Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 174

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका नहीं सोच सकता मक औरत उसे छोड़कर बेहतर मज द ं गी जी सकती है ।” मववामहत लड़मकयों के मलए उसका घर ही स्वग समझा जाता है चाहे वह उसके मलए जीते जी नरक ही क्यों न हो । दहेज़ के मलए सतायी गयी, घर में बार- बार अपमामनत की गयी, बार-बार मपटी गयी, मदन- भर घर के काम में ज ट ु ी रहने वाली, रात में पमत को संत से ु करने वाली, घर का व श चलाने वाली आमद । बेटे की जगह अगर बेटी पैदा हो गयी तो सबके तान सहने वाली, बेटा ना पैदा करने के ज म ु ा में मार दी जान वाली । सब-कुछ सहन करने के बाद भी च प् ु पी साध रहे ; सस र ु ाल वाले उससे यही चाहते है । बार-बार धममकयाँ देना मक अगली बार बेटा ना हुआ तो पीहर चले जाना । अब बताईए कोनसा है उसका घर ? असल में तो उसका कोई घर ही नहीं है । क्या उसका जीवन मसफा द स ू रों के मलए ही अपाि है । नारी अपन पररवार और समाज में आजीवन प्रताड़ना व अपमान सहती है । हत्या व आत्महत्या की मशकार बनती है ; मपतृसत्तात्मक समाज का मवरोध नहीं कर पाती है । उसकी सहनशीलता पराकासेा पर क्यों नहीं पहु च ँ पायी ? उसे आजीवन भर समझोता करना ही मसखाया जाता है । समझोते में च क हो गयी तो घ ट ु न व त्रासदी की अमधकाररिी बन जाती है । “मववामहत लड़मकयों के मलए ‘अपना घर’ एक भ्रम भी है और एक द श भी, जो जीवन के अ त ं तक उन्हें बंजारे की सी मन:मस्थमत में भटकाए रखता है । ऐसे में सबसे ममािंतक होता ह मायके की ओर से अजनमबयों का व्यवहार ।” क्यों औरतों के जीवन में इन प रु ु र्षों ने घ न ू लगा मदया है ? स्वतंत्रता पर क्या प रु ु र्षों का ही अमधकार है ? पमत मववाह के बाद भी अन्य स्त्री के साथ संबंध रखे मकंत त म ु कुछ मत कहो क्योंमक सवाल करना त म् ु हारा अमधकार नहीं के वल प रु ु र्षों का हैं । पमत की सेवा ही त म् ु हारा धमिं है और उसके मलए त म ु अपने स ख की मतलांजमल देती रहो । एक स्त्री को लेकर ही उसकी Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 पमवत्रता के बारें में सवाल मकया जाता है एक प रु ु र्ष को क्यों नहीं ? त म् ु हें प्रेममका, पत्नी, रखेल सब पमवत्र चामहए त म् ु हारे आनंद के मलए मक त म ु ही उसक अमधकारी हो । जीवन में वृद्धावस्था का दौर आया तो बेटों पर मनभार हो गयी और प त्र ु ों को माँ बोझ लगने लगी । उन्ह लगता है मक उन्हें माँ की कोई जरुरत नहीं है । अब व उनके मलए दो वक्त की रोटी का ज ग ु ाड़ नहीं कर सकत । बच्चों के मलए समस्याएँ , म स ु ीबतें झेलती रही मफर भी उनको ख़ श ी देती रही । वही माँ आज उन्हें बोझ लगने लगी । द म ु नया की मकसी बही में उनके त्याग, समपाि , प्रेम , ममता, स्नेह का उल्लेख नहीं; उनक मलए सब बेमाने हो गये । “वृद्ध मस्त्रयों की समस्याए इतनी ग भ ं ीर है मक इनके आ स ं ुओ ं से प र ू ी धरती भीग जाएगी । उम्र के अ म ं तम पड़ाव में भी उसके साथ मसफ उसके हाथ होते हैं । यह हाथ भी जब उसका साथ छोड़ देते हैं तब उसका अपना घर भी बेगाने पन का अहसास देता है । ग्रामीि वृद्ध मस्त्रयों की पीड़ा की दासता अकथ अपने पररश्रम से पलने वाली मज द ं गी जब पररश्रम के लायक नहीं रहती तब मज द ं गी द स् ु वार हो जाती है ।” आज हर ममहला को सजग होना पड़ेगा; अपन अमधकारों की मा ग ं करनी होगी । प रु ु र्षसत्तात्मक समाज से संघर्षा करना होगा तभी हम उनकी कै द स आजाद हो पायेंगी । यही है एक औरत की प र ू ी मज द ं गी मजसमें वह अपने मलए प्यार ढु ढ ं ती रही । पहले अपन घर में , मफर प्रेमी में , पमत में , बच्चों में पर उसे कभी प्यार नसीब न हुआ न इतने बड़े जीवन में मकसी न उसकी इज्जत की और न तकलीफ समझी । सब तो ल ट ु ेरे ही मनकले बस सबका रूप अलग था; कभी मपता के , कभी भाई, कभी प्रेमी, कभी बेटे , कभी पमत के रूप में । सब ने उसका जीवन आमश्रत बना मदया । सब ने उसे जो मदया उसके मलए माफ़ करती आयी ह वर्ष 3, अंक 27-29 जु लाई-सितंबर 2017