जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
मत्स्य और वत्रगति पड़ोसी देि थे । ईस समय वत्रगति का विस्तार ईत्तरी राजस्थान तक था | कांगड़ा को ― वत्रगति ‖ के ऄलािा ― नगरकोट ‖ के नाम से भी जाना जाता है ।
पंचम महा-जलप्लावन.... द्रापर के ऄंत में सरस्िती नदी के िेत्र में हुइ वजसमें द्राररका समुद्र में विलीन होगइ एिं सरस्िती नदी विलुप्त होजाने पर, कच्छ का रन बना एिं राजस्थान का िेत्र मरुभूवम में पररिवतित होगया |
वहमालय की पहावड़यों में प्राचीन काल से ही भूगभीय गवतविवधयााँ चलती रही हैं । हज़ारों साल पहले सतलुज( जो अज वसन्धु नदी की सहायक नदी है) और यमुना( जो ऄब गंगा की सहायक नदी है) के बीच एक वििाल नदी थी जो वहमालय से लेकर ऄरब सागर तक बहती थी । ऊग्िेद में, िैवदक काल में आस नदी सरस्वती को ' नदीतमा ' की ईपावध दी गयी है । ईस सभ्यता में सरस्िती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं ।
मानसरोवर से तनकलने वाली सरस्वती वहमालय को पार करते हुए हररयाणा, पंजाब ि राजस्थान से होकर
बहती थी और कच्छ के रण में जाकर ऄरब सागर में वमलती थी । ईत्तरांचल के रूपण ग्लेवियर से ईद्गम के ईपरांत यह जलधार के रूप में अवद-बद्री तक बहकर अती थी वफर अगे चली जाती थी | तब सरस्वती के तकनारे बसा राजस्थान भी हरा भरा था ईस समय यमुना, सतलुज ि घग्गर आसकी प्रमुख सहायक नवदयााँ थीं । बाद में सतलुज ि यमुना ने भूगभीय हलचलों के कारण ऄपना मागि बदल वलया और सरस्िती से दूर हो गइ| ं महाभारत में सरस्िती नदी को प्लििती, िेद-स्मृवत, िेदिती अवद नामों से भी बताया गया ही | पारवसयों के धमिग्रंथ जेंदािस्ता में सरस्िती का नाम हरहिती वमलता है । ऊग्िेद) २ ४१ १६-१८( में सरस्िती का ऄन्निती तथा ईदकिती के रूप में िणिन अया है । यह नदी सििदा जल से भरी रहती थी और आसके वकनारे ऄन्न की प्रचुर ईत्पवत्त होती थी ।
ऊग्िेद के नदी सूक्त में सरस्िती का ईल्लेख है, ' आमं में गंगे यमुने सरस्विी शुिुतद्र स्िोमं सचिा परूष्ट््या ऄतससन्या मरूद्वर्े तविस्ियाजीकीये श्रृणुह्या सुषोभया '|
कु छ मनीवर्यों का विचार है वक ऊग्वेद में सरस्वती वस्तुत: मूलरूप में तसंधु का ही पूवष रूप है क्योंवक गंगा, यमुना सरस्िती के ऄलािा ये सभी पांच नवदयााँ अज वसन्धु की सहायक नवदयााँ हैं छटिीं द्रर्द्रती है, वसन्धु नदी का नाम नहीं है | ऊग्िेद ७. ३६. ६ में सरस्िती को सप्तवसन्धु नवदयों की जननी बताया गया है | आस प्रकार आसे सात बहनें िाली नदी कहा गया है –
“ ईिानाह तप्रया तप्रयासु सप्तास्वसा, सुजुत्सा सरस्विी स्िोभ्याभूि ||
सातिीं बहन वसन्धु होसकती है जो ईस समय तक छोटी नदी रही होगी | सरस्िती के सूखने पर पांच सहायक नवदयों से अपलावित होकर अज की बड़ी नदी बनी | सरस्िती और दृर्द्रती परिती काल में ब्रह्मािति की पूिी सीमा की नवदयां कही गइ हैं ।
ऊग्िेद में सरस्िती के िल ' नदी देवत वाच् के रूप में देखा गया और ईत्तर िैवदक क ऄतधष्ठात्री देवी भी माना गया है और ब्रह्मा क
त्रेतायुग तक सरस्िती मौजूद थी | िाल् सरस्िती और गंगा को पार करने का िणिन है.
' सरस्विीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च,
परन्तु द्रापर युग में सरस्िती नदी लुप्त हो गइ महाभारत काल में तत्कालीन विचारों के अध पहुंचकर वनर्ाद नामक विजावतयों के स्पिि-दो
हड़प्पा सभ्यता की ऄवधकााँि बवस्तय की हडप्पा सभ्यता मूलतः सरस्वती सभ्यत
अधुवनक खोजों के ऄनुसार लगभग एवं सागरीय हलचलों में राजस्थान की भूत गंगा में वमल गयी तथा सतलज अवद ऄन्य नव
द्रारा समस्त भूवम पर ईत्पन्न जलप्रलय ने स्था पररिवतित होगइ | हररयाणा ि राज स्थानेसर, खतसर, रानीसर, पान्डुसर; पुष्कर सरस् एिं द्रापर युग में सरस्िती में जल प्रिाह कम र के ऄंत में सागरीय हलचल में गुजराि जो स
वहमालय की पहावड़यों
जो जल प्रलय... भूकम्पों... भू पररितिनों का क अयी के दारनाथ जलप्रलय एिं कश्मीर में
अध्यात्म ि ्यिहाररक संसारी जगत
मना जाता रहा है वजस प्रकार देि संस्कृ वत क मनु-स्मृवत का ईद्भि हुअ |
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.