Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
ईसाई |
14 |
3 |
िाहमि |
241 |
50 |
अन्य महन्दू-कृ र्षक |
5 |
1 |
छोटी जामतयां |
0 |
0 |
अन्य जामतयां |
103 |
21-3 |
मुमस्लम |
7 |
1-5 |
पारसी |
108 |
21-5 |
आमदम जामतयां और |
0 |
0 |
पवातीय आमदवासी |
|
|
अन्य ( यहुमदयों आमद समहत ) |
2 |
-04 |
उपरोक्त आंकड़े सच्चाई अपने आप बयां करते है । इनसे स्पसे होता है मक आम आदमी के मलए मशक्षा इतनी ही दुलाभ थी मजतनी 1854 से पहले थी और महन्दुओं की मनम्नतर और आमदम जामतयां अभी भी मशक्षा के क्षेत्र में सबसे अमधक मपछड़ी थी । यहां यह तथ्य काफी दुखद है मक 1881-82 में भी इन समुदायों का एक भी छात्र कॉलेजों अथवा हाई स्कू लों में नहीं पढ़ता था ।
III . 1882 से 1928 तक
इस चरि में बंबई प्रेसीडेंसी में प्राथममक मशक्षा प्रांतीय सरकार के स्थान पर स्थानीय मनकायों को सौंप दी गई । इस काल में भी मनम्न जामतयों की शैक्षमिक मस्थमत दयनीय ही रही । जहॉ आबादी की ्टमसे से उन्हें मद्वतीय जैसा उच्च स्थान प्राप्त था परन्तु मशक्षा के क्षेत्र में उन्हें ऐसा स्थान प्राप्त था जो न के वल अंमतम बमल्क न्यूनतक भी था । यह fuEu सारिी द्वारा स्पसे है11
प्रेमसडेंसी में लोगों की |
जनसंख्यानुसार क्रम |
प्राथममक |
मशक्षानुसार माध्यममक |
कॉलेज |
श्रेमियां |
|
|
क्रम |
|
उन्नत महन्दू |
चतुथा |
प्रथम |
प्रथम |
प्रथम |
मध्य क्रम में महन्दू |
प्रथम |
तृतीय |
तृतीय |
तृतीय |
मपछड़े महन्दू |
मद्वतीय |
चतुथा |
चतुथा |
चतुथा |
मुमस्लम |
तृतीय |
मद्वतीय |
मद्वतीय |
मद्वतीय |
इस दौरान यही आम धारिा रही मक मशक्षा से सरोकार के वल िाहमिों का ही है । के वल चंद लोग ही ऐसे थे मजन्होनें मशक्षा के प्रसार की राजनीमत अपनाई ।
कहने को तो सरकार द्वारा पूिातः सममपात आम स्कू ल सभी जामतयों के मलए खुले थे मकन्तु छोटी जामतयों को उनमें प्रवेश पाना लगभग मुमश्कल ही था ।
यह बात महार बालक की उस यामचका को स्पसे हो जाती है , जो जून 1856 में पेश की गई । मजसमें मशकायत की गई थी मक यद्यमप वह स्कू ल की फीस देने के मलए तैयार था लेमकन उसे धारवाड़ गवनामेंट स्कू ल में दामखला नहीं मदया गया । 12
मशमक्षत होना हर बच्चे का अमधकार है । उसे जब पढ़ाई का मौका ममलेगा तो वह अपने भमवष्ट्य को
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017