जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
के पचास साल बाद भी प्रासंदगक बने हुए हैं आसदलए अज आस बात की अिश्यकता ऄदधक है की हम ईन मुद्दों पर खुलकर बात करें. ईनको अज के पररदृश्य में समझना बहुत जरुरी है. साथ ही यह भी समझना जरुरी है दक डॉ. अंबेडकर को दकन पररदथथयों ने बनाया. ईन्हें दकन लोगों ने बनाया? िे कीससे प्रेरणा प्राप्त करते रहे. ईनके आतने दिराट व्यदित्ि में और दकन लोगों क व्यदित्ि शादमल है. साथ ही लगातार ईनकी अिश्यकता महसूस की जा रही है. दकसी शायर ने दलखा था‘ देखा नहीं जाता है मगर देख रहा ह ाँ, बरसात में जलता हुअ घर देख रहा ह ाँ. डॉ. ऄम्बेडकर ने एक ऄदृश्य भारत को आसी तरह से जलता हुअ देखा था.
१३ ऄिू बर १९५४ को ददल्ली के अकाशिाणी कें द्र से प्रसाररत ऄपने भाषण में डॉ. अंबेडकर कहते हैं दक‘ मेरा जीिन दिषयक दशिन तीन शधदों में समादहत है. थितंत्रता, समता, बंधुत्ि. फ्रें च राज्यक्रांदत से मैंने जीिन दशिन ईधार दलए हैं ऐसा कोइ न समझे. मैंने ऐसा नहीं दकया, यह मैं दािे के साथ कह सकता ह ाँ. मेरे दशिन का मूल राजनीदत में न होकर धमि में हैं. ऄपने गुरु गौतम बुद्ध की दशक्षाओं से ही मैंने आस दशिन को ग्रहण दकया है. 14 डॉ. अंबेडकर १४ ऄप्रैल १९४५ को ५५ िषि के पुरे हो गए थे. आसदलए मद्रास के ददलतों द्रारा प्रकादशत‘ जयभीम’ पदत्रका ने ऄपना दिशेषण प्रकादशत दकया था. ईस पदतका को अंबेडकर ने कहा था दक मेरे पचपनिे जन्मददन के ऄिसर पर प्रकादशत होने िाले अपके दिशेषांक के दलए अप लोगों ने मुझे सन्देश भेजने के दलए कहा है. भारत में राजनीदतक नेता को दकसी धमिसंथथापक नेता के तौर पर थथादपत दकया जाता है, यह बड़ी खतरनाक बात है. ऄन्य राष्ि में लोग ऄपने ऄपने धमि संथथापकों की जयंती बहुत धूमधाम से मनाते हैं. दकन्तु दसफि भारत में धमि-पुरुषों दक तरह राजनीदतक नेताओं दक जयंती के ऄिसर पर ईत्सि मनाये जाते हैं यह बहुत गंभीर बात है. मेरा जयंती मनाना मुझे खुद ऄच्छा नहीं लगता. मुझे व्यदिपूजा दबलकु ल पसंद नहीं है. क्योंदक व्यदिपूजा जनतंत्र के दखलाफ है. 15 आस प्रकार हम देखते हैं दक डॉ. अंबेडकर जैसा महान व्यदित्ि बहुत सारे अयामों, व्यदित्िों से प्रभादित होता है और हजारो-हजार सामादजक, अदथिक, सांथकृ दतक, राजनैदतक दपछड़ों को नायक की श्रेणी में शादमल कर देता है.
14 प्रा. भा. प. गाजये-डॉ. फाफासाहेफ आम्फेडकयची बाषणे, खंड-7, अशोक प्रकाशन, नागऩुय, १९८५, ऩृष्ठ-१४९
15 औय फाफा साहेफ आंफेडकय ने कहा.... खंड-4, डॉ. बीभयाव याभजी अम्फेडकय, ऩृष्ठ १८
डॉ. रववता कु मारी सहायक प्राध्यापक
उत्तराखंड संस्कृ त ववश्वववद्यालय हररद्वार
आज के समय में आददवासी दवमर्श को लेकर चलने लगी है । वहीं उनके उपेदित जीवन वृत् प्रमादणक और सर्क्त रूप से दजश हो रहा आददवादसयों की आवाज़ अलग- अलग भा सुनाई पड़ती है । दवगत वषों में भारत के अल गोंड, कबूतरा, कां जर, दमज़ो, सहररया आदद प भाषाओां में सदिय लेखन आददवासी दवमर्श क
आददवासी भारत के मूल बादर्ांदा, इस धरती क का सहयात्री जो सहनर्ीलता की हद तक सह उसके पास अदभव्यदक्त की ताकत नहीं थी दफर माध्यम से अदभव्यक्त होता रहा । आज आददव माध्यमों से अपने अदधकारों की लडाई लड रह
इसी श्ृ ांखला में मराठी उपन्यासकार बाबाराव अनवरत जीवन सांघषश का दमतावेज़ है ।‘ आ दजसका दहांदी अनुवाद तोंडाकु र लक्ष्मण पोत आददवादसयों का जीवन गैर आददवादसयों के लोगों के आने से पूवश दकस तरह सब खुर्हाल था । जो सेठ प्यारेलाल जैसे गैर आददवादसयों र्ोषण और दवमथापन जैसी अनेक सममयाओ उपन्यास का मुख्य पात्र भीम्या के नेतृत्व में आ के दवरूद्ध एकजुट होते हैं । आददवासी उनके द जांगल और ज़मीन को नष्ट कर दवकास की क मुख्यधारा की अवधारणा से है । यहााँ उपन्यास दनवास करते इन जनसमूहों को उनके जमीनों स की बातें हो रही हैं, दजन्होने दवकास के र्ोध
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.