Mai aur Tum मैं और तुम | Page 20

किर भी क्या इश्क़ में एक ताज़महल बनवाना जरूरी है ? है माल म सबको कक होगी बदनासमयां हर चचे पर , सबकुछ जानकर भी क्या तेरे भाई से मार खाना जरूरी है ? मैं जानता ह ं त म नही तनकलते शाम को कभी भी दरवाजे पर , किर भी क्या हर बार तेरे गली का चक्कर लगाना जरूरी है ? सलखा है एक कक़ताब मैंने भी हमारी मोहब्बत पे , क्या इस कक़ताब को छपवाकर बाज़ार में लाना जरूरी है ? दे कर आंस अपने भगवान के उम्मीद भरी आूँखों मे , क्या द त ु नया से अलग एक अपना घर बसाना जरूरी है ? कहते है सब यहाूँ कक पा लेना ही मोहब्बत नही है , पर तुम बताओ इश्क़ में क्या ख़ुद को भ ल जाना जरूरी है ? सलखेगा राज अबसे शेर कई इस मोहब्बत के नाम , त म जान जाओगे या किर कौन सा है ये बताना जरूरी है ? जम ने व ि कर रहे है म झ े बेवज़ह बदनाम जमाने वाले । इसी बहाने कर रहे है मेरा नाम जमाने वाले । कल तक सब कुछ सह रहा था तो अच्छा था मैं , ख़ द के बारे में सोचने लगे तो हो गए म झ े आंख ददखाने वाले । मैं सोचता था कक उम्र भर का साथ होगा हमारा , पर मुसाकफ़र कहाूँ होते है उम्र भर साथ तनभाने वाले । अब तो मेरी नादानी का भी तमाशा बन रहा है ,