LOK JANWAD (Trial Version) Oct, 2014

हे -माकट कॉयर – कल और आज - व युत पाल ‘मई दवस का इ तहास’ कहने से सबसे पहले अमर का क शकागो शहर म घ टत सन 1886 क घटनाओं का ह बोध होता है और उन े घटनाओं को सामा यत: हम सभी जानते ह। कहते ह:- हालाँ क आठ घ टा म- दन क मांग 1886 से पहले ह उठ चु क थी। जैसा क मई दवस का इ तहास लखने वाले अले जंडर ै टे नबग “सन 1866 म नैशनल लेबर यु नयन क थापना कॉ वशन म छोटे े म दवस क सवाल पर न न ल खत े ताव लया गया, ‘दे श को पू जीवाद गुलामी से मु त करने क लये पहल और सबसे बड़ी आव यकता है एक कानून का पा रत कराया जाना िजसक तहत अमर क ं े े संघ क सभी रा य म सामा य म- दन आठ घ टे का होगा’…।” े गौरतलब हो क उसी कॉ वशन म इस बात पर भी उपि थत सा थय का वोट लया गया क उनक ‘ वतं राजनी तक ग त व ध होगी’ एवं वे ऐसे या शय को दे श क आम चु नाव म िजतवाने का यास करगे िजनक े तब ता औ यो गक वग क हत क संर ण एवं उनका े े त न ध व करने म हो एवं वे आठ घ टे का कानून पा रत करवाने का वे य न कर। जरा दे खये े ड यु नयन क तथाक थत ‘गैर-राजनै तक’ े होने क सवाल पर अमर क मजदूरवग क राय! े खैर। काल मा स ने 1867 म का शत उनक ‘पूजी’ थ क पहले वा युम म म- दन वाले अ याय म अमर का क नैशनल लेबर यु नयन े ं ं े े क उपरो त े ताव का िज कया एवं कहा क, “जबतक जातं क एक ह से को गुलामी था वकृ त कये हु ये था, संयु त रा य अमर का म कसी भी तरह का वतं मज़दूर े आ दोलन प ाघात त पड़ा हु आ था। जब काला चमड़ी वाले मक को दागे जाने क को आज़ाद नह ं कर सकते। ले कन गुलामी था क मौत क फल व प एक नया ाणो े है आठ-घ टे काम क दन क मांग…” [ ै टे नवग, उपरो त] े था चलती हो तो गोर चमड़ी वाले मक खु द वल जीवन फट पड़ा। गृहयु का पहला ू तफल मज़दूरवग क महान श क ने यह भी नोट कया था क, े “आठ घ टे म- दन क मांग… समू चे सवहारावग का है, जो उ होने नयोजक यि तय [पू जीप त] क सामने नह ं वि क मौजू दा ं े सामािजक व राजनी तक पूर यव था क े मा लक क सामने रखा है” [ले नन]। े त न ध क प म सरकार क सामने, पूरे पू जीप तवग क सामने, उ पादन क साधन क े े ं े े े या न यह एक वग य राजनी तक मांग है! इसी खा सयत क कारण आठ घ टे काम क दन क मांग पर शु हु आ यह आ दोलन आज पूर दु नयां म सभी दे श क न सफ मजदूर े े े वग का वि क तमाम शो षत , वं चत का, सामािजक याय क लये पछले डेढ़सौ वष से जार सं ाम क सबसे बड़ी ेरणादायक शि त है। े और इसी लये मई दवस का पव, मजदूर संगठन म या त राजनी तक वचार क अनेकता को समेटते हु ए हर साल मजदूर का सबसे बड़ा पव बन जाता है। मई दवस क जु लस म, संगठन क स े ू े य कायक ता सा थय क चेहर क अलावे असं य ऐसे चेहरे वत: दख जाते ह े े िज हे सूचना भर मल थी एक दन पहले, या उ होने खु द फोन करक सूचना मांगा था क इस बार का ‘ या ो ाम है’। यह उनक आलोचना नह ं े है, वि क मई दवस का रं ग हमारे खू न म सबसे अ धक चढ़े होने का योतक है।