जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की. 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ भीमराव अ
पर बााँध का दनमाशण होने लगता है । अब भीम्या और डोंगर गााँव के सामने दवकट सममया खडी हो जाती है । गााँव में दवकास के नाम पर आददवादसयों को दवमथादपत करने का षडयांत्र र्ुरू हो गया । ‚ दवकास के नाम पर सरकार जांगल पर कब्जा करने लगी थी । भूमांडलीकरण के नाम पर बडी बडी कां पदनयॉ ां जांगल में प्रवेर् करने लगी थी । पहाडों की खरीद दबिी र्ुरू हुई थी । आददवादसयों की बची खुची ज़मीनों को भी लूटने का षडयांत्र र्ुरू हुआ था । लालच ददखा कर दवमथादपत करने के प्रयत्न होने लगे थे । ये लोग भोली भाली आददवादसयों की बदल चढाने लगे थे । जांगल में व्यापार र्ुरू हुआ, कारखानदारों की भीड बढ रही थी ‛ 7 । इस तरह आददवादसयों के सांसाधनों का खरीद फरोख्त र्ुरू होने लगा लदकन भीम्या हार नहीं मानता है वह अपने लोगों को गैर आददवादसयों के प्रलोभनों से बचने का आग्रह करता और उन्हें जागृत् करने की कोदर्र् करता ‚ जागृदत्करण के नाम पर हमें जांगल से धके लने का षडयांत्र चल रहा है । यहााँ बडी बडी कां पदनयॉ ां आयेगी, आप लोग पैसे के लालच में अपनी ज़मीन उन्हें देकर दूर चले जायेंगे, पर अपना सांगठन अपनी एकता नष्ट हो जाएगी । पीदढयों से चली आ रही सांमकृ दत को नष्ट करके हम कहााँ जायेंगे ‛ 8 । भीम्या कोटश में बााँध दनमाशण पररयोजना के दवरोध में मुकदमा दजश करता है और न्यायालय में बााँध के बनने पर डोंगर गााँव मे आने वाली सममयाओां को न्यायालय के सामने रखता है । 8 । भीम्या कोटश में बााँध दनमाशण को लेकर कई सवाल उठाता है दजसका जवाब ददए दबना ही न्यायालय डोंगर गााँव में बााँध दनमाशण की दनणशय लेता है और कु छ ददनों में डोंगर गााँव को दवमथादपत करने का आदेर् आ गया । इसी सांदभश में दवनोद कु मार दलखते हैं- ‚ आददवासी क्या दसफश दवकास के नाम पर बदल चढने के दलए हैं ¿ आज़ादी के बाद से दवदभन्न पररयोजनाओां ने करोड़ों लोगों को उजडने पर दववर् दकया है । इन दवमथादपतों में तीन चौथाई आददवासी रहे हैं । आज भी उन्हें उजाडते और अपने पारांपररक पररवेर् और कु दरती सांसाधनों से वांदचत करने का दसलदसला जारी है । नाममात्र का मुआवजा देकर उनका सबकु छ छीन दलया जाता है । अगर वो इसके दलए राजी नहीं होते तो दनमशमता से उनका दमन होता है ‛ 9 ।
उपन्यास अांत तक आते आते दवमथादपत होने की पीड़ा को दसफश मनुष्य तक सीदमत नहीं रखता । आज डोंगर गााँव का पूरा पररवेर् दवमथादपत होने की पीड़ा में मौन व मतब्ध है । ‚ सब लोग अपनी – अपनी टीन, घास, लकडी, बैलगाडी में भरने लगे थे । जानवरों के बखारा ध्वमत हो रहे थे, गाय, बैल, कु त्े, दबल्ली सभी जानवरों की आाँखों से आाँसू बह रहे थे । गाय के बछडे चीखने लगे थे, घर का कु त्ा रोटी नहीं खा रहा था । पांछी चीव-चीव करते भागने लगे ‛ 10 । सभी एक साथ सरकार द्वारा तैयार दकए गए पुनवाशदसत गााँव में पहुाँचते दस बाय दस की जमीन पर पत्थर, ईटों ां के बनाये घर, दबजली के खांभे यहााँ पेडों की कमी सभी को खल रही थी नया डोंगर गााँव बांजर ज़मीन पर बनायी गई थी जहााँ ज्वार और बाजरे की फसल के अलावा कु छ नहीं होता वह भी रात में सुअर दहरण खा जाते, एक तरफ कु पोषण जैसी सममयाओां से आददवासी जूझ रहे थे वहीं नये डोंगर गााँव में भी पुदलस और नक्सदलयों की गोदलयों से मरने वाले के वल आददवासी ही थे । इसी सांदभश में रमेर् चांद मीणा कहते हैं- ‚ आददवादसयों के दलए नक्सदलयों में कु छ करने का जज्बा है पर जोर् में होर् खोना ठीक नही है । उन के द्धारा दहांसा के रामते चलने और सरकार द्धारा उठाये जा रहे कदम से दपसते आददवासी हैं । उन्हें लोकदतांत्रक कै से ¿ इस दवषय पर दवचार करने की ज़रूरत है ‛ 11
भीम्या का आिोर् बढता जा रहा था, उसन समझाता दक ‚ देर् की सांसद, कानून प्रजातांत्र दमटाना है । इस जांगल के एक भी मनुष्य को दनणयश लेते हैं । जांगल की सांमकृ दत भीम्या के सरकार के दरबार में जा रहे थे ।..... सांदवधान क आददवासी अपना अदमतत्व खोज रहा था ‛ 13 । था । ददल्ली को दनकाला हुआ मोचाश अगले दद पूरे देर् में उसकी गू ाँज सुनाई देने लगी, ज आददवादसयों को उनकी सममयाओां से बाहर गााँव की पररदमथयों की जााँच पडताल के दलए माध्यम से आददवासी जीवन की सामुदहकत पुनदजशदवत करता हुआ आददवासी समाज के ब की कथा है ।
सांदभश:
1. आिोर्, बाबाराव मडावी, अनुवाद, तोंड 23.
2. दनजघरे परदेसी, रमदणका गुप्ता, वाणी प्रकार्
3. आिोर्, बाबाराव मडावी, अनुवाद, तोंडा
4. वही, पृ. 49.
5. वही, पृ. 13.
6. वही, पृ. 48. 7. वही, पृ. 67-68.
8. वही, पृ. 68.
9. दवकास की अवधारणा, दवनोद कु मार, अन
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.