Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
जब-
मपता की छाती को टटोलता ह
और ममा का द ध ू ु हाथ न लगता ह
तो बच्चा मफर से उठ जाता ह
और अपने मजद्द पर आ जाता है।
रोिन कुमार, 304, अनुदीप इनक्लेि ,
सिजयनगर, रूकनपुरा , पिना (सबहाऱ) –
800014
िुबोध श्रीिास्ति की कसिताए
नहीं चासहए चांद
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म झ ु
नहीं चामहए चांद/और
न ही तमन्ना है मक
स र ू ज
कै द हो मेरी म ि ु ी म
हाला म ं क
म झ ु े भाता ह
दोनों का ही स्वरूप।
सचम च ु
आकाश की मवशालता भी
म न ु ध करती ह
लेमकन
तीनों का एकाकीपन
अक्सर
बहुत खलता ह
शायद इसीमलए
मैंने कभी नहीं चाहा मक
हो सक ं ू
चा द ं /स र ू ज और आकाश जैसा
क्योंमक
मैं घ ल
ना चाहता हू
खेतों की सोंधी माटी में ,
गमतशील रहना चाहता हू
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
मकसान के हल में ,
मखलमखलाना चाहता हू
द म ु नया से अनजान
खेलते बच्चों के साथ,
हा , ं मैं चहचहाना चाहता हू
सांझ ढले/घर लौटत
प म ं छयों के स ग ं -स ग ं ,
चाहत है मेरी
मक बस जाऊं/वहां-वहा
जहा - ं
सांस लेती है मज़न्दगी
और/यह तभी संभव ह
जबमक
मेरे भीतर मज़न्दा रह
एक आम आदमी।
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बेहतर दुसनया के सलए..
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उठो!
मनकलो/देहरी के उस पार
इ त ं ज़ार में ह
वक्तl
याद है न त म् ु हें-
हमें ममलकर
बनानी ह
इक ख ब ू स र ू त द म ु नया
हा , ं सचम च ु
बगैर त म् ु हार
यह सब संभव भी तो नहीं..!
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वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017