िासहसययक सिमिक: यािा िृतांत
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
िासहसययक सिमिक: यािा िृतांत
" मही " के सकनारे-सकनारे नौ सदन कारुलाल जमडा ा़
पमिमी मध्यप्रदेश से मनकलकर राजस्थान के वागड़ क्षेत्र को हरा-भरा और समृद्धशाली करने वाली मही( माही) को कं ठाल क्षेत्र की अथवा
वागड़ की गंगा भी कहा जाता है । उद्गम से लेकर सागर संगम तक इसका अप्रमतम सौन्दया और गहन गंभीरता देखते ही बनती है । मही के धाममाक और पौरामिक महत्व ने सदा से ही मुझे उसकी ओर आकमर्षात मकया है । इससे प्रेररत होकर ही इसके मकनारे-मकनारे प्रवास का मनिाय मलया । धार मजले के सरदारपूर में ममण्डा गांव से लेकर गुजरात के खंभात में सागर ममलन तक मही करीब ७५० मकलोमीटर का सफर तय करती है ।
रतलाम मजले की बाजना तहसील में बहती है । यहाँ समतल पठार से होकर पहाड़ों के बीच सघन वन में होकर अपनी राह बनाती है । यहीं गढखंखाई माता मंमदर, मजसे उच्चानगढ़ भी कहा गया है, पर मैने अपना पहला पडाव ा़( रामत्र मवश्राम) डाला । नदी की मवशालता और टेढ़ी-मेढी ा़सड़कें हर एक को अपने मोहपाश में बांध लेती है । यह दैवीय स्थल वनांचल के आमदवामसयों की गहन आस्था का के न्द्र है । यही कारि है की यहीं से मही को भी देवी का दज ा स्वत: ही ममल जाता है । नदी से के वल दस मकलोमीटर पूवा की ओर नायन कस्बे के मनकट ही नदी तट पर प्राकृ मतक प्रागैमतहामसक गुफाओं के दशान कर आगे बढ़ने पर मही सघन वनों में से गुजरती मदखाई देती है ।
मागा न होने से शैलानन् पहामड़यों में अवमस्थत के दारेश्वर महादेव के दशान करता हुआ मैं पहुँचता हूँ राजस्थान की महती जल पररयोजना " माही बजाज सागर बाँध " के बैक वाटर पर । यहाँ अथाह जलरामश के बीच राजस्थान-मध्यप्रदेश अंतरप्रांतीय मागा पर बना एक मवशाल सेतू अपनी बाहें फै लाये सैलामनयों का स्वागत करता मदखाई देता है । एक पल को ऐसा लगता है मक कहीं मही ने यहीं तो खुद को सागर को सममपात नहीं कर मदया । इस नज़ारे ने कदमों को रोका और यात्रा का दूसरा मवश्राम यहीं रहा । समय भी ठहर सा गया था । चारों ओर पानी ही पानी । प्रमतपल समंदर सा अहसास ।
मही के साहचया में अपने तीसरे पडाव ा़ की ओर बढ़ने के पूवा मैंने मही के आँचल में बसे बांसवाड़ा के ऐमतहामसक महल, मही की नहर पर मवकमसत मकये गये कागदी उद्यान और मंदारेश्वर महादेव के दशान मकये । यहाँ पयाटन मवकास मनगम की
व्यवस्थाएँ बमढ़या हैं । कलात्मक मूमतायों के मलए मशहूर तलवाड़ा के पास मस्थत शमक्तपीठ माँ मत्रपूरा सु ंदरी यहाँ का प्रमसद्ध तीथा स्थल है । तीसरी रामत्र " माँ " की शरि में ही बीतायी । अगला पडाव ा़ माहीडेम था । माही-बजाजसागर पररयोजना ने इस वनांचल के मवकास की इबारत मलख दी है । चारों ओर हररयाली ही हररयाली नजर आती है ।
मही यहाँ से माही( साथी) भी पुकारी जाने लगी है । मही के पठार में बसा कं ठाल क्षेत्र अपने भीतर कई ऐमतहामसक रहस्यों, मकवदंमतयों और धाममाक-सामामजक आंदोलनों को समेंटे हुए है । अपनी पमवत्र धारा से ' मही ' ने दमक्षि राजस्थान की इस धरा पर समृमद्ध की अमृत वर्षाा कर दी है । मही की यहाँ से आगे की यात्रा लंबे- चौडेा़ पठारी क्षेत्र में तय होती है । मही के कछार में फै ले इस मैदान को " छप्पन का मैदान " कहा जाता है । ऐसा माना जाता है मक इस
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017