दलित-मुकसलम गठजोड़ के रूप में देखा जा सकता है ।
दलित आंदोलन पलत्का दलित और मुकसलम वर्ग की एकता के विरुद्ध नहीं है , लेकिन राजनीतिक रूप से उस दलित-मुकसलम गठजोड़ का विरोध करती है , जिसका एकमात् लक्य हिनदू धर्म को नषट करना है । मेरा वयक्तगत मानना है कि लवलभन् विरोधी विचार के लिए राजनीतिक लोग वयक्तगत रूप से किसी लाभ के लिए गठजोड़ करते हैं , तो यह सामाजिक नहीं , बकलक वयक्तगत लाभ के लिए होता है । दलित-मुकसलम गठजोड़ सवाभाविक रूप से संभव नहीं है ्योंकि भारत में दलित वर्ग के निर्माण का कार्य मुकसलम आक्रांताओं द्ािा हिनदू समाज पर अतयाचार एवं उतपीड़न करके किया
गया था । ब्रह्मण हो या क्लत्य या फिर अनयानय वर्ग के लोग , उनहें डराकर तलवार की नोंक पर गंदे कार्य करने के लिए बाधय किया गया । उनकी बहू-बेटियों की असमत लूटने का भय पैदा करके उनहें निम्न पेशों एवं गंदे काम में लगाया गया ्योंकि वर्तमान भारत के असवचछ कार्य तो प्राचीन भारत में नहीं थे । इसलिए दलित-मुकसलम गठजोड़ कहा जाए या फिर दलित-मुकसलम एकता , सवाभाविक रूप से भारत में यह संभव नहीं है ।
भारत में दलित वर्ग के लोगों ने तथाकथित उच् जातियों के घर से जूठन तो मांग कर खाई है , पर मुकसलम वर्ग के हाथ के सपश्य का पानी भी कभी पीना सवीकार नहीं किया । यह उनकी अपनी धार्मिक मानयताएं थी । ऐसे में तथाकथित
उच् दलित राजनीति में दलित-मुकसलम गठजोड़ के किए जा रहे प्रयास सत्ा लोलुपता का अभिप्राय है । दलित-मुकसलम गठजोड़ से सत्ा हासिल करने के बाद भारत के इसलामीकरण के लिए जारी प्रयास और तेज होंगे , इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए । दलित-मुकसलम गठजोड़ से दलित , पिछड़े , वनवासी एवं वंचित वर्ग में धर्मानतिण को और बढ़ावा मिलेगा , यह समझना ही होगा । वैसे भी सवतंत्ता के बाद से देश में मुकसलम जनसंखया में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है । इसका एक अवैध रूप से जारी धर्मानतिण की वह प्रक्रिया भी है , जिसका शिकार दलित , पिछड़े , आदिवासी एवं वंचित वर्ग के हिनदू बने हैं । आज भी दलितों के विरुद्ध होने वाले 90 प्रतिशत उतपीड़न एवं आपराधिक
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