किर भी क्या इश्क़ में एक ताज़महल बनवाना जरूरी है ?
है माल म सबको कक होगी बदनासमयां हर चचे पर ,
सबकुछ जानकर भी क्या तेरे भाई से मार खाना जरूरी है ?
मैं जानता ह ं त म
नही तनकलते शाम को कभी भी दरवाजे पर ,
किर भी क्या हर बार तेरे गली का चक्कर लगाना जरूरी है ?
सलखा है एक कक़ताब मैंने भी हमारी मोहब्बत पे ,
क्या इस कक़ताब को छपवाकर बाज़ार में लाना जरूरी है ?
दे कर आंस अपने भगवान के उम्मीद भरी आूँखों मे ,
क्या द त ु नया से अलग एक अपना घर बसाना जरूरी है ?
कहते है सब यहाूँ कक पा लेना ही मोहब्बत नही है ,
पर तुम बताओ इश्क़ में क्या ख़ुद को भ ल जाना जरूरी है ?
सलखेगा राज अबसे शेर कई इस मोहब्बत के नाम ,
त म
जान जाओगे या किर कौन सा है ये बताना जरूरी है ?
जम ने व ि
कर रहे है म झ
े बेवज़ह बदनाम जमाने वाले ।
इसी बहाने कर रहे है मेरा नाम जमाने वाले ।
कल तक सब कुछ सह रहा था तो अच्छा था मैं ,
ख़ द
के बारे में सोचने लगे तो हो गए म झ
े आंख ददखाने वाले ।
मैं सोचता था कक उम्र भर का साथ होगा हमारा ,
पर मुसाकफ़र कहाूँ होते है उम्र भर साथ तनभाने वाले ।
अब तो मेरी नादानी का भी तमाशा बन रहा है ,