Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 18

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका जब- मपता की छाती को टटोलता ह और ममा का द ध ू ु हाथ न लगता ह तो बच्चा मफर से उठ जाता ह और अपने मजद्द पर आ जाता है। रोिन कुमार, 304, अनुदीप इनक्लेि , सिजयनगर, रूकनपुरा , पिना (सबहाऱ) – 800014 िुबोध श्रीिास्ति की कसिताए नहीं चासहए चांद ------------------- म झ ु नहीं चामहए चांद/और न ही तमन्ना है मक स र ू ज कै द हो मेरी म ि ु ी म हाला म ं क म झ ु े भाता ह दोनों का ही स्वरूप। सचम च ु आकाश की मवशालता भी म न ु ध करती ह लेमकन तीनों का एकाकीपन अक्सर बहुत खलता ह शायद इसीमलए मैंने कभी नहीं चाहा मक हो सक ं ू चा द ं /स र ू ज और आकाश जैसा क्योंमक मैं घ ल ना चाहता हू खेतों की सोंधी माटी में , गमतशील रहना चाहता हू Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 मकसान के हल में , मखलमखलाना चाहता हू द म ु नया से अनजान खेलते बच्चों के साथ, हा , ं मैं चहचहाना चाहता हू सांझ ढले/घर लौटत प म ं छयों के स ग ं -स ग ं , चाहत है मेरी मक बस जाऊं/वहां-वहा जहा - ं सांस लेती है मज़न्दगी और/यह तभी संभव ह जबमक मेरे भीतर मज़न्दा रह एक आम आदमी। ---- बेहतर दुसनया के सलए.. -------------------------- उठो! मनकलो/देहरी के उस पार इ त ं ज़ार में ह वक्तl याद है न त म् ु हें- हमें ममलकर बनानी ह इक ख ब ू स र ू त द म ु नया हा , ं सचम च ु बगैर त म् ु हार यह सब संभव भी तो नहीं..! ---- वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017