Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Seite 202

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
स्वमिाम बना सके गा । अतीत की तरह वतामान में भी मशक्षा का मुद्दा बड़ा है , जहां एक तरफ जामत ने हजारो वर्षो से समाज को मवभामजत मकया अब यही काम मशक्षा कर रही है । मदन बर मदन सरकारी स्कू लों में मशक्षा का स्तर मगरता जा रहा है । अब समाज में एक मवभाजन सा बन गया है । उच्च जामत के बच्चे कान्वेंट स्कू लों में पढ़ते है और छोटी जामत के बच्चें सरकारी स्कू लों में । उच्च जामत के लोग सरकारी स्कू लों में अपने बच्चों को कतई नहीं भेजना चाहते है पररिामस्वरुप एक तरह से मशक्षा समाज में असमानता पैदा करने की वजह बन रही है । 13
सरकारी और मंहगे स्कू लों में मशक्षा के स्तर पर भेदभाव हैं सरकारी स्कू लों में बच्चों को मामूली सुमवधायें भी उपलब्ध नहीं होती , मशक्षक भी पढ़ाने में रुमच नहीं रखते है । आगे चलकर इसी असमानता के कारि बच्चों को प्रमतयोगी परीक्षाओं आमद में गुिवत्ता के टैग के नाम पर कमठनाईयों का सामना करना पड़ता है । सुरेन्द्र जोधका अपने पंजाब के सवेक्षि में बताते है मक पंजाब के कु छ गांवों में सरकारी स्कू लों को अब दमलत और हररजन स्कू लों के नाम से ही संबोमधत मकया जाने लगा है । 14 इन स्कू लों में सभी बच्चों में अमधकांश मनम्न जामत के ही बच्चे पढ़ते है । उच्च जामत के इनमें कु छ ही बच्चे ममलेंगे । इसका पररिाम यह हो रहा है मक इन स्कू लों में सुधार के मलए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है अगर इनमें उच्च जामत के बच्चे पढ़ते तो इनमें सुधार करने की पहल अवश्य की जाती मकन्तु मनम्न जामत के बच्चों के मलए कोई सुधार नहीं मकया जा रहा हैं
सुधार की तरफ एक कदम इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 19 अगस्त 2015 को बढ़ाया भी मजसमें यह कहा गया मक प्रदेश के स्कू ली मशक्षा तभी सुधर सकती है जब मंमत्रयों और अफसरों के बच्चे भी सरकारी स्कू लों में पढेंगे । अदालत का आदेश था मक जो भी अफसर , मंत्री या कमाचारी सरकारी कोर्ष से वेतन लेते हैं उन्हें अपने बच्चों को सरकारी स्कू लों में पढ़ाना अमनवाया होगा । जब अमधकाररयों के बच्चें भी
इन सरकारी स्कू लों में पढेंगे तो सरकार को इन्हें बेहतर बनाना ही पड़ेगा । न्यायाधीश ने प्रदेश के मुख्य समचव को महदायत भी दी थी मक इस काम के मलए वे जो भी तरीका अपनाएं उसकी पूरी ररपोटा छहः महीने के भीतर जमा करे । साथ ही जो इस मनिाय का पालन नहीं करे सरकार उसके मखलाफ दंड का प्रावधान सुमनमित करे । 15
हजारों साल पहले बुद्ध ने अपने समय में उच्च और मनम्न जामत को एक ही संघ में मशमक्षत मकया । वहॉ कोई उच्च जामत या मनम्न जामत का नहीं था । सभी साथ रहकर मशक्षा ग्रहि करते थे । संघ में सबके मलए समान मशक्षा का प्रावधान था । इतने समये पहले जब बुद्ध यह काम कर सकते है तो वतामान में इतनी आधुमनक तकनीकों के बावजूद ऐसा क्या है जो हम यह संभव नहीं कर पा रहे हैं ? जवाब है इच्छा शमक्त जब इलाहाबाद हाई कोटा ने इतना अहम् फै सला मदया तो हमें उसे पूिा इच्छा शमक्त के साथ लागू करना चामहए था मकन्तु हमने वह मौका भी गंवा मदया । हमारे नीमत मनमााताओं को यह पता होना चामहए मक मशक्षा ही एकमात्र साधन है मजसके माध्यम से एक बेहतर समाज का मनम ाि करना संभव है । अच्छा होगा मक सरकारें मशक्षा को सुधारने के साथ ही समान पाठ्यक्रम पर भी मवशेर्ष ध्यान दें । इसमें देरी का कोई औमचत्य नहीं क्योंमक पहले ही बहुत देर हो चुकी है । 16
1966 में कोठारी आयोग ने मशक्षा में सुधार के मलए पड़ोस स्कू ल की अवधारिा दी । इसका तात्पया है मक हर इलाके का अपना एक स्कू ल होगा । मजसमें यह जरुरी होगा मक उस इलाके के सभी बच्चें उसी स्कू ल में पढ़े । प्रवेश में गरीब-अमीर , जामत-धमा , मामलक-मजदूर आमद के आधार पर मकसी प्रकार को कोई भेदभाव नहीं मकया जायेगा । इस मदशा में जयप्रकाश नारायि ने भी कोठारी समममत की पड़ोस स्कू ल की अवधारिा को लोकमप्रय बनाने में महत्वपूिा भूममका मनभाई । पर अफसोस इतना कु छ होने के बाद भी मस्थमत नहीं बदली । इस मस्थमत को दश ाती हाल ही में एक मफल्म महंदी मीमडयम प्रदामशात
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017