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आलोक में हिं्दू समाज की वर्तमान हजारों जातियों के अंतर्गत आने वाली खटिक जाति कौन है ? आखिर खटिक जाति का उतरहति कैसे हुई ? खटिक जाति को अनुसदूहचत जाति में ्यों रखा जाता है ? ्या वासतव में खटिक जाति अनुसदूहचत जातियों में से एक है ? खटिक जाति का इतिहास ्या है ? प्ाचीन ्भारत में खटिक जाति ्या अनुसदूहचत जातियों में एक थी ? ऐसे सैकड़ों प्श्न सहज ्भाव में उन स्भी के रकसतषक में उतरन्न होते हैं , जो अधययन , मनन और चिंतन की प्हरिया के साथ ्भारत के इतिहास को जानने की चेषटा करते हैं । ऐसे में " हिं्दू खटिक जाति : एक धरा्मह्भरानी समाज की उतरहति , उत्ान एवं पतन का इतिहास " नामक पुसतक अधययन करने वालों के सामने कई वासतहवक तरयों को सामने रखती है ।
्भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं रदूव्म सांसद डा . विजय सोनकर शासरिी द्ारा रचित इस पुसतक में खटिक जाति की उतरहति , गौरवशाली इतिहास एवं राषट्रीय योगदान के साथ ही हिं्दू खटिक जाति के दु्भा्मग्यपूर्ण पतन के ऐतिहासिक कारणों एवं कारकों को प्सतुत किया गया है । पुसतक
पर श्री कांचीकामकोटि के पी्ठाधिपति जगदगुरु श्रीशंकराचार्य विशेष टिपणणी करते हुए कहा है कि वैदिक काल से लेकर आजतक हिं्दू खटिक जाति की जीवनयारिा इस ग्न् में वर्णित है । यह ग्ं् रत् महाहरिपुर सुन्री के सहित चनद्रमौली्वर की ककृरा से इसी तरह सामाजिक समरसता की सुगनध का प्सार देश्भर में करता रहे , सुशोह्भत होता रहे , ऐसी मैं अह्भलाषा करता िदूं एवं आशीर्वाद देता िदूं ।
" हिं्दू खटिक जाति : एक धरा्मह्भरानी समाज की उतरहति , उत्ान एवं पतन का इतिहास " पुसतक आ्ठ अधयाय में विभक्त है । पहले अधयाय में हिं्दू धर्म में खटिक वंश एवं गोरि की चर्चा की गई है । इसमें प्ागैतिहासिक काल एवं आखेट युग , वैदिक काल का खहट्क , सनातन संस्कृति एवं हिं्दू धर्म , मधयकालीन काह्ठयावाड़ एवं क्ठ तथा कह्ठक जाति , खटिक वंश एवं गोरि , खटिक जातियों का राजवंशीय इतिहास , खटिक जाति का राजवंशीय इतिहास , खटिक जाति का ्भौगोलिक प्तयक्ीकरण एवं रहन-सहन तथा खटिक एवं जाति का उपनाम विषय पर विसतार से जानकारी दी गई है ।
विसतृत अधययन के बाद डा . सोनकर शासरिी का मानना है कि यह जाति वैदिक काल में ्भी खहट्क यानी बलि बलि देने वाले ब्राहण का कार्य अथवा पशु बलि करती थी और सनातन हिं्दू संस्कृति एवं हिं्दू धर्म के अनुसार अपना जीवनयापन करती थी । इसलिए खटिक जाति को परर्भाषित करने की आव्यकता नहीं , बल्क उसे समझने की आव्यकता है ।
पुसतक के ्दूसरे अधयाय में खटिक वंश के ज्ञानी धर्म पुरोधा एवं खटिक जीवन वृहति को बताया गया है । इस अधयाय में हिन्ुस्ान में ऋषि परंपरा , प्ाचीन हिं्दू धर्म एवं ज्ञान के पुरोधा , हिं्दू धर्म में खटिक जाति का प्रुख स्ान , खटिक वंश में ज्ञानी एवं धर्म पुरोधा , महर्षि वयाघ्र एवं रचना वयाघ्र गीता , महातरा सदन खटिक का मांस वयवसाय , संत शिरोमणि दुर्बलनाथ एवं खटिक जाति की जीवन प्वृहति आदि विषय पर प्काश डाला गया है । लेखक डा . विजय सोनकर शासरिी के अनुसार ्भारत की प्ाचीन ककृहर परंपरा में अनेक खटिक ऋषियों का ्भी नाम पाया जाता है , जिनिोंने हिं्दू जीवन रद्हत के लिए अनेक नियमों का प्हतरादन
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