Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 366

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पोर्षि मकया है क्योंमक इसकी माँ आप को बहुत रुपया देती है । इसकी माँ वेश्या है जो आप की छत पर बैठी है ।” 23 वह चाहकर भी उस दलदल से मनकल नहीं पा रही है । समाज उसे मनकले ही नहीं दे रहा है । श्यामा को वेश्या बनाने का मजम्मेदार कौन है ? क्या वह स्वेच्छा से वेश्या बनने गयी थी ?
‘ मबंदा महाराज ’ कहानी का मुख्य पात्र मबंदा महजड़ा है । उसके अन्दर मानवीय व्यापकता और संवेदनशील हृदय की गहराई है लेमकन स्त्री-पुरुर्षेतर होने के कारि उसे उपेमक्षत जीवन व्यतीत करना पड़ता है । मबंदा महाराज जैसे तमाम स्त्री-पुरुर्षेतर व्यमक्त इस तरह के उपेमक्षत जीवन व्यतीत करते हैं । इन्हें सामान्य जीवन धारा से मबल्कु ल अलग करके देखा जाता है । क्या इस तरह के व्यमक्तयों की यही मनयमत है ? क्या समाज द्वारा उपेमक्षत यह पात्र , अपनी इस मस्थमत के मलए स्वयं मजम्मेदार है ? अगर नहीं , तो आमखरकार क्यों वह समाज में सामान्य जीवन जीने का अमधकारी नहीं है ? क्यों समाज में अलग-थलग जीवन जीने के मलए मजबूर है ? क्या हमारा समाज इतना क्रू र और मनमाम है मक प्रकृ मत प्रदत्त इस कमजोरी में उस व्यमक्त का साथ देने की जगह उपेमक्षत जीवन जीने के मलये मजबूर करें ? जबमक इसमें उस व्यमक्त का कोई दोर्ष नहीं । मशवप्रसाद मसंह कहते हैं मक “ मैं उस उपेमक्षत जीवन को भी एक मूल्य देना चाहता था ,
मजसके अन्दर पीड़ा का बोध , मानवीय पीड़ा को भी लाँघ जाता है । जो पुरुर्ष नहीं दे पाता , नारी नहीं दे पाती , वह एक महजड़ा दे जाता है ।” 24
मशवप्रसाद मसंह की कु छ कहामनयों में जैसे सँपेरा आमद को छोड़कर अंधमवश्वास का नकार मदखाई देता है । इस तरह की कहामनयों में ‘ पापजीवी ’, ‘ कलंकी अवतार ’, ‘ कमानाशा की हार ’ आमद हैं । मशवप्रसाद मसंह इस बात को अच्छी तरह समझ गये थे मक हमारे समाज में सामामजक , आमथाक शोर्षि से ज्यादा भयावह धाममाक शोर्षि होता है मजसमें व्यमक्त छटपटा भी नहीं सकता । जब तक व्यमक्त के अन्दर से ईश्वरीय डर , अंधमवश्वास आमद नहीं मनकलेगा , तब तक शोर्षि की जड़ें ऐसे ही मजबूती के साथ गरीबों का शोर्षि करेंगी । इसी मलए इनकी कहामनयों में ईश्वर , अन्धमवश्वास और अवतारी पुरुर्ष को प्रश्न मचह्न के कटघरे में लाकर खड़ा मकया है । ‘ कलंकी अवतार ’ कहानी में रोपन सफे द घोड़े पर सवार व्यमक्त को देखता है तो उसे पुजारी की बातें याद आती हैं । कमलयुग में अत्याचाररयों के संहारक श्वेत घोड़े पर सवार कृ ष्ट्िकाय कांमत वाले भगवान ‘ कलंकी अवतार ’ लेंगे । उस अवतारी पुरुर्ष को देखकर रोपन की आँखों से झरझर आँसू मगरने लगता है । वह सोचता है मक आज अत्याचारी जमींदार भेदुमसंह के कु कमों की सजा ममल कर रहेगी । वह उस अवतारी पुरुर्ष के पीछे-
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017