Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
िासहसययक सिमिक: निगीत
ISSN: 2454-2725
मेरे मदल को छू मलया ।।४।।
पीताम्बर दाि िरार् "रंक"
गीत
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त म ु ने म झ ु े सलाम मकया
मेरे मदल को छू मलया
मेरा सब कुछ त म् ु हारा अब
त म ु ने म झ ु े जीत मलया।।
प्रेषक-
पीताम्बर दाि िरार्"रंक"
बी/६०२,बघेरिाल र्ोर िीज़न,
सििी मॉल के िामने , राजीि गांधी नगर
कोिा ३२४००५ (राजस्थान)
मो-०९४२५१६८४७६,०९५२७४२९६५६
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सलाम सलाम ओ मदलरूबा
तू हमसे बढ़कर है ज़रूर
पर तेरे मदल में हुस्न का
पल रहा है कहीं ग़ रू
र
मफर भी तेरी इक अदा न
मेरे मदल को छू मलया ।।१।।
जानकर जो त म ु ने मेरी
नज़रों से नज़रें एक कीं
मेरे मदल को अपना बना
शह दी पहले मफर मात दी
इसी तेरी इक नज़र न
मेरे मदल को छू मलया ।।२।।
अब त म् ु हारी हर अदा मेरी
जान पे बन के आती ह
हर कहीं,मकसी जगह भी
मज़ द ं ा ही द़फ्न कर जाती ह
वो त म् ु हारी कनमख़यों न
मेरे मदल को छू मलया ।।३।।
अब त म ु ही मदल की धड़कन
त म ु ही सब कुछ हो मेरा
म झ ु से द र ू होने की अब
त म ु सोचना भी नहीं ज़रा
त म ु ने हां कह के देख लो
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017