Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 309

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
जनता को आकमर्षात कर लेते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं । समकालीन जनतंत्र की सच्ची तस्वीर खींचते हुये धूममल ने मलखा है- “ यह जनता ..../ जनतंत्र में / उसकी श्रद्धा / अटूट है /........../ दरअस्ल , अपने यहाँ जनतंत्र / एक ऐसा तमाशा है / मजसकी जान / मदारी की भार्षा है ।” 17 उसी प्रकार स्वतंत्रता के पिात देश में फै ली दुगाती को देख वे अपने आप से प्रश्न करते हैं- “ बीस साल बाद / मैं अपने आप से एक सवाल करता हूँ / जानवर बनने के मलये मकतने सि की जरूरत होती है ?” 18 धूममल के वल सवाल खड़े करने वाले कमव नहीं थे । वे इस दुखद पररमस्थमत के पीछे मछपी राज को समझ गये थे । वे उन कारिों के जान गये थे मजसके कारि आम आदमी भूख और गरीबी से परेशान रहते थे । तभी तो वे कहते हैं- “ उस मुहावरे को समझ गया हूँ / जो आजादी और गाँधी के नाम पर चल रहा है / मजससे न भूख ममट रही है , न मौसम बदल रहा है ।” 19 प्रजातंत्र के नाम पर हो रही लूट-पाट एवं राजनीमतक व्यवस्था में व्याप्त मवसंगमतयों को धूममल इन शब्दों के जररये हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं- “ मैं उन्हें समझता हूँ / वह कौन सा प्रजातांमत्रक नुस्खा है / मक मजस उम्र में / मेरी माँ का चेहरा / झुररायों की झोली बन गया है / उसी उम्र की मेरी पड़ोस की ममहला / के चेहरे पर / मेरी प्रेममका के चेहरे- सा / लोच है ।” 20
3 . िाधारण आदमी का सचिण -
युद्ध और सबसे बड़ी रेजेडी ताशकं द समझौते में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु से देश की मस्थमत पहले से भी खराब हो गयी । ऐसे समय में साधारि आदमी देखता है मक देश में मानवता नाम की कोई चीज अब नहीं रही । वह महसूस करने लगता है मक- “ मैंने महसूस मकया मक मैं वक्त के / एक शमानाक दौर से गुजर रहा हूँ / अब ऐसा वक्त आ गया है जब कोई / मकसी का झुलसा हुआ चेहरा नहीं देखता है / अब न तो कोई मकसी का खाली पेट / देखता है , न थरथराती हुई टाँगें / और न ढला हुआ ‘ सूयाहीन कं धा ’ देखता है / हर आदमी , मसफा , अपना धंधा देखता है ।” 21 देश में गरीबी , बेरोजगारी , भ्रसेाचार जैसी समस्या अपने चरम पर थीं । देश की असमलयत नवयुवकों के समक्ष थी , देश प्रेम की मचंगारी बेरोजगारी की पसीने से बुझती हुई नजर आ रही थी । ऐसे में देश-प्रेम की भावना से संबंमधत नवयुवकों का सरकार पर से मोहभंग होने लगा , लंबे समय तक उनको बेरोजगारी का सामना करना पड़ा । ऐसा लगता है मक- “ देश प्रेम / बेकारी की फटी हुई जेब से मखसककर / बीते हुए कल में मगर पड़ता है ।” 22 इस प्रकार हम देखते हैं मक धूममल अपनी कमवताओं के माध्यम से एक साधारि आदमी का मचत्रि , उसकी आशा-मनराशा का विान माममाक ढंग से करते हैं । देश के कु मटल राजनेताओं के चररत्रों को अच्छी तरह समझते हुए , वे देश की व्यवस्था की संचालक संसद से पुन : प्रश्न करते हैं मक वे अब तक मौन क्यों बैठे है ? गरीबों की रोटी के साथ खेलने वाले राजनेताओं एवं संसद के कु सी से मचपके हुए अमधकाररयों के भ्रसेाचार का यहाँ पदााफाश हुआ है । ‘ रोटी और संसद ’ इसी का उदाहरि है , जो इस प्रकार है- “ एक आदमी / रोटी बेलता है / एक आदमी रोटी खाता है / एक तीसरा आदमी भी है / जो न रोटी बेलता है , न रोटी खाता है / वह मसफा रोटी से खेलता है / मैं पूछता हूँ - - / यह
साठोत्तरी कमवता के कें द्र में स्थान बनाने वाले कमव धूममल का जन्म एक साधारि मकसान पररवार में हुआ था । इसमलए एक साधारि आदमी की क्या- क्या तकलीफें होती है उसको उन्होंने भली-भाँमत महसूस मकया था । वे देश के तत्कालीन पररमस्थमत को देख अत्यंत मचंमतत थे । साधारि आदमी की दशा पहले से भी बद्तर और भयावह होने लगी थी । 1962
में भारत-चीन की लड़ाई , 1965 में भारत-पाक का Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017