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वतामान समय में स्त्री मकसी भी पुरुर्ष का वचास्व नहीं
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चाहती है । पुरुर्ष के वचास्व का मुख्य कारि यह था | |
मक स्त्री आमथाक रूप से गुलाम थी, वह पूिातः पुरुर्ष | |
के अधीन थी । लेमकन अब स्त्री आत्ममनभार है, वह इस | |
बात को भली-भांमत जानती है मक अब हम मकसी भी | |
प्रकार से पुरुर्ष से कम नहीं हैं । आज की स्त्री पुरुर्ष से | |
बराबरी की बात करती है, आमथाक, सामामजक और | |
राजनीमतक हर प्रकार से वह मकसी भी तरह पुरुर्ष से |
समकालीन स्त्री कहानीकारों ने कु छ ऐसे संबंधो को |
कम नहीं रहना चाहती है । क्षमा शम की कहानी |
भी मचमत्रत मकया है, मजसका कोई नाम नहीं है । स्त्री- |
‘ वेलेंटाइन डे’ कहानी की नामयका बराबरी की बात |
पुरुर्ष के कु छ ऐसे सम्बन्ध भी आज देखने में आ रहे |
करती हैं । उस पुरुर्ष के पैसे खचा करने में आपमत्त है |
हैं मजनको कोई नाम नहीं मदया जा सकता । न वह |
क्योंमक वह जानती हैं मक आमथाक गुलाम होने का |
मपता-बेटी, न पमत-पत्नी, न दोस्त और न ही प्रेमी- |
अथा सम्पूिा रूप से गुलाम होना है ।‘ वेलेंटाइन डे’ में |
प्रेममका । कु छ ऐसे ररश्ते हैं मजसको मकसी भी बंधन या |
क्षमा शमाा ने प्रस्तुत मकया है मक जब पुरुर्ष को एक |
नाम में बाँध पाना मुमश्कल है । क्षमा शमाा की कहानी |
अच्छा ऑप्शन ममल जाता है तो वह स्त्री को छोड़ कर |
‘ एक है सुमन’ में सुमन, दुबे जी के साथ रहती है, दुबे |
दूसरी तरफ हो लेता है । जब दूसरी से बात नहीं बनती |
जी अपने ही घर वालों के मलए बेकार है । उनके घर |
है तो वह मफर पहले की तरफ ही भागता है । नकु ल |
वाले उन्हें अके ला छोड़ चुके हैं, पत्नी की मृत्यु हो |
अपनी पत्नी से ऊब चुका है । वह 25 साल पहले मजस |
चुकी है । घर में बेटे, बहुएं, नाती-पोते सब है, जो यह |
लड़की को छोड़ चुका था उस के करीब मफर आना |
सोचते है मक सुमन उनके साथ उनकी प्राैपटी के |
चाहता है लेमकन वह नकु ल में अब मबलकु ल रुमच |
मलए रहती है । पर वह साफ मना कर देती है मक उसे |
नहीं रखती है । वह कहती है-“ तुम्हें लग रहा होगा मक |
कु छ नहीं चामहए, उसे के वल दूबे जी चामहए । वह |
मैं उन बीते हुए वर्षों की डोर थामकर अब भी तुम्हारे |
कहती है मक-“ मैंने कोई उनसे शादी तो की नहीं है जो |
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. |
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |