June 2025_DA | Page 33

होतता है । मतुझे प्रसन्नतता है क्क मैं देशभकतों के उस ्वग्ण में शताक्मल नहीं हूं । मैं उस ्वग्ण में हूं, जो लोकतंत् के पषि में खड़ा होतता है और जो हर तरह के एकताक्धकतार को ध्वसत करने कता
आकतांक्षी है. हमतारता लक्य जरी्वन के हर षिेत् ' रताजनरीक्तक, आक्थ्णक और सतामताक्जक ' में ' एक वयसकत-एक मूलय ' के क्सद्धतांत को व्यवहतार में उततारनता है ।
19्वीं सदरी और 20्वीं सदरी के पहले दो दशकों तक हतुए सतामताक्जक परर्वत्णन करी पृषठभूक्म में बताबता सताहब डता. आंबेडकर कता सता्व्णजक्नक जरी्वन में प्र्वेश भतारतरीय समताज में सतामताक्जक क्रतांक्त के मताग्ण को क्नणता्णयक मोड़ देने्वतालता महत्वपूर्ण ऊजता्ण स्ोत रहता है । डता. आंबेडकर प्रखर क्चंतक, कतानूनक््वद और सतामताक्जक न्यताय करी लड़ाई के योद्धता मात्र नहीं रहे, अक्पततु उनकरी ्वैचतारिक दृसषि में अन्यताय कता प्रक्तकतार करने के सताहस के सताथ-सताथ नैक्तक पथ पर अक््वचल चलने करी प्रक्तबद्धतता भरी क्दखताई देतरी है, जो मूलयों करी पहचतान ढूंढ़ते समताज को क्दशता क्दखतातरी है । भतारतरीय समताज में क््वक््वधतता भरी है और क््वषमतता भरी. क््वक््वधतता स्वताभताक््वक होतरी है, परंततु क््वषमतता नैसक्ग्णक नहीं है, इसक्लए इस पर क््वचतार आ्वशयक है । बताबता सताहब के नैक्तक सताहस ने अपने समताज करी क््वषमततामूलक व्यवस्था कता मात्र क््वरोध हरी नहीं क्कयता, उन्होंने इसके कतारण, समताज और रताषट्ररीय एकतता पर इसके दुष्प्रभता्व और सतय, अक्हंसता तथता मतान्वतता के क््वरुद्ध इसके स्वरूप को भरी उजतागर क्कयता । आधतुक्नक भतारत के क्नमता्णणकतता्णओं में डता. आंबेडकर करी समताज पतुनर्रचनता करी दृसषि को मात्र ्वण्ण आधतारित जताक्त व्यवस्था के क््वरोध ए्वं अछूतोद्धतार तक हरी सरीक्मत करके देखता जतातता है, जो उनके सताथ अन्यताय है । जताक्त व्यवस्था कता क््वरोध ए्वं जताक्त आधतारित ्वैमनसय, छूआछूत कता प्रक्तकतार मधयकतालरीन संतों से लेकर आधतुक्नक क््वचतारकों तक द्वारता क्कयता गयता, परंततु अक्धकतर संतों, राष्ट्रनतायकों ने ्वेद ्व उपक्नषद् करी द‍ ृसषि से सतामताक्जक पतुनर्रचनता के कताय्ण में सहयोग क्दयता, जबक्क बताबता सताहब ने महतात्मा बतुद्ध के संघ्वताद ए्वं धमम के पथ से स्वयं को क्नदवेक्शत क्कयता I
गलौतम बतुद्ध कता कथन‘ आतमदरीपोभ्व’ को बोक्धसत्व डता. आंबेडकर ने अपने जरी्वन में न क्सफ्क उततारता, बसलक इससे पूरे समताज के क्लए नैक्तकतता, न्यताय ्व उदतारतता कता पथ आलोक्कत
क्कयता । बताबता सताहब कता मताननता है क्क जब हम क्कसरी समतुदताय यता समताज में रहते हैं, तो जरी्वन के मतापदंड ए्वं आदशयों में समतानतता होनरी चताक्हए । यक्द यह समतानतता नहीं हो, तो नैक्तकतता में पृथकतता करी भता्वनता होतरी है और समूह जरी्वन खतरे में पड़ जतातता है । यहरी क्चंतन है, क्जसके आधतार पर उनकता क्नषकष्ण थता क्क क्हंदू धर्म ने दक्लत ्वग्ण को यक्द शसत् धतारण करने करी स्वतंत्तता दरी होतरी, तो यह देश कभरी परतंत् न हतुआ होतता I
बतात शसत् करी हरी नहीं, शास्त्ों करी भरी है, क्जनके ज्ञतान से ्वंक्चत कर हमने एक बड़े क्हससे को अपनरी भलौक्तक ए्वं आधयतासतमक संपदताओं से ्वंक्चत कर क्दयता और आज यह सतामताक्जक तनता्व कता एक प्रमतुख कतारण बन गयता है । डता. आंबेडकर जताक्त व्यवस्था कता जड़ से उन्मूलन चताहते थे, कयोंक्क उनकरी तरीक्ण बतुक्द्ध देख पता रहरी थरी क्क हमने कर्म क्सद्धतांत को, जो वयसकत के मूल्यांकन ए्वं प्रगक्त कता मताग्णदर्शक है, भतागय्वताद, अकर्मणयतता और शोषणकताररी समताज कता पोषक बनता क्दयता है । उनकरी सतामताक्जक न्यताय करी दृसषि यह मतांग करतरी है क्क मनतुषय के रूप में जरी्वन जरीने कता गरिमतापूर्ण अक्धकतार समताज के हर ्वग्ण को समतान रूप से क्मलनता चताक्हए और यह क्सफ्क रताजनरीक्तक स्वतंत्तता ए्वं लोकतंत् से प्रतापत नहीं हो सकतता । इसके क्लए आक्थ्णक ए्वं सतामताक्जक लोकतंत् भरी चताक्हए । एक वयसकत एक ्वोट करी रताजनरीक्तक बरताबररी होने पर भरी सतामताक्जक ए्वं आक्थ्णक क््वषमतता लोकतंत् करी प्रक्क्रयता को दूक्षत करतरी है, इसक्लए आक्थ्णक समतानतता ए्वं सतामताक्जक भेदभता्व क््वहरीन जनततांत्रिक मूलयों के प्रक्त ्वे प्रक्तबद्धतता कता आग्ह करते हैं । डता. आंबेडकर करी लोकततांत्रिक मूलयों में अटूट आस्था थरी । ्वह कहते थे‘ क्जस शतासन प्रणतालरी से रकतपतात क्कये क्बनता लोगों के आक्थ्णक ्व सतामताक्जक जरी्वन में क्रतांक्तकताररी परर्वत्णन लतायता जतातता है, ्वह लोकतंत् हैI’ ्वह मनतुषय के दतुखों करी समाप्ति क्सफ्क भलौक्तक ्व आक्थ्णक शसकतयों के आक्धपतय से नहीं स्वरीकतारते थे । डता. आंबेडकर ज्ञतान आधतारित समताज कता क्नमता्णण चताहते थे, इसक्लए उनकता आग्ह थता- ' क्शक्षित बनो, संगक्ठत हो और संघर्ष करो ' I �
twu 2025 33