May 2023_DA | Page 11

आज का दलित तरह-तरह से अपने आप को मधयिगटीय समाज में खपाने की कोशिश करता है और अपने गरीब तथा निरक्षर भाई-बहनों से दूर होता जाता है । यदि दलित समाज का किसी एक घटना से सबसे जय्दा नुकसान हुआ है , तो यही है । जाति के साथ-साथ वर्ग भी दलित समाज को डस रहा है । इसके कारण दलित समाज में किसी प्रकार का सामाजिक सुधार आंदोलन पैदा नहीं हो पाया है । शिक्षित दलित यदि अपने समुदाय से आंगिक रूप से जुड़् रहता , तो वह उसकी उन्नति के लिए अनेक प्रकार के उपाय कर सकता था । इस मामले में महार्षट् में शायद सबसे बेहतर काम हुआ है । लेकिन देश के दूसरे हिससों में भयावह सूखा है , जिसके परिणामसिरूप दलित समाज की बेहतरी का काम किसी अभियान के रूप में आगे नहीं बढ़ पा रहा है । इस विडंबना पर रामधारी सिंह दिवाकर ने ‘ आग-पानी आकाश ’ शीर्षक से एक सुंदर उपनय्स लिखा है ।
डॉ . आंबेडकर की एक और विरासत है ,
जिसका कोई नामलेवा तक नहीं दिखाई पड़ि् । डॉ . आंबेडकर सिर्फ दलित समसय्ओं पर नहीं सोचते थे । उनहोंने भारत की लगभग हर समसय् पर अपने विचार प्रकट किये हैं । भारत विभाजन पर जितनी गहराई से उनहोंने सोचा , उतना किसी और ने नहीं । भारतीय रुपये की समसय् पर उनहोंने लंबा प्रबंध लिखा है । समाजवाद से वे लगातार रचनातमक मु्ठभेड़ करते रहे । विशि समसय्ओं पर उनकी पैनी नजर बराबर बनी रही । यही कारण है जब भारत के लिए संविधान बनाने का समय आया , तो ड््स्टंग समिति से अधयक्ष के रूप में उनसे बेहतर कोई नाम संविधान सभा के सामने नहीं था ।
लेकिन आज के दलित नेतृति की ससथवि कय् है ? उसकी नजर दलित मामलों से आगे जाती ही नहीं । वह देश और दुनिया की मौजूदा समसय्ओं के बारे में सोचना ही नहीं चाहता । आखिर देश का नागरिक होने के कारण दलित की एक वय्पक भूमिका भी तो है । जब तक उसके सरोकार वय्पक नहीं होंगे , वह न तो
अपने को मुकि कर सकता है और न ही देश की मुसकि में सहायक हो सकता है । दलितों को यह समझना होगा कि वे अपने वयसकिति का विसि्र करके ही भारतीय समाज में जय्दा सिीकार्य हो सकते हैं तथा अपनी बेहतरी का संघर्ष भी कारगर ढंग से चला सकते हैं । डॉ . आंबेडकर यदि सिर्फ दलित मामलों के विशेरज् होते तो सििंत् भारत में उनहें कानून मंत्ी का दर्जा कौन देता ?
सपषटिः डॉ . आंबेडकर की यह विरासत है , जिसका संबंध पूरे देश से है । डॉ . आंबेडकर सिर्फ दलित नेता नहीं थे । वे एक र्षट्ीय नेता भी थे । वे ऐसे भारत के बारे में सोचते थे , जिसमें सभी को नय्य मिलेगा और विषमता कम से कम होगी । संविधान सभा में उनका यह भाषण बहुत प्रसिद्ध है कि हमने कानून के द््रा राजनीतिक समानता की नींव रख दी है , पर यह समानता तभी पूरी तरह चरितार्थ होगी जब आर्थिक समानता भी देश में सथ्वपि होगी । यह चुनौती न केवल बनी हुई है बसलक और तीव्र हो रही है ।
जात-पात तोड़क मंडल का उनका अधयक्षीय भाषण आज भी हम सबकी प्रेरणा का स्ोि बन सकता है । सामाजिक नय्य के नाम पर जिस तरह जाति की राजनीति हो रही है , उसकी सही काट जाति विनाश की राजनीति ही है , जिसके अनेक सार्थक सूत् डॉ . आंबेडकर के लेखन में मिलते हैं । डॉ . आंबेडकर ने अपनी प्टटी का नाम रिपसबलकन प्टटी रखा था , उनका यह गणतंत्ि्द हमारी राजनीति का एक केंद्रीय सूत् बन सकता है । डॉ . आंबेडकर की इस विरासत के प्रति कय् दलित कय् सवर्ण , दोनों उदासीन हैं । इधर सवर्ण राजनीति में आंबेडकर का समम्र करने की भावना बढ़ी है , लेकिन इसके पीछे शुद्ध अवसरवाद है । यह खेद और चिंता की बात है कि सवर्ण राजनीति आज डॉ . आंबेडकर का जितना समम्र कर रही है , उनके आदशयों के प्रति उतनी ही उदासीन है । अतः आंबेडकर के साथ बेवफाई करने वालों की कोई सूची बनाई जाय , तो वह सवर्ण राजनेताओं के नामोललेख के बिना पूरी नहीं हो सकती ।
( साभार )
ebZ 2023 11