Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
को बेहतर मन ष्ट् ु य बनाना है। यह आध म ु नकता का एक
साकारात्मक सरोकार है , मजन्हें हम महत्वप ि ू ा मानकर
चलते हैं , मक चामहए भी। के दार भी प छ
ते हैं –
क्या मैं रख सकता हू
एक टूटा हुआ बाल
काया और कारि के बीच म
म झ ु े मकस तरह पता चलेगा
मेरी भ ख
म
मेरी पीठ का द ख
ना
शाममल है या नहीं
ISSN: 2454-2725
मैं क्यों
और मकस तका से महन्दू हू
क्या मैं कभी जान पाऊँगा ? 12
एक खास बात उक्त कमवता में लमक्षत करन
लायक है। कमव अ त ं में यह सवाल करता है मक वह
मकस तका से महन्दू है। धमा से सवाल करना और धम
- जहाँ तका के मलए बहुत ही कम अवकास है - स
तका की आका क्ष
ा करना एक ऐसा साहस है मजसक
तार कहीं न कहीं आध म ु नकताबोध से ज ड़ ु ते हैं। और
हमें ओढ़ी हुई आध म ु नकता के बरक्श सही और
मौमलक आध म ु नकता की ओर ले जाते हैं , मक उधर
जाने की भ म ू मका तैयार करते हैं। यह बोलना या प छ
ना
कई तरीके से के दार की कमवताओ ं में आता है।
कलाकार से कमवता में कमव ने वही स्वाल उठाया ह
– यह कलाकार की अपनी आजादी है – कहने की,
रचने की और एक नई द म ु नया के मलए आवाज उठान
की। इस कमवता में के दार कहने-मलखने की महत्ता को
प्रमतपामदत करते हैं – वह जो कलाकार के मन म
ग ज ं ू ता हुआ एक नाम है , वह उसकी चेतना है मजस
मलख देने से पत्थर नाव में तब्दील हो सकता है। यह
कोई जादू नहीं है – यह एक यथाथा है जो के दार अपनी कमवता में जादू की तरह रचते है। कमवता का अ श
देमखए -
अब उसे मफर से उठाओ
अबकी ले जाओ मकसी नदी या सम द्र ु क
मकनार
छोड़ दो पानी म
उस पर मलख दो वह नाम
जो त म् ु हारे अ द ं र ग ज ं ू रहा ह
वह नाव बन जाएगी 13
के दार की कमवता की एक अन्यतम मवशेर्षता
यह है मक वे मनराश होकर भी अपनी कमवता में कभी
नाकरात्मक नहीं होते। उनकी कमवता आध म ु नकता क
नाकारात्मक तत्वों से ग र ु े ज करती है – शायद इसका
कारि यह है मक उनकी आध म ु नकता की जडें उनक
लोक की ममट्टी में है , जो मक्रयाशीलता, रचनात्मकता
और साकारात्क कदम में मवश्वास करता है। के दार की
कमवताएँ इसमलए ही आद्यन्त उम्मीद की रोशनी की
कमवताएँ हैं। उनकी उदासी और उनके अके लेपन म
भी उन्मीद की ग ज ँ ू साफ-साफ स न ु ाई पड़ती है-
इन्ही शब्दों म
कहीं चलते होंगे लोग
कहीं मगरती होगी वफ
कहीं गदान तक ध स ं ा हुआ वफा म
खडा होगा ईश्वर
..
कहीं एक ब ढ़ ू े मल्लाह की मचलम स
उठता होगा ध आ
ं इन्ही शब्दों म
इन्हीं शब्दों म
कहीं होगा एक शहर
जहाँ वे रहते ह
कहीं होगा एक घर
जहाँ मैं नहीं रहता। 14
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017