Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 57

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
वे सभी आराम से बेल्ट बांधे कोई न कोई मैगजीन मलए मशरुफ़ मदख रहे थे । ऐसे में, मै अपने डर को मदखा कर उन्हे स्वयं पर गवा-करने का मौका नहीं देना चाहती थी । सबकी बेल्ट लग चुकने पर भी जब मेरी नहीं लगी तो साथ बैठी मेरी एक सहकमी ने बेल्ट को बांधने में मेरी मदद की मजसकी मुझे मनहायत आवश्यकता थी । जैसे ही जहाज ने रनवे पर दौड़ना शुरू मकया वैसे ही मेरी हृदय-गमत भी तेज होने लगी । जैसे-जैसे उसकी गमत और आवाज बढ्ने लगी, वैसे- वैसे मुझे अपनी तेज धड़कन महसूस होने लगी और लगा मक जैसे अभी मदल बाहर आ जाएगा । हृदय- कपाट तो बंद थे पर अंदर ही अंदर भावनाओंका जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था अपने पूिा आवेग के साथ मजसने मुझे मजबूर मकया कलम उठाने के मलए । पर जल्द ही ये भय और मझझक धीरे-धीरे मनकलने लगे थे जैसे ही जहाज अपनी सामान्य उड़ान-मस्थमत में पहुंचा । यहाँ का ्टश्य देख मै अमभभूत हुये मबना न रह सकी । बादलों के ऊपर-नीचे उड़ता ये एलेक्रोमनक- पक्षी मेरी‘ बचपनी- आकांक्षा’ पूमता का साधन बना हुआ था । मखड़की से बाहर मटकी मेरी आंखे उन बादलों के लच्छों को टकटकी लगा मनहार रही थी जो कभी तो मबलकु ल सफ़े द रुई के फ़ोहों जैसा तो कभी साँझ-सरीखी श्यामल चादर जैसी होने का आभास दे रहे थे और मदखते-छु पते मानो मुझसे आँख-ममचौली खेल रहे हो । प्रकृ मत के ऐसे सु ंदर रूप को देखने का मेरा यह पहला अनुभव था मजसे मै पूरी तरह कै श करना चाहती थी । उन रुई के पहाड़ों को पकड़ने की इच्छा भी बलवती हो रही थी । मन मचल रहा था मक कै से भी मखड़की से हाथ मनकाल उठा लू कु छ महस्सा उन फ़ोहों का, वैसे ही जैसे हम बस में बैठे खरीद लेते हैं मखड़की से मू ँगफली या अमरूद सरीखी चीजें । प्रकृ मत के इस रूप ने मेरे खाली मन को भरना शुरू मकया जो कब का खाली पड़ा था शायद ऐसे ही मकसी वास्तमवक‘ लैण्ड-स्के प’ के मलए । बादलों से भी ऊपर
चमकता प्योर नीला आकाश मानो अपने असली स्वरूप को मदखाने हेतु आतुर था मजसे हम जमीन से इस रूप में तो कभी देख ही नहीं सकते क्योंमक हमेशा एक धु ंधलका { पोलुशन लेयर } बीच में दीवार की तरह तना रहता हैं और आज मै उस पल को जी रही थी मजसकी उम्मीद मैने बचपन में की थी । दूर तक फै ला नीला आकाश मुझे‘ मनु’ की याद मदला गया, वही मनु जो पवात की चोटी पर बैठ नीहार रहा था उस जल प्लावन को जहां उसे‘ एक तत्व’ की ही प्रधानता मदख रही थी । मुझे भी मात्र एक आकाश तत्व ही मदख रहा था । उसी में मेरा आनन्द छु पा था । यहाँ मानो मै मनु के भावों से तादात्मय कर रही थी । मखड़की की सीट होने के कारि मुझे बीच-बीच में इस एलेक्रोमनक-पक्षी के पंख भी मदख जाते थे जो मुझे इस एहसास से भर दे रहे थे मक मै मकसी बड़े पक्षी पर सवार हूँ जो मुझे उड़ाए ले जा रहा हैं कभी बादलों के ऊपर तो कभी उसका सीना चीरते हुये सपनों के देश में । एयर होस्टेस जो खाना देकर गई थी वह अभी भी यू ही रखा था । साथ की सीट पर बैठी मेरी सहकमी ने मुझे हाथ से मझझोड़ा तो लगा मक जैसे नींद से जगी हूँ । खान-पान से मनवृत हुये ही थे मक सीट बेल्ट बांधने की उद्घोर्षिा हुई क्योंमक उस पक्षी को अपनी उड़ान पर िेक लगा नीचे की ओर आना था अथ ात‘ लैण्ड’ करना था । डेढ़ घंटे की इस यात्रा ने न के वल आसमान की ऊँ चाइयों को छू आने की हसरत को पूरा मकया बमल्क पृथ्वी की वस्तुओं को भी समग्र रूप में देखने की एक नई ्टमसे भी मवकमसत की । नीचे की ओर आता वह मवमान उसी तरह डरा रहा था जैसे उसने उड़ान भरते डराया था मकन्तु अब मै डर नहीं रही थी बमल्क उसके मोह-पाश में बंध चुकी थी । अब मेरी ्टमसे धरती की हररयाली देख अचंमभत थी । बड़े-बड़े खेत मामचस की हरी डब्बी होने का एहसास दे रहे थे तो घर की मबमल्डंगे भी रंग-मबरंगी डब्बी सरीखी मदख रही थी । मॉल की बड़ी मबमल्डंगे मजनके पास खड़े
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017