2014 में बढ़कर 41 प्रतिशत और 2019 में 48 प्रतिशत हो गया ।
ओबीसी वर्ग के मध् अपनी एक अलग बनाने में सफल हुई भाजपा के सामने अपने वर्चसव को बनाए रखने और जनाधार को बढ़ाने की चुनौती हैं और भाजपा भी इससे अनजान नहीं है । सवगटी् कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा और हरियाणा में मनोहर लाल के बदले ओबीसी वर्ग नेता नायब सिंह सैनी को मुख्मंत्ी बनाकर भाजपा ने सपष्र कर दिया है कि वह कांग्ेस सहित अन् विपक्ी दलों द्ारा जातिगत जनगणना की आड़ में समाज विरोधी एवं विभाजनकारी राजनीतिक चालों का अब किसी भी ससथत में सफल नहीं होने देगी । मध् प्रदेश के नए मुख्मंत्ी डा . मोहन यादव बिहार एवं उत्र प्रदेश में ओबीसी वर्ग के मध् जाकर भाजपा की पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए जुटे हुए है ।
अबकी बार का आम चुनाव भाजपा का
ओबीसी वर्ग को जाति के दायरे से बहार निकालने के प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है । जातिगत जनसंख्ा के आधार पर सरकारी नौकरी और अवसरों में हिससेदारी समबनधी मांग के मध् भाजपा ने भारतीय राजनीति में परंपरागत जाति आधारित राजनीति के सथान पर गरीब , युवा , किसान और महिला के रूप में नए सामाजिक समीकरण तैयार कर रही है । नए प्रयोग के बीच भाजपा ओबीसी वर्ग के परंपरागत सवभाव के प्रति न सिर्फ सतर्क है , बसलक कोई खतरा भी नहीं उठाना चाहती । उधर विपक् और विशेष रूप से कांग्ेस ओबीसी वर्ग को अपने उद्धारकर्ता के रूप में देख रही है । ऐसा पहली बार हो रहा है जब कांग्ेस ओबीसी वर्ग और इससे जुड़े परंपरागत आरक्ण , जाति जनगणना जैसे प्रश्नों को उठाकर किसी भी तरह अपने राजनीतिक हितों को पूरा करना चाहती है ।
वर्तमान समय में प्रधानमंत्ी मोदी और
गृहमंत्ी अमित शाह भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन की दिशा में काम कर रहे हैंI गत एक दशक के दौरान भाजपा ने ब्ाह्मण-बनिया की पारटी की अवधारणा को तोड़ दिया है और पारटी अन् पिछड़ा वर्ग , दलित , वनवासी वर्ग के के बड़े हिससे में अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है । केंद् सरकार ने कामगारों के लिए 13 हजार करोड़ रुपये की विशवकर्मा योजना का सर्वाधिक लाभ पिछड़ी जातियों को मिल रहा है । केंद्ी् योजनाओं का सर्वाधिक लाभ इसी वर्ग को मिला है । भाजपा के 303 में से 85 सांसद , 1358 विधायकों में 27 प्रतिशत विधायक ओबीसी वर्ग से हैं । इसी तरह पहली बार केंद्ी् मंलत्मंडल में 27 मंत्ी इस वर्ग से शामिल किए गए हैं । इस प्रकार अगर देखा जाये तो भाजपा के सर्वाधिक सांसद और विधायक ओबीसी वर्ग के हैं ।
विपक्ी गठबंधन के पास ओबीसी वर्ग से जुड़े परंपरागत मुद्े ही हैं और उनिें लग रहा है कि इनिीं मुद्ों के आधार पर वह चुनाव में अपनी जीत दर्ज करा सकती है । कांग्ेस को ऐसा लग रहा है कि ओबीसी वर्ग के माध्म से वह पिछड़ी जातियों का समर्थन जुटकर राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती से उभर सकती है । पर ऐसा होगा , इसमें संदेह है । वैसे कांग्ेस का इतिहास बताता है कि सामाजिक और शैक्लणक रूप से पिछड़े वगगों की ससथलत्ों पर काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को कांग्ेस सरकार ने ठनडे बसते में डाल दिया था । कांग्ेस नेतृतव चाहता तो रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू कर ओबीसी वर्ग की ससथलत्ों में बदलाव लाने के लिए पहल कर सकता था । आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट दी थी , लेकिन केंद् में इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी की सरकार ने इस समबनध में कोई कदम नहीं उठाया और फिर वी . पी . सिंह की सरकार ने जब 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो प्रतिपक् के नेता के रूप में राजीव गांधी ने इसका विरोध किया था । ऐसे में राहुल गांधी का ओबीसी वर्ग के लिए अति उतसाि प्रदर्शित करना कांग्ेस की राजनीतिक विद्ूपता के रूप में देखा जा सकता है । �
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