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अचछ् हो , वह बुरा साबित हो सकता है यदि उसका अनुशरण करने वाले लोग बुरे हों । यही नहीं एक संविधान चाहे जितना भी बुरा हो वह अचछ् साबित हो सकता है , यदि उसका पालन करने वाले लोग अचछे हों ।‘ इन पंसकियों में वह कहना चाहते थे कि संविधान का प्रयोग जनहित में विवेकपूर्ण तरीके से होना चाहिए । राजनीतिक सत्ता द््रा संविधान की अवहेलना का भय डॉ . आंबेडकर को था , जिसका जिक्र उनहोंने अपने भाषण में किया था ।
डॉ . आंबेडकर ने सतर्क करते हुए कहा था कि ‘ मेरे मन में यह शंका उतपन्न होती है कि कय् भारत अपनी आजादी बरकरार रख सकेगा या इसे फिर खो देगा ?’ भारत हमेशा से एक गुलाम देश नहीं रहा है । हमने अपनी गलतियों के कारण गुलामी को झेला है । भारत के गुलाम होने के कारणों पर डॉ . आंबेडकर कहते हैं कि जब मोहममद-बिन-कासिम द््रा सिंध पर आक्रमण किया गया तब राजा दाहिर के सेनापति ने रिश्वत लेकर राजा के पक्ष में लड़रे से इंकार कर दिया था । जब अंग्ेज आए तब भी भारतीय शासक मूकदर्शक बने हुए थे । ऐसे में यह संविधान भारत की आजादी को कब तक संभाल पायेगा , यह संविधान चलाने वालों पर निर्भर करेगा ।
डॉ . आंबेडकर उन विषमताओं से भयभीत थे , जिनकी वजह से देश में एकता नहीं थी । उनका सपषट विचार था कि आपसी सदभाव और परसपर बंधुता ही भारत की संप्रभुता को अक्षुण बनाये रख सकती है । अपने ऐतिहासिक संबोधन में उनहोंने लोकतंत् पर विशेष चर्चा की थी । डॉ . आंबेडकर का मानना था कि भारत में लोकतंत् और लोकतांवत्क संसथ्ओं की एक लंबी परंपरा रही है । डॉ . आंबेडकर ने अपने संबोधन में इस बात पर विशेष बल दिया कि प्राचीन काल से ही भारत एक लोकतांवत्क देश रहा है । प्राचीन समय में भारत में कई गणतंत् थे जहां राजसत्ताएं थीं , वहां भी या निर्वाचित थीं या सीमित थीं । यह बात नहीं है कि भारत सभा या संसदीय क्रियाविधि से परिचित नहीं था । बौद्ध भिक्षु संघों के अधययन से यह पता चलता
है कि न केवल संसदें ( संघ , संसद ही थे ) थीं बल्किसंघ संसदीय प्रकिया के उन सभी नियमों को जानते थे और उनका पालन करते थे , जो आधुनिक युग में सर्वविदित है ।
बाबा साहब डॉ . भीमराव आंबेडकर ने तीन तरह के लोकतंत् की बात कही थी , राजनीतिक लोकतंत् , सामाजिक लोकतंत् और आर्थिक लोकतंत् I उनका कहना था कि हमने एक लंबे संघर्ष के बाद राजनीतिक लोकतंत् हासिल किया है लेकिन क्या सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत् के बिना कय् राजनीतिक लोकतंत् जीवित रह पायेगा ? उन्होंने कहा था कि हमको केवल राजनीतिक लोकतंत् पर ही संतोष नहीं करना है । हमें राजनीतिक लोकतंत् को सामाजिक
लोकतंत् में बदलना है । सामाजिक लोकतंत् का अर्थ एक ऐसी जीवन पद्धति से है जो सििंत्ि् , समानता और सििंत्ि् बंधुति को जीवन के सिद्धांतों के रूप में सिीकार करती है ।
डॉ . आंबेडकर ने कहा था कि 26 जनवरी 1950 को हम एक विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करेंगे । राजनीति में हमने एक वयसकि , एक वोट और उसकी कीमत को मानयि् दी है । उनहोंने कहा था कि 26 जनवरी , 1950 को हम एक विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करेंगे । हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में सामाजिक एवं आर्थिक संरचना के कारण हमने प्रतयेक वयसकि के एक समान महति को सिीकार नहीं किया है । कब तक हम ऐसा विरोधाभास जारी रखेंगे ? कब
6 ebZ 2023