संविधान सभा की सबसे कम उम्र की सदसयों में से भी एक थीं और उनहोंने दलितों और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, जो संविधान सभा में एक महतवपूर्ण आवाज बनी ।
केरल में 4 जुलाई 1912 में जनम लेने वाली दक्षिणायनी वेलायुधन एक राजनीतिज्ञ और शोषित वगषों की नेता थीं । उनका जनम वर्तमान एर्नाकुलम जिले के एक छोटे से द्ीप मुलवुकड़ में हुआ था । वह पुलाया समुदाय से थीं, जिसे कठोर दमनकारी जाति वयवसथा में सबसे अंतिम पायदान पर रखा गया था । पुलाया जयािातर कम वेतन वाले खेतिहर मजदूर थे ।
छुआछूत के कारण उनका सार्वजनिक सड़कों पर चलना मना था, उच्च जाति के वयक्तयों से एक वनकशचत दूरी बनाए रखना और महिलाओं को अपने शरीर के ऊपरी अंगों को किसी भी कपड़े से ढकने पर प्रतिबंध था । इस तरह कई अपमानों का उनहें सामना करना पड़ता था । 1913 में कोच्चि में कयाल सममेलन का आयोजन किया गया था । इस सममेलन में शामिल होने के लिए वेलायुधन के परिवार के सदसयों सहित सैकड़ों पुलाया एक साथ आए थे । लेकिन उनहें जमीन पर नहीं उतरने दिया गया । इस घटना ने वेलायुधन के जीवन पर महतवपूर्ण प्रभाव डाला ।
पुलाया वर्ग से समबनध रखने वाली दक्षिणायनी वेलायुधन दलित वर्ग में शिक्षित होने वाली पहली पीढ़ी के लोगों में से थीं । उनहोंने ततकालीन समय में कई रूढ़ियों को तोडा । दलित वर्ग की वह पहली ऐसी महिला थीं, जो विज्ञान की शिक्षा लेकर देश की पहली दलित वर्ग की महिला स्ातक बनी । उनहोंने 1935 में स्ातक की पढ़ाई पूरी की और तीन साल बाद मद्रास विशवविद्ालय से टीटीसी( डी. एड) की शिक्षा ली । उनहें शिक्षा के लिए कोचीन राजय सरकार की छात्रवृवत् भी मिली । 1935 से 1945 तक, उनहोंने त्रिचूर और त्रिपुनिथुरा के सरकारी हाई स्कूलों में एक
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