Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 328

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका को बेहतर मन ष्ट् ु य बनाना है। यह आध म ु नकता का एक साकारात्मक सरोकार है , मजन्हें हम महत्वप ि ू ा मानकर चलते हैं , मक चामहए भी। के दार भी प छ ते हैं – क्या मैं रख सकता हू एक टूटा हुआ बाल काया और कारि के बीच म म झ ु े मकस तरह पता चलेगा मेरी भ ख म मेरी पीठ का द ख ना शाममल है या नहीं ISSN: 2454-2725 मैं क्यों और मकस तका से महन्दू हू क्या मैं कभी जान पाऊँगा ? 12 एक खास बात उक्त कमवता में लमक्षत करन लायक है। कमव अ त ं में यह सवाल करता है मक वह मकस तका से महन्दू है। धमा से सवाल करना और धम - जहाँ तका के मलए बहुत ही कम अवकास है - स तका की आका क्ष ा करना एक ऐसा साहस है मजसक तार कहीं न कहीं आध म ु नकताबोध से ज ड़ ु ते हैं। और हमें ओढ़ी हुई आध म ु नकता के बरक्श सही और मौमलक आध म ु नकता की ओर ले जाते हैं , मक उधर जाने की भ म ू मका तैयार करते हैं। यह बोलना या प छ ना कई तरीके से के दार की कमवताओ ं में आता है। कलाकार से कमवता में कमव ने वही स्वाल उठाया ह – यह कलाकार की अपनी आजादी है – कहने की, रचने की और एक नई द म ु नया के मलए आवाज उठान की। इस कमवता में के दार कहने-मलखने की महत्ता को प्रमतपामदत करते हैं – वह जो कलाकार के मन म ग ज ं ू ता हुआ एक नाम है , वह उसकी चेतना है मजस मलख देने से पत्थर नाव में तब्दील हो सकता है। यह कोई जादू नहीं है – यह एक यथाथा है जो के दार अपनी कमवता में जादू की तरह रचते है। कमवता का अ श देमखए - अब उसे मफर से उठाओ अबकी ले जाओ मकसी नदी या सम द्र ु क मकनार छोड़ दो पानी म उस पर मलख दो वह नाम जो त म् ु हारे अ द ं र ग ज ं ू रहा ह वह नाव बन जाएगी 13 के दार की कमवता की एक अन्यतम मवशेर्षता यह है मक वे मनराश होकर भी अपनी कमवता में कभी नाकरात्मक नहीं होते। उनकी कमवता आध म ु नकता क नाकारात्मक तत्वों से ग र ु े ज करती है – शायद इसका कारि यह है मक उनकी आध म ु नकता की जडें उनक लोक की ममट्टी में है , जो मक्रयाशीलता, रचनात्मकता और साकारात्क कदम में मवश्वास करता है। के दार की कमवताएँ इसमलए ही आद्यन्त उम्मीद की रोशनी की कमवताएँ हैं। उनकी उदासी और उनके अके लेपन म भी उन्मीद की ग ज ँ ू साफ-साफ स न ु ाई पड़ती है- इन्ही शब्दों म कहीं चलते होंगे लोग कहीं मगरती होगी वफ कहीं गदान तक ध स ं ा हुआ वफा म खडा होगा ईश्वर .. कहीं एक ब ढ़ ू े मल्लाह की मचलम स उठता होगा ध आ ं इन्ही शब्दों म इन्हीं शब्दों म कहीं होगा एक शहर जहाँ वे रहते ह कहीं होगा एक घर जहाँ मैं नहीं रहता। 14 Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017