अफगानिसतान से बिना किसी आधिकारिक कागजात के आने वाले हिनदू अलपसंख्कों को भारत की नागरिकता देने का रासता साफ़ हो गया है । अब 31 दिसंबर 2014 तक भारत आने वाले हिनदू , सिख , जैन , बौद्ध , पारसी और ईसाई नागरिकों को भारत की सथा्ी नागरिकता मिलेगी । नागरिकता देने की समपूण्ग प्रलरिया ऑनलाइन होगी , जिसके लिए गृहमंत्ाि् ने एक पोर्टल प्रारमभ कर दिया है । प्रलरिया के तहत भारत आने वाले लोगों से कोई कागज नहीं मांगा जाएगा । हालांकि यह कानून दिसंबर 2019 में संसद से पारित हुआ था और इसे राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी भी दे दी थी , लेकिन नियमों को अधिसूचित गत 12 मार्च को किया गया ।
दलितों के लिए वरदान हरै नागरिकता कानून
नागरिकता ( संशोधन ) अधिनियम - 2019 अखणड भारत के उन हिनदुओं के लिए वरदान है , जो भारत विभाजन के पहले आज के पाकिसतान , बांगिादेश या अफगानिसतान के क्ेत्ों में निवास करते थे । देश टूटता गया और उन अलग हुए हिससों में ज्ादातर हिनदुओं के नाम पर दलित भाई-बहनों को छलपूर्वक और बलपूर्वक रोक लिया गया । उन मुससिम देशों में उनिें रोक कर उनसे मैला साफ करने के अलावा उनिें किसी भी प्रकार की सवतंत्ता नहीं थी । वह पढ़-लिख नहीं सकते थे और किसी
भी तरह की नौकरी या व्वसाय नहीं कर सकते थे । आज भारत में आए हुए कुल शरणार्थियों में उनकी संख्ा 66 प्रतिशत है । आज 66 प्रतिशत उन सभी अभागे दलितों को मोदी सरकार ने भारत की नागरिकता देकर सौभाग् प्रदान कर दिया है । यहां प्रश्न उठना सहज है कि आखिर वह कौन से कारण थे , जिनकी वजह से पाकिसतान और बांगिादेश में दलित समाज के लोग रुकने के लिए बाध् हुए थे ? उत्र बहुत ही आसान है । पाकिसतान और बांगिादेश में इनके रूकने के तीन महतवपूर्ण कारण थे -
पहला यह कि वह सभी अत्ंत निर्धन एवं दयनीय आर्थिक हालात में थे । दूसरा यह कि पाकिसतान एवं बांगिादेश के दबंग मुसलमानों
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