर्भर रहना भी भाजपा के लिए भारी पड़ा I
तीसरी बार प्रधानमंत्ी बने मोदी
लगातार तीसरी बार भाजपा नेता नरेनद्र मोदी ने प्रधानमंत्ी पद संभाल लिया है । उनहोंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि गत दस वर्षों से से जारी जनकलयाणकारी , महिला सशसकिकरण और विकास की योजनाओं को जारी रखा
भाजपा ने प्रदेश में अपने 62 मौजूदा सांसदों में से 48 सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा था । प्रदेश के सभी कें द्रीय मंत्ी भी चुनाव में उतरे , लेकिन भाजपा के 26 मौजूदा सांसद चुनाव हार गए । इस सांसदों के विरुद्ध जनता में पैदा हुए आक्ोश को भाजपा नेतृत्व समझ नहीं पाया ।
जाएगा ।
पूर्ण बहुमत न होने के बाद भी गठबंधन सरकार में भाजपा की यह उपलसबध है कि भाजपा ने अकेले जितनी सीर्ें जीती हैं , उनकी सीर्ें एकजुर् विपक्ष भी नहीं जीत नहीं पाया । अरुणाचल प्रदेश , तससककम , ओडिशा और आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा और सहयोगी दलों को मिली जीत भी भविष्य के लिए बेहतर संकेत तो दे रही हैं , पर पूर्ण बहुमत हासिल न कर पाने की कसक पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में देखी जा सकती है । इसके साथ ही एक बड़ी उपलसबध यह भी है कि 1962 के बाद यह पहली बार केंद्र की किसी सरकार अपने दो कार्यकाल पूरे करने के बाद लगातार तीसरी बार सत्ा संभाली है । लोकसभा के आए परिणामों लेकर चिंतन-मनन का दौर जारी है । देखना यह होगा कि विपक्ष के भ्रामक प्रचार और उससे जनता पर पड़ने वाले दुष्परिणाम से निपर्ने के लिए भाजपा कया कारगर कदम उठाएगी ? �
ebZ & twu 2024 11