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कविता समझना मुवककल काम है पर थोड़ी कोविि के बाद बुवि समझ की वदिा में आगे बढ़ने लग ही जाती है । विर
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जब आप लग ही जाते हैं वक भला कविताओं में िे बातें, जो एक बार पढ़ने में भली लगती हैं और सिाल करती हैं | |||
पढ़ने िाले से, तब हमें कु छ और भीतर जाने की इच्छा होती है । ऐसा भी कह सकते हैं वक आप नहीं जाना चाहते हैं तब | |||
भी कभी कभी अपने भीतर खींच लेती है कविता, तब आप क्या करते हैं? थोड़ी रस्सा-कस्सी के बाद मैं उसके भीतर | |||
जाने को उतािला हो जाता ह । बस यहीं से जंग िुरू हो जाती है । कविता िह बात मनिाने लगती है जो काग़ज पर | |||
वलख दी गयी है और मैं उन बातों |
को खोज़ने लग जाता ह जो कही |
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गयी बातों की तह में वछपी होती |
हैं । इस तरह काग़ज पर वलखी |
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इबारत एक जररया बन जाती है मेरे |
वलए, िहां तक पह ंचने का, जहां |
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से कविता का उद्भि होता है । |
वनवित ही यह अमल पेचीदा है |
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लेवकन क्या करें जड़ तक पह ंच |
कर िापस ऊपर उठना ही कविता |
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को सहज समझने का अमल है । |
क्यों वक मैं समझना चाहता ह और |
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समझने के अमल में ही कहीं न |
कहीं समझाने या विर तबादला- |
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ए-खयाल का अमल जारी रहता |
है । इस तरह यह उस छोटे बच्चे |
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का अमल है जो चीज़ों को खोल |
कर देखना चाहता है और इस तरह |
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की लगातार प्रविया में विर िह |
इनको िापस जोड़ना भी सीख |
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जात है और उसमें नया नया |
इजािा करना भी सीख जाता है । |
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अगर इस प्रविया में िह ' ऐसा क्यों |
और कै से होता है?' से दो-चार |
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होना िुरू हो जाता है तो वनवित |
ही करने और सोचने के बीच के |
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पेचीदा अमल से भी िावकि हो |
जाता है । मैं |
सोचता ह |
वक |
कविताओं के साथ भी ऐसा ही |
होता होगा । इसवलए कहा तो यही |
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जाता रहा है वक रचनाकार ही
अपनी रचनाओं को सबसे बड़ा
जानकार होता है । यहां मैं आलोचक िब्द का इस्तेमाल नहीं करूं गा, क्यों वक इस िब्द के ठीक ठीक मायने अभी तक
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मेरी समझ में नहीं आये । बहरहाल, जहां तक कविताओं को समझने का सिाल है, इस प्रविया में मुझे अपनी बुवि के | |||
साथ साथ उन लोगों पर भी वनभभर रहना पड़ता है वजन्होंने इस मागभ पर चलने के वलए मुझे िुरू में आमादा वकया और | |||
मेरे सहज होने तक कमान नहीं छोड़ी । अब जब मैं अपनी कमान खुद सम्हाले हए ह तो यह वजम्मेदारी मुझ पर आ गयी | |||
है वक मैं उन लोगों की कमाल सम्हालू जो इस वदिा में सहज होने की जद्दोजहद में हैं । हालांवक यह एक मुगालता भी
हो सकता है लेवकन सुखद है । बना रहे, क्या हजभ है ।
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यहां |
से |
रास्ता |
बनता |
ह |
'' क्यों |
नहीं |
चल |
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गाहे-ब-गाहे |
क्य |
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कववता |
के |
|||
होनी |
ही |
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( उस्तरेबाज़) |