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से घेर कर जमीन के एक टुकड़े को रा्ट्र का रूप दे मद्या है? ्या फिर, क्या हम इसलिए एक रा्ट्र हैं कि हमारे सवा्ता और हित साझा हैं? बाबा साहब का रा्ट्र इन सबसे अलग है । धर्म, भाषा, नसल, भदूगोल ्या साझा सवा्ता को ्या फिर इन सबके समुच्चय को, बाबा साहब रा्ट्र नहीं मानते । बाबा साहब का रा्ट्र एक आध्यात्मिक मवचिार है । वह एक चिेतना है । हम एक रा्ट्र हैं, क्योंकि हम सब मानते हैं कि हम एक रा्ट्र हैं । इस मा्यने में ्यह किसी सवा्ता ्या संकीर्ण मवचिारों से बेहद ऊपर का एक पमवरि मवचिार है । इतिहास के सं्योगों ने हमें एक साथ जोड़ा है, हमारा अतीत साझा है, हमने वर्तमान में साझा रा्ट्र जीवन जीना त्य मक्या है और भविष्य के हमारे सपने साझा हैं, और ्यह सब है इसलिए हम एक रा्ट्र हैं । रा्ट्र की ्यह परिकलपना बाबा साहब ने ्यदूरोपी्य विद्ान अनवेसट रेनलॉन से ली
है, जिनका 1818 का प्रसिद्ध वकतव्य‘ ह्ाट इज नेशन’ आज भी सामम्यक दसतावेज है ।
संविधान सभा में पदूछे गए तमाम सवालों का जवाब देने के लिए जब बाबा साहब 25 नवंबर, 1949 को खड़े होते हैं, तो वह इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत सवतत्रि हो चिुका है, लेकिन उसका एक रा्ट्र बनना अभी बाकी है । बाबा साहब कहते हैं कि‘ भारत एक बनता हुआ रा्ट्र है । अगर भारत को एक रा्ट्र बनना है, तो सबसे पहले इस वासतमवकता से रूबरू होना आवश्यक है कि हम सब मानें कि जमीन के एक टुकड़े पर कुछ ्या अनेक लोगों के साथ रहने भर से रा्ट्र नहीं बन जाता । रा्ट्र निर्माण
में व्यन्कत्यों का मैं से हम बन जाना बहुत महतवपदूणता होता है ।’ वह चिेतावनी भी देते हैं कि हजारों जामत्यों में बंटे भारती्य समाज का एक रा्ट्र बन पाना आसान नहीं होगा । सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में घनघोर असमानता और कड़वाहट के रहते ्यह काम मुमकिन नहीं है । अपने बहुचिमचितात, लेकिन कभी न दिए गए, भाषण‘ एनिहिलेशन ऑफ कासट’ में बाबासाहब जाति को रा्ट्र विरोधी बताते हैं और इसके विनाश के महतव को रेखांकित करते हैं ।
बाबासाहब की संकलपना का रा्ट्र एक आधुनिक मवचिार है । वह सवतंरिता, समानता और बंधुतव की बात करते हैं, लेकिन वह इसे
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