Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 105

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
डॉ. रतन लाल हिन्दू मिाहवद्यालय, हदल्ली हवश्वहवद्यालय
आम जनता इततहास की मोटी मोटी तकताबें नहीं पढ़ती और न वे तफ़लहाल सक्षम हैं, वे तो तसर्फ प्रतीकों द्वारा ही अपने नायकों को जान सकते हैं, पहचान सकते हैं और इन्ही प्रतीकों द्वारा उनमे आत्मतवश्वास, जागृतत और उजाफ का सन्चार होता है.
कल बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर की १२५वीं जयंती थी. सबसे पहले अपने घर पर ही लगे बाबा साहब की मूततफ पर पुष्प अतजफत तकया और उसके बाद अम्बेडकर कॉलेज, स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज और ग्वयेर हॉल में आयोतजत कायफक्रमों में तहस्सा तलया. अंत में, सहारा नेशनल पर आयोतजत तडबेट‘ बाबा साहब के सपनों का भारत’ में तहस्सेदारी हुई. तदन भर तवतभन्न धारा-तवचारधारा के बुतद्धजीतवयों, छात्रों, कायफकताफओं, पत्रकारों से तमलना-जुलना हुआ और तवमशफ के दौरान तनतित रूप से मेरे ज्ञान में इजार्ा हुआ.
एक उलझन में ह ूँ: व्यतिगत रूप से नातस्तक ह ूँ, पूजा-पाठ नहीं करता, मेरे घर में तकसी देवी-देवता की मूततफ या तचत्र नहीं है, तकसी कमफ-कांड में तवश्वास नहीं रखता, तकसी भी तदन कु छ भी खा सकता ह ूँ इत्यातद इत्यातद. हाूँ, मेरे कैं पस में
बाबा साहब का बस्ट जरुर है और उनकी जयंती / पुण्य तततथ पर पुष्प-अचफन और अगरबत्ती जरुर जलाता ह ूँ. लेतकन कल मेरे एक‘ वामपंथी’/’ धमफतनरपेक्ष’ तमत्र और कु छ अतत-उत्साही‘ धमफतनरपेक्ष’ तमत्रों के एक विव्य से थोड़ा उलझन में पड़ गया. मुझे अपने तवचारों पर भी शंका होने लगी. इन‘ बुतद्धजीतवयों’ का कहना और समझना है तक इस तरह से बाबा साहब की जयंती मनाना एक तरह से‘ ब्राह्मणवाद’ और उनके कमफकांड की ही जीत है.
सवाल उठता है, क्या तकसी महापुरुष को श्रद्धा-सुमन अतपफत करने पर ब्राह्मणवाद कॉपी-राईट ली हुई है. हाूँ, यह बात अलग है तक जयंती तकस तरह से मनाई जाय, उनके पास कोई ठोस तवकल्प नहीं था. दूसरे, उनमें से ज्यादातर न तो बाबा साहब के तसद्धांतों को मानते हैं और न गहराई से उनके दशफन को समझने की कोतशश करते हैं. हाूँ, थोड़ा बहुत पढ़ते होंगे, कररयर चमकाने के तलए और‘ ज्ञानी’ बनने के तलए. तीसरी बात इन‘ धमफतनरपेक्ष बुतद्धजीतवयों’ के घर में उनके माता-तपता भी पूजा-अचफना करते होंगे, कई कमफकांड की करते होंगे. प्रश्न उठता है, उनके माता-तपता के पूजा- पाठ करने, और धमफ के राजनीततकरण करने में कोई र्कफ है क्या? मुझे लगता है, है! बातक आपके कमेंट्स के तलए छोड़ देता ह ूँ.
अम्बेडकर पू ंजीवाद और ब्राह्मणवाद दोनों से. तसद्धांतों का प्रचार-प्रसार करेंगे? क्या वे इ शोषणकारी, दमनकारी व्यवस्था की मौत है. औ मजदूर, तकसान, दतलत, आतदवासी और अन्य
माक्सफवाद और अम्बेडकरवाद एक तवज्ञान है, तबना पढ़े कोई भी व्यति न तो सच्चा माक्सफव को समझ सकते हैं, वे इसे जतना से कनेक्ट
तकताबें पढ़ कर उन्हें समझने में असमथफ हैं. अ तपछले 15-20 वषों में ही हुआ है. अब प्रश्न उ गई मोटी-मोटी तकताबों द्वारा हुआ है, उनके कारण हैं.
मुझे लगता है, आम जनता इततहास की मोट प्रतीकों द्वारा ही अपने नायकों को जान सकते और उजाफ का सन्चार होता है. कबीर, रतवदास भाषा में, साधारण प्रतीकों और मुहावरों द्वारा प्रचार तकया था. इसतलए प्रतीकों के मायने अ उसके अंदर तछपे षड्यंत्रों इत्यातद को जानने होता जा रहा है और इससे तजन्हें परेशानी है, उ
जय भीम!
अब सबसे महत्पूणफ सवाल: प्रतीकों का क्या मतलब होता है? माक्सफ ने कहा था, ‚ The philosophers have interpreted the world in various ways, however the question is how to change it.‛ माक्सफ दुतनया के पहले दाशफतनक थे, तजन्होंने वैज्ञातनक दृतिकोण से दुतनया को समझने के साथ-साथ दुतनया को बदलने का भी तसद्धांत तदया, बाबा साहब भी इसी श्रेणी के दाशफतनक थे. माक्सफ पू ंजीवाद से मुति का रास्ता बता रहे थे और
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.