Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 52

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
ये सब बाज़ार की चीज़ें हैं, अपनी चीज़ क्या लाये ।
इसे नादामनयाँ समझें मक मकस्मत का मलखा मानें समन्दर में तो मोती थे मगर पत्थर उठा लाये ।
इसी उम्मीद पर तो टूटती है नींद लोगों की नयी तारीख़ आये और वो सूरज नया लाये ।
तुम्हारे हुस्न के आगे हज़ारों चाँद फीके हैं तुम्हारे हुस्न को ही देखकर हम आइना लाये ।
िम् प क – डॉ डी एम समश्र 604 सिसिल लाइन्द् सनकि राणाप्रताप पीजी कालेज िुलतानपुर 228001 मो नं 9415074318
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2 संभाले रहें हैं संभलने की हद तक मबखरता रहा मन मबखरने की हद तक
कहाँ था मकनारा, कहाँ बह के आये मबछड़ते गये हम मबछड़ने की हद तक
छु पाया था अबतक जो पलकों के भीतर छलक वो रहा है, छलकने की हद तक
गगन को पता है मक धरती तपी है तो बरसा है बादल, बरसने की हद तक
ये कै सी है उलझन, कमशश है ये कै सी भटकता रहा मन, भटकने की हद तक
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भािना की गज़लें 1
है दरीचे न मखड़मकयाँ घर में क्यों भला खुश हों बेमटयाँ घर में
अब हवाओं में दहशतें हैं बहुत चुप-सी बैठी है मततमलयाँ घर में
खोल ही देगी पोल ररश्तों का बढ़ रही है जो दूररयाँ घर में
हो के तन्हा जो कभी धूप में मनकलते हैं साये यादों की मेरे-मेरे साथ साथ चलते हैं
दूर जाती है उनके कदमों से मंमजल अक्सर वो जो हर वक्त अपना रास्ता बदलते हैं
सात फे रों में जहाँ बांधें जाते हों ररश्ते उस गृहस्थी में नये ख्वाब रोज़ पलते हैं
हम तो गमदाश में ढूंढ लेते हैं खुमशयाँ अपनी इस तरह से भी कई बार हम संभलते हैं
मखमली लगती है धरती तुम्हारी बातों-सी भोर में जब कभी हम घूमने मनकलते हैं
लाडली जब गई है अपने घर बेसबब क्यों है मससमकयाँ घर में
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आज गूगल का है जमाना हुजूर कौन लाता है पोमथयां घर में
एक बड़ी मुस्कान लबों पर हो, तो हो टीस बला की मदल के अंदर हो, तो हो
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017