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हैं । बाद में पता चला कि मायावती सिर्फ उत्ि प्रदेश ही नहीं , बकलक पूरे देश में चुनाव लड़ रही हैं । उनहोंने 543 में से 488 सीटों पर अपने उममीदवार उतार दिए हैं , लेकिन फिर प्रतयालशयों का ऐलान करना और चंद घंटे के अंदर ही प्रतयालशयों को बदल देना , उनके इस रवैया ने उनके अपने वोटरों को भी हैरान कर दिया ।
उत्ि प्रदेश की 80 सीटों में से मायावती ने 35 मुकसलम उममीदवारों को उतारकर दलित- मुकसलम समीकरण बनाने की कोशिश तो की , लेकिन रैली के नाम पर 30 से भी कम रैलियां उनहोंने सवयं की । उनके सटाि प्रचारक में शामिल सतीश चंद्र मिश्ा को कहीं बोलने का मौका भी नहीं मिला । पिछली बार उत्ि प्रदेश में बसपा के 10 सांसद थे । लेकिन इस चुनाव से पहले कई सांसदों को बसपा ने निकाल दिया और वह दूसरे दलों से चुनाव मैदान में उतर गए । बसपा ने पिछली बार सपा और रालोद से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था । सपा ने महज़ पांच सीटों पर जीत हासिल की थी । लेकिन मायावती ने कुछ ही दिनों बाद चुनाव नतीजों पर असंतोर् जताते हुए सपा से गठबंधन तोड़ लिया था । इस बार सपा इंडिया गठबंधन तो रालोद , राजग गठबंधन का हिससा बना ।
सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद 2022 में उत्ि प्रदेश विधानसभा का चुनाव बसपा ने अकेले ही लड़ा था । लेकिन उसका प्रदर्शन बहुत ही ख़राब रहा । महज़ एक ही सीट पर जीत मिली और वोटों में भी ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई । बसपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में 12 । 88 प्रतिशत वोट मिले थे , वह लोकसभा चुनाव में घटकर 9 । 39 प्रतिशत रह गया । बसपा ने दलित और अति पिछड़ी जातियों का जो वोट बैक कांग्रेस से छीना था , उसका भी बहुत बड़ा हिससा भाजपा ने झटक लिया है । मुकसलम समुदाय तो बसपा से बहुत पहले ही दूर हो चुका है ।
चंद्रशेखर की चुनौती
नगीना से भारी मतों से जीतने वाले आजाद समाज पाटजी के चंद्रशेखर ने मायावती के लिए
बड़ी चुनौती पेश की है । वह प्रदेश में दलित राजनीति का मजबूत चेहरा बनकर उभरे हैं । चंद्रशेखर के आसपास दलित जितना ही गोलबंद होता है मायावती को उतना ही नुकसान होगा । वैसे भी इस बार के लोकसभा चुनाव में बड़ी संखया में दलित मतदाता सपा-कांग्रेस यानी इंडिया गठबंधन की तरफ खिसक गया है । बसपा ने चंद्रशेखर के खिलाफ सुरेंद्र पाल सिंह को उतारा था । सुरेंद्र पाल सिंह को महज 13,272 वोट मिले , जबकि चंद्रशेखर ने 5,12,552 वोट हासिल करके बड़ी जीत दर्ज की । कांशीराम ने अपने जीते-जी मायावती को अपना उत्िाधिकारी बनाया था , लेकिन नगीना से बड़ी जीत हासिल कर चंद्रशेखर ने बता दिया है कि उनकी लकीर कहीं और बड़ी है । अब दलित राजनीति का असली नेता चंद्रशेखर साबित होते हैं , या आकाश आनंद-मायावती की जोड़ी फिर कोई कमाल कर पाती है , यह आगे देखने वाली बात होगी ।
रणनीति बदलने को मजबूर
चुनावी हार से सबक लेते हुए बहुजन समाज पाटजी अपनी रणनीति मे बदलाव करने को मजबूर है । पाटजी अब उत्ि प्रदेश के बाहर दूसरे राजयों में गठबंधन साझेदार तलाशने शुरू कर दिए हैं । हरियाणा में वह इंडियन नेशनल लोकदल ( इनेलो ) के साथ विधान सभा चुनाव लड़ेगी । दोनों पार्टियों ने गठबंधन का ऐलान भी कर दिया
है । दोनों दलों के बीच सीटों का भी बंटवारा हो गया है । इनेलो 53 और बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी । देखना यह है कि मायावती ्या उत्ि प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर भी अपनी रणनीति में बदलाव करती हैं ?
उपचुनाव की चुनौती
लोकसभा चुनाव के बाद अब पाटजी की एक बार फिर परीक्ा उपचुनावों में है । बसपा की शुरू से यह नीति रही थी कि वह उपचुनाव नहीं लड़ेगी , लेकिन 2022 में उसने अपनी इस नीति से हटकर कुछ सीटों पर उपचुनाव लड़ा और परिणामों को प्रभावित किया । अबकी बार फिर बसपा ने पूरे दमखम के साथ उपचुनाव में उतरने का ऐलान किया है । प्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में बसपा और आजाद समाज पाटजी के आने से वोटों के बंटवारे की संभावना बढ़ गई है । ऐसे में यदि दलित , पिछड़ों और मुसलमानों का वोट बंटा तो माना जा रहा है कि इसका सबसे जयादा फायदा भाजपा को हो सकता है । कुल मिलाकर देखें तो बसपा का जनाधार खिसक चुका है । उसे चंद्रशेखर जैसे युवा आक्रामक नेताओं से तगड़ी चुनौती मिल रही है । दलित वोटों में बिखराव है । मायावती लनकषक्रय हैं । आकाश आनंद को अभी अपनी जमीन तैयार करनी है । ऐसे में बसपा का भविषय ्या होता है ? इस पर सभी की निगाह लगी हुई है । �
38 tqykbZ 2024