Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 74

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
द्वारा आयोमजत १२४ वे उन्मुखी कायाक्रम में कु ल ३१ प्राध्यापक सदस्य हैं । ये ३१ प्राध्यापक ११ राज्यों से संबंमधत हैं पर ९ राज्यों में कायारत हैं । यह ९ राज्य इसप्रकार हैं – महमाचल प्रदेश , हररयािा , उत्तराखंड , आसाम , पमिम बंगाल , उत्तर प्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , कन ाटक , के रल । १६ मवर्षयों से संबमधत ये प्राध्यापक मवज्ञान , वामिज्य , कला , इंजीमनयररंग , पेंमटंग , संगीत , योगा , कं प्यूटर सायंस , फ़ू ड टेक्नोलॉजी आमद संकायों से संबमधत हैं । अध्ययन की सुमवधा की ्टमसे से हमने इन्हें चार वगों में बाँटा है –
1 . कला मवभाग 2 . वामिज्य मवभाग 3 . मवज्ञान मवभाग 4 . अन्य कलाएँ ( Performing Art )
ग्राफ क्रमांक १ . आगे मदखाया जा रहा है
उपयु ाक्त ग्राफ क्र . २ में प्रश्नावली भरकर देनेवालों की संख्या दी गयी हैं । कु ल ३१ प्रमतभामगयों के ३१ फॉमा मवतररत मकए गए । उनमें से २३ प्रमतभामगयों ने फॉमा भककर वामपस कर मदए । २३ में ०२ मवद्यावाचस्पमत नहीं हैं । शेर्ष ०८ प्रमतभामगयों में मजन्होंने फॉमा वामपस नहीं मकया उनमें ०४ मवद्यावाचस्पमत हैं तो ०४ मवद्यावाचस्पमत नहीं है । ३१ में से कु ल २१ प्रमतभामगयों की प्रश्नावली के आधारपर
जो अवलोकन मकया गया इसे मनम्न रूप से प्रस्तुत मकया जा रहा है –
िोधकायों में उसल्लसखत पररकल्पनाएँ ( Hypothesis ) : अिलोकन
पररकल्पना अथाात शोध काया शुरू करने से पहले मकए गए पूवाानुमान है । ये पूवाानुमान शोधकाया के मलए मनमित लक्ष्य की ओर बढ़ने के मलए प्रेररत करते हैं । ये अनुमान हैं , मसद्ध हो भी सकते हैं या नहीं भी । यह एक मवचार है जो स्वानुभव या परानुभव से भी होता है । शोधकाया आरंभ करने के पूवा पररकल्पना का मनम ाि आवश्यक है या नहीं , इस पर मतभेद हैं इस मत को प्रमतपामदत करते हुए डॉ मवनयमोहन शमाा मलखते हैं – “ एक मत के अनुसार पररकल्पना तभी मनममात की जा सकती है जब मवर्षय का शोधकाया काफी आगे बढ़ जाता है । क्योंमक शोधकाया के पूवा पररकल्पना की स्पसे कल्पना नहीं हो सकती । ------- --- --- - - दूसरा मत – जो पररकल्पना को शोधकाया के पूवा आवश्यक मानते हैं । ये दोनों मत मवर्षय के प्रकार को देखकर मान्य या अमान्य मकए जा सकते हैं । १ पररकल्पना की व्याख्या करते हुए डॉ . मतलकमसंह मलखते हैं – “ शोधकाया में पररकल्पना या प्राक्कथन का शामब्दक अथा है पूवा का कथन अथ ात पहले कहना । शोध काया में प्राक्कथन का अथा है शोध क्षेत्र में प्रवेश की प्रेरिा , मवर्षय मवशेर्ष के प्रमत संस्कार , शोधकाया की प्रमक्रया आमद का उल्लेख । २
प्रश्नावली में कई प्रमतभामगयों ने पररकल्पना की व्याख्या मनम्न रूप से की है –
� पररकल्पना का अथा है समस्या के उत्तर के रूप में प्रस्तामवत अनुमानों को ही पररकल्पना कहा जाता है । - योगा प्राध्यापक
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Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017