हे -माकट कॉयर – कल और आज
-
व युत पाल
‘मई दवस का इ तहास’ कहने से सबसे पहले अमर का क शकागो शहर म घ टत सन 1886 क घटनाओं का ह बोध होता है और उन
े
घटनाओं को सामा यत: हम सभी जानते ह।
कहते ह:-
हालाँ क आठ घ टा म- दन क मांग 1886 से पहले ह उठ चु क थी। जैसा क मई दवस का इ तहास लखने वाले अले जंडर ै टे नबग
“सन 1866 म नैशनल लेबर यु नयन क थापना कॉ वशन म छोटे
े
म दवस क सवाल पर न न ल खत
े
ताव लया गया, ‘दे श को
पू जीवाद गुलामी से मु त करने क लये पहल और सबसे बड़ी आव यकता है एक कानून का पा रत कराया जाना िजसक तहत अमर क
ं
े
े
संघ क सभी रा य म सामा य म- दन आठ घ टे का होगा’…।”
े
गौरतलब हो क उसी कॉ वशन म इस बात पर भी उपि थत सा थय का वोट लया गया क उनक ‘ वतं राजनी तक ग त व ध होगी’
एवं वे ऐसे
या शय को दे श क आम चु नाव म िजतवाने का यास करगे िजनक
े
तब ता औ यो गक वग क हत क संर ण एवं उनका
े
े
त न ध व करने म हो एवं वे आठ घ टे का कानून पा रत करवाने का वे य न कर। जरा दे खये े ड यु नयन क तथाक थत ‘गैर-राजनै तक’
े
होने क सवाल पर अमर क मजदूरवग क राय!
े
खैर। काल मा स ने 1867 म का शत उनक ‘पूजी’ थ क पहले वा युम म म- दन वाले अ याय म अमर का क नैशनल लेबर यु नयन
े
ं
ं े
े
क उपरो त
े
ताव का िज
कया एवं कहा क,
“जबतक जातं क एक ह से को गुलामी था वकृ त कये हु ये था, संयु त रा य अमर का म कसी भी तरह का वतं मज़दूर
े
आ दोलन प ाघात
त पड़ा हु आ था। जब काला चमड़ी वाले
मक को दागे जाने क
को आज़ाद नह ं कर सकते। ले कन गुलामी था क मौत क फल व प एक नया ाणो
े
है आठ-घ टे काम क दन क मांग…” [ ै टे नवग, उपरो त]
े
था चलती हो तो गोर चमड़ी वाले
मक खु द
वल जीवन फट पड़ा। गृहयु का पहला
ू
तफल
मज़दूरवग क महान श क ने यह भी नोट कया था क,
े
“आठ घ टे
म- दन क मांग… समू चे सवहारावग का है, जो उ होने नयोजक यि तय [पू जीप त] क सामने नह ं वि क मौजू दा
ं
े
सामािजक व राजनी तक पूर
यव था क
े
मा लक क सामने रखा है” [ले नन]।
े
त न ध क प म सरकार क सामने, पूरे पू जीप तवग क सामने, उ पादन क साधन क
े
े
ं
े
े
े
या न यह एक वग य राजनी तक मांग है!
इसी खा सयत क कारण आठ घ टे काम क दन क मांग पर शु हु आ यह आ दोलन आज पूर दु नयां म सभी दे श क न सफ मजदूर
े
े
े
वग का वि क तमाम शो षत , वं चत का, सामािजक याय क लये पछले डेढ़सौ वष से जार सं ाम क सबसे बड़ी ेरणादायक शि त है।
े
और इसी लये मई दवस का पव, मजदूर संगठन म या त राजनी तक वचार क अनेकता को समेटते हु ए हर साल मजदूर का सबसे
बड़ा पव बन जाता है। मई दवस क जु लस म, संगठन क स
े
ू
े
य कायक ता सा थय क चेहर क अलावे असं य ऐसे चेहरे वत: दख जाते ह
े
े
िज हे सूचना भर मल थी एक दन पहले, या उ होने खु द फोन करक सूचना मांगा था क इस बार का ‘ या ो ाम है’। यह उनक आलोचना नह ं
े
है, वि क मई दवस का रं ग हमारे खू न म सबसे अ धक चढ़े होने का योतक है।