Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
तभी तो देवी बना दी गयी है । यह हर औरत की दास्तान है । न जाने मकतनी कहामनयों को वो अपने में समेटे हुए हैं । आज तक स्त्री चुप्पी साधकर अत्याचार और शोर्षि को सहन कर रही है क्योंमक समाज और पररवार ने उसके होठों को सील मदया है । आज लगता है हमारे साथ इंसान ने ही नहीं भगवान ने भी अन्याय मकया है । क्यों बचपन से ही भगवान ने हमें मवद्रोही नहीं बनाया? लड़की पैदा होकर हम ने कोनसा पाप मकया? मजतना हक पुरुर्षों का हैं उतना ही हमारा, मजतनी आजादी पुरुर्षों की हैं उतनी हमारी भी हैं; मफर क्यों हमें हमारे अमधकारों से वंमचत रखते हो? हर नारी को अपने अमधकारों के मलए लड़ाई लड़नी होगी । इस लड़ाई की शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी । हर जगह बराबरी का अमधकार हमें भी चामहए । हमारा भी स्वामभमान है, इज्जत है । हम भी हमारा वचास्व चाहते हैं । हम मकसी के गुलाम बनकर जीना नहीं चाहते । लड़की का कन्यादान करने से ही मपता का दामयत्व ख़त्म नहीं हो जाता । हर समय हर क्षेत्र में पुरुर्ष को अपनी बेटी, अपनी बहू और अपनी पत्नी को सम्मान देना होगा ।“ लड़की के जैसे-तैसे हाथ पीले करके घर से बाहर धक्का देना है, यह अवधारिा ही दोर्षपूिा है । लड़की को बाहरवालों के मुकाबले अपने घरवालों के अन्याय से पहले बचाना है ।” समाज ने हमें बेमड़यों में कै द कर के रखा है; अब तोड़ना चाहते हैं हम ये बेमड़याँ । लड़मकयाँ अपने जीवन में कु छ करना चाहती हैं, आगे बढ़ना चाहती हैं । पुरुर्षों को अपनी रुगुि मानमसकता को बदलना होगा । पमत हो या प्रेमी वह स्त्री से शरीर के स्तर पर ही जुड़ना चाहता है । आज स्त्री खुले मवचारों की हैं, आधुमनक हैं, फ़ै शन को अपना रही हैं, उच्च मशक्षा ग्रहि कर रही हैं साथ ही मवमभन्न पदों को प्राप्त कर रही हैं, अपने मवचारों को स्वतंत्र रूप से अमभव्यक्त कर रही हैं; तो जमहर-सी बात है मक उसे देह के स्तर पर न आँका जाये वह देह से परे भी कु छ हैं । हमें भी स्वामभमान से जीना हैं, हमारे
अमस्तत्व को बचाना है उन भावनाओं में नहीं बहना जो हमें कमजोर बनाती हैं और भेमड़यों का हमथयार बनती है । क्यों पुरुर्ष अपनी मानमसकता बदलने के मलए तैयार नहीं हैं? कहते है मक औरते ज्यादा पढ़- मलख कर मबगड़ जाती हैं । हाँ हमारे अमधकार पढ़- मलख कर जान मलए तो मबगड़ गयी हम? तुम्हारे अत्याचार के मखलाफ आवाज उठा ली, पलटकर जवाब देने लगी और घर की चार मदवारी लांगने लगी तो आपको चुबने लगी और हमें बदचलन कहने लगे । तुम्हारे पास अब कोई हमथयार नहीं बचा हमें कै द करने के मलए ।“ अगर वह अपने पर हुए जुल्मों-मसतम बयां करती है तो बदचलन कही जाती है । औरत की इज्जत मरद की इज्जत जैसी न हौवे । लुगाई का भाग मरद के खू ंटे से बंधा होवे ।”
मपता व भाई का दामयत्व बहन को दबाये रखकर खत्म नहीं होता । प्रेमी का दामयत्व मवश्वास घात करके ख़त्म नहीं होता, पमत का दामयत्व भोग की वस्तु और बच्चे पैदा करने की मशीन समझ कर पूरा नहीं होता । बेटे का दामयत्व वृद्ध अवस्था में छोड़कर पूरा नहीं होता । समाज का दामयत्व लड़की को आगे बढ़ते देख उसकी टांग खींचना नहीं होता । एक स्त्री ना तो दानवी है, ना वह देवी है; वह तो मसफा एक मानवी है ।
िंदभक ग्रंथ:-
1. डॉ. अनीता नेरे, डॉ. योमगता हीरे,‘ साठोत्तरी महंदी कथा सामहत्य: स्त्री-मवमशा’, शांमत प्रकाशन, रोतक हररयािा, पृ. 138
2. वही, पृ. 28
3. ररनू गुप्ता,‘ स्त्री मन की व्यथा और अमस्मता की कहामनया’, समीक्षा, अंक-2, जुलाई-मसतम्बर 2010, पृ. 45
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017