Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
नहीं सोच सकता मक औरत उसे छोड़कर बेहतर
मज द ं गी जी सकती है ।”
मववामहत लड़मकयों के मलए उसका घर ही स्वग
समझा जाता है चाहे वह उसके मलए जीते जी नरक ही
क्यों न हो । दहेज़ के मलए सतायी गयी, घर में बार-
बार अपमामनत की गयी, बार-बार मपटी गयी, मदन-
भर घर के काम में ज ट ु ी रहने वाली, रात में पमत को
संत से ु करने वाली, घर का व श
चलाने वाली आमद ।
बेटे की जगह अगर बेटी पैदा हो गयी तो सबके तान
सहने वाली, बेटा ना पैदा करने के ज म ु ा में मार दी जान
वाली । सब-कुछ सहन करने के बाद भी च प् ु पी साध
रहे ; सस र ु ाल वाले उससे यही चाहते है । बार-बार
धममकयाँ देना मक अगली बार बेटा ना हुआ तो पीहर
चले जाना । अब बताईए कोनसा है उसका घर ?
असल में तो उसका कोई घर ही नहीं है । क्या उसका
जीवन मसफा द स ू रों के मलए ही अपाि है । नारी अपन
पररवार और समाज में आजीवन प्रताड़ना व अपमान
सहती है । हत्या व आत्महत्या की मशकार बनती है ;
मपतृसत्तात्मक समाज का मवरोध नहीं कर पाती है ।
उसकी सहनशीलता पराकासेा पर क्यों नहीं पहु च ँ
पायी ? उसे आजीवन भर समझोता करना ही मसखाया
जाता है । समझोते में च क
हो गयी तो घ ट ु न व त्रासदी
की अमधकाररिी बन जाती है । “मववामहत लड़मकयों
के मलए ‘अपना घर’ एक भ्रम भी है और एक द श
भी,
जो जीवन के अ त ं तक उन्हें बंजारे की सी मन:मस्थमत
में भटकाए रखता है । ऐसे में सबसे ममािंतक होता ह
मायके की ओर से अजनमबयों का व्यवहार ।” क्यों
औरतों के जीवन में इन प रु ु र्षों ने घ न ू लगा मदया है ?
स्वतंत्रता पर क्या प रु ु र्षों का ही अमधकार है ? पमत
मववाह के बाद भी अन्य स्त्री के साथ संबंध रखे मकंत
त म ु कुछ मत कहो क्योंमक सवाल करना त म् ु हारा
अमधकार नहीं के वल प रु ु र्षों का हैं । पमत की सेवा ही
त म् ु हारा धमिं है और उसके मलए त म ु अपने स ख
की
मतलांजमल देती रहो । एक स्त्री को लेकर ही उसकी
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
पमवत्रता के बारें में सवाल मकया जाता है एक प रु ु र्ष
को क्यों नहीं ? त म् ु हें प्रेममका, पत्नी, रखेल सब पमवत्र
चामहए त म् ु हारे आनंद के मलए मक त म ु ही उसक
अमधकारी हो ।
जीवन में वृद्धावस्था का दौर आया तो बेटों पर मनभार
हो गयी और प त्र ु ों को माँ बोझ लगने लगी । उन्ह
लगता है मक उन्हें माँ की कोई जरुरत नहीं है । अब व
उनके मलए दो वक्त की रोटी का ज ग ु ाड़ नहीं कर सकत
। बच्चों के मलए समस्याएँ , म स ु ीबतें झेलती रही मफर
भी उनको ख़ श
ी देती रही । वही माँ आज उन्हें बोझ
लगने लगी । द म ु नया की मकसी बही में उनके त्याग,
समपाि , प्रेम , ममता, स्नेह का उल्लेख नहीं; उनक
मलए सब बेमाने हो गये । “वृद्ध मस्त्रयों की समस्याए
इतनी ग भ ं ीर है मक इनके आ स ं ुओ ं से प र ू ी धरती भीग
जाएगी । उम्र के अ म ं तम पड़ाव में भी उसके साथ मसफ
उसके हाथ होते हैं । यह हाथ भी जब उसका साथ
छोड़ देते हैं तब उसका अपना घर भी बेगाने पन का
अहसास देता है । ग्रामीि वृद्ध मस्त्रयों की पीड़ा की
दासता अकथ अपने पररश्रम से पलने वाली मज द ं गी
जब पररश्रम के लायक नहीं रहती तब मज द ं गी द स् ु वार
हो जाती है ।”
आज हर ममहला को सजग होना पड़ेगा; अपन
अमधकारों की मा ग ं करनी होगी । प रु ु र्षसत्तात्मक
समाज से संघर्षा करना होगा तभी हम उनकी कै द स
आजाद हो पायेंगी । यही है एक औरत की प र ू ी मज द ं गी
मजसमें वह अपने मलए प्यार ढु ढ ं ती रही । पहले अपन
घर में , मफर प्रेमी में , पमत में , बच्चों में पर उसे कभी
प्यार नसीब न हुआ न इतने बड़े जीवन में मकसी न
उसकी इज्जत की और न तकलीफ समझी । सब तो
ल ट ु ेरे ही मनकले बस सबका रूप अलग था; कभी
मपता के , कभी भाई, कभी प्रेमी, कभी बेटे , कभी पमत
के रूप में । सब ने उसका जीवन आमश्रत बना मदया ।
सब ने उसे जो मदया उसके मलए माफ़ करती आयी ह
वर्ष 3, अंक 27-29 जु लाई-सितंबर 2017