July 2024_DA | Page 24

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डा . आंबेडकर की दृष्टि में इलिाम का भाईचारा la

विधान निर्माता डा . भीम राव आंबेडकर ने इस कटु तथ्य को सवीकार करने का आग्रह किया था कि दुनिया भर के लोगों को यह जान लेना चाहिए कि इसलाम समपूण्य मानवता के साथ भाईचारे का सनदेश नहीं देता है । उनका भाईचारा और बंधुतव केवल अपने धर्मावलकमबयों के लिए है । इसलाम में एक बंधुतव तो है , परनतु उसका लाभ उनहीं तक सीमित है , जो इस संघ में है । जो संघ से बाहर है उनके लिए इसमें घृणा और शत्ुता को छोड़कर और कुछ नहीं है । इसके साथ ही इसलाम का एक दोर् यह भी है कि वह सामाजिक सवशासन की पद्लत है , जो सथानीय सवशासन से मेल नहीं खाती है । एक मुसलमान की राजभक्त ऐसे देशों में , जो उसका है , सथायी निवास करने पर भी नहीं खड़ी होगी , बकलक अपने धर्म पर आधारित होती है , जिसे वह अपना देश मानते हैं । जहां भी इसलाम का शासन है , वहां उसका अपना देश है ।
दूसरे शबदों में कहा जाये तो इसलाम एक सच्े मुसलमान को इसकी अनुमति कभी नहीं दे सकता है कि वह भारत को अपनी मातृभूमि माने और हिनदू को अपना समबनधी और आतमीय माने । डा . आंबेडकर के अनुसार इसलामी विचारधारा की सववोच्ता सभी समप्रदायों की एकता का ही विरोध करती है । किसी बहुसमप्रदाय वाले समाज में , वह निशचय ही सामानय समता के मार्ग में अवरोध बनकर आएगा । संप्रदाय का ऐसा दृकषटकोण आक्रामक विसतािवाद की प्रेरणा देता है । डा . आंबेडकर कहते है कि दलित- मुकसलम एकता का राग अलापने वाले लोगों को मुकसलम मानसिकता का अधययन करना चाहिए । मुकसलम मनोवृलत् तथा मुकसलम विचार को धयान
में रखकर देश के भविषय के समबनध पर विचार करना होगा । डा . अमबेडकर के अनुसार मुकसलम सबसे जयादा जातिवाद से ग्रसित समप्रदायों में से एक है । गुलामी के समबनध में मुकसलम समप्रदाय की राय बिलकुल अलग और बेहूदा है , इसका बहुत अधिक समर्थन मुकसलम समप्रदाय और इसलालमक देशों से हुआ था ।
डा . आंबेडकर का मानना था कि मुकसलम
राजनीलतज् जीवन के धर्मनिरपेक् पहलुओं को अपनी राजनीति का आधार नहीं मानते , ्योंकि उनके लिए इसका अर्थ हिनदुओं के विरुद्ध अपने संघर््य में अपने समुदाय को कमजोर करना ही है । मुकसलम जोतदार जमींदारों के अनयाय को रोकने के लिए अपनी ही श्ेणी के हिनदुओं के साथ एकजुट नहीं होंगे । पूंजीवाद के खिलाफ श्लमक के संघर््य में मुकसलम श्लमक हिनदू श्लमकों
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