संथाल स्ाधीनता संग्ाम के वीरयों की याद में कार्यक्रम का आयोजन
हूल दिवस के अवसर पर राजधानी दिलली
में आयोजित एक भवय काय्मरिम में संथाल सवाधीनता संग्ाम में वीरता की मिसाल बनने वाले सिदो-कानहू और चांद-
होम इंडिया संसथा के संसथापक सुनील देवधर, वनवासी कलयाण आश्म( दिलली प्रानत) के महासचिव अजीत शु्ला, माय होम इंडिया( दिलली प्रदेश) संसथा के
ड्म बजता रहता था, वह लड़ते रहते थे. जब तक उनमें से एक भी शेष रहा, वह लड़ता रहा । वरिटिश सेना में एक भी ऐसा सैनिक नहीं था, जो इस साहसपूर्ण बलिदान पर शर्मिनिा न हुआ हो । संथाल परगना में 1855 में हुए विद्रोह को कार्ल मा्स्म ने भी अपनी किताब‘ नोरस ऑफ इंडियन वहसट्री’ में‘ जनरिांवत’ माना है । संथाल हूल का इतना वयापक असर था कि वरिटिश अखबारों ने भी इस विद्रोह को वरिटिश सरकार के लिए आंख खोलने वाला बताया । 1856 के इलसट्रेटेड लंदन नयूज अखबार में एक सकेच छपा था, जिसमें अंग्ेजों से संथालों का संघर्ष दर्शाया गया था । इस विद्रोह को कुचलने वालों में शामिल वरिटिश सेना के मेजर जर्विस ने उस समय लिखा था कि उन विद्रोहियों को जैसे समर्पण का अर्थ ही नहीं पता था । जब तक उनके नगाड़े बजते रहते, वह हमारी गोलियों के भी सामने खड़े रहते । नगाड़े बंद होते तो वे कुछ पीछे हटते । नगाड़े फिर शुरू होते ही फिर लड़ाई शुरू हो जाती ।
भैरव सहित अपने प्राणों को आहुति देने वाले सभी अमर बलिदानियों को याद करते हुए उनहें भावभीनी श्द्धांजलि अर्पित की गई । वनवासी कलयाण आश्म एवं माय होम इंडिया संसथा द्ारा संयु्त रूप से काय्मरिम का आयोजन गत 28 जून को आकाशवाणी भवन के रंग भवन सभागार में किया गया l काय्मरिम में मुखय अतिथि के तौर पर केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम एवं विशिषट अतिथि के रूप में रक्षा राजय मंत्री संजय सेठ, सांसद खगेन मुर्मू, भाजपा के पूर्व राषट्रीय सचिव एवं माय
प्रसिद्ध इतिहासकार बी. पी. केशरी कहते हैं कि संथाल हूल ऐसी घटना थी, जिसने 1857 के संग्ाम की पृषठभूमि तैयार की थी । इस आंदोलन के बाद ही अंग्ेजों ने संथाल क्षेत्र को वीरभूम और भागलपुर से हटा दिया । 1855 में ही संथाल परगना को‘ नलॉन रेगुलेशन जिला’ बनाया गया । क्षेत्र भागलपुर कमिश्नरी के अंतर्गत था, जिसका मुखयालय दुमका था । 1856 में
अधयक्ष बलदेव राज सचदेवा, वरिषठ पत्रकार के. जी. सुरेश एवं सेनट्रल बोर्ड ऑफ डायरे्ट टै्स के सदसय संजय बहादुर उपकसथत रहे । काय्मरिम का शुभारमभ सिदो-कानहू और चांद-भैरव सहित संथाल सवाधीनता संग्ाम में अपने प्राणों की बलि देने वाले महान सपूतों को भावभीनी श्द्धांजलि देने के साथ हुआ । ' हूल रिांवत ' के गौरव को नमन करते हुए दिलली विशवविद्ालय की प्रोफेसर डा. सुप्रिया कामना मरांडी ने हूल दिवस के विषय में विसतृत रूप से जानकारी सामने रखी ।
पुलिस रूल लागू हुआ । 1860-75 तक सरदारी लड़ाई, 1895-1900 तक बिरसा आंदोलन इसकी अगली कड़िया थीं । दुर्भागय की बात है कि जिस हूल में दस हजार से अधिक सेनानी बलिदान हुए, उसे किस प्रकार रड़यंत्रपूर्वक संथाल विद्रोह तक सीमित कर दिया गया, जबकि यह विद्रोह देश की आजादी के लिए वरिटिश सत्ा के विरूद्ध लड़ी गई । �
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