Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 168

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
फरजाना पर कोई असर नहीं होता है । यहाँ तक मक फरजाना के कोख में पलने वाला जुबैर का बच्चा भी वह अब इस दुमनया में नहीं लाना चाहती है । वह कहती है-“ मफर एक नया फरेब, एक नया जाल मोहब्बत के नाम पर बुन रहे हो?, पछता रहे हो तो प्रायमित भी करना जानते होगे, मैं तो अपने को सजा दे रही हूँ अपनी महमाकत की.. यह कोख हमेशा सूनी रखू ँगी, उस मदा का बच्चा हरमगज कोख में नहीं पलने दू ंगी, जो मोहब्बत के नाम पर सत्ता का परचम लहराये, जो औरत के अमधकार को अपनी चालाकी से छीन ले और उसे मनहत्था बनाकर अपनी जीती जमीन का एलान करे ।” 15
इंतजार मैं बैठी होऊँ गी । मीरा की तरह गा रही होऊँ गी मक मेरे तो मगरधर गोपाल दूसरा न कोई-हमेशा मीरा चामहए-आंसू बहाती हुई- तड़पती हुई-एक कमजोर औरत- मजससे जब चाहों पीछा छु ड़ा लो-मववाह के वक्त तुम्हारी पत्नी तुम्हारी सबसे बड़ी उपलमब्ध थी । उसके मपता ने तुम्हे मोटी रकम दी थी । वह खूबसूरत थी ।” 16 पुरुर्ष अपने मन को मकसी तरह बहला लेता है, लेमकन स्त्री का मन बहुत कोमल होता है वह प्रत्येक सम्बन्ध की कसक सदैव अपने मदल में समेटे रखती है । वह मकसी भी पुरुर्ष के साथ बनाने वाले मकसी भी सम्बन्ध को नहीं भुला पाती है, वक्त के साथ वह अपनी भावनाओं को इस कदर दबा लेती है मक मफर मकसी पुरुर्ष के सामने वह उजागर नहीं होते हैं-“ नकु ल सहदैव, मुझे सब कु छ याद रहा है, गुजारे हुए वक्त एक लम्हा । मैं भावुकता से भरी वह लड़की भी नहीं मजसमें तुम्हारे मलए ढेरों आंसू बहाए थे और अब तो तुम्हें कोई शाप देने का मन भी नहीं करता । दरअसल शाप से जो भी ररश्ता बनता है, वह भी अब बचा कहाँ है ।” 17
वतामान समय में स्त्री मकसी भी पुरुर्ष का वचास्व नहीं
चाहती है । पुरुर्ष के वचास्व का मुख्य कारि यह था
मक स्त्री आमथाक रूप से गुलाम थी, वह पूिातः पुरुर्ष
के अधीन थी । लेमकन अब स्त्री आत्ममनभार है, वह इस
बात को भली-भांमत जानती है मक अब हम मकसी भी
प्रकार से पुरुर्ष से कम नहीं हैं । आज की स्त्री पुरुर्ष से
बराबरी की बात करती है, आमथाक, सामामजक और
राजनीमतक हर प्रकार से वह मकसी भी तरह पुरुर्ष से
समकालीन स्त्री कहानीकारों ने कु छ ऐसे संबंधो को
कम नहीं रहना चाहती है । क्षमा शम की कहानी
भी मचमत्रत मकया है, मजसका कोई नाम नहीं है । स्त्री-
‘ वेलेंटाइन डे’ कहानी की नामयका बराबरी की बात
पुरुर्ष के कु छ ऐसे सम्बन्ध भी आज देखने में आ रहे
करती हैं । उस पुरुर्ष के पैसे खचा करने में आपमत्त है
हैं मजनको कोई नाम नहीं मदया जा सकता । न वह
क्योंमक वह जानती हैं मक आमथाक गुलाम होने का
मपता-बेटी, न पमत-पत्नी, न दोस्त और न ही प्रेमी-
अथा सम्पूिा रूप से गुलाम होना है ।‘ वेलेंटाइन डे’ में
प्रेममका । कु छ ऐसे ररश्ते हैं मजसको मकसी भी बंधन या
क्षमा शमाा ने प्रस्तुत मकया है मक जब पुरुर्ष को एक
नाम में बाँध पाना मुमश्कल है । क्षमा शमाा की कहानी
अच्छा ऑप्शन ममल जाता है तो वह स्त्री को छोड़ कर
‘ एक है सुमन’ में सुमन, दुबे जी के साथ रहती है, दुबे
दूसरी तरफ हो लेता है । जब दूसरी से बात नहीं बनती
जी अपने ही घर वालों के मलए बेकार है । उनके घर
है तो वह मफर पहले की तरफ ही भागता है । नकु ल
वाले उन्हें अके ला छोड़ चुके हैं, पत्नी की मृत्यु हो
अपनी पत्नी से ऊब चुका है । वह 25 साल पहले मजस
चुकी है । घर में बेटे, बहुएं, नाती-पोते सब है, जो यह
लड़की को छोड़ चुका था उस के करीब मफर आना
सोचते है मक सुमन उनके साथ उनकी प्राैपटी के
चाहता है लेमकन वह नकु ल में अब मबलकु ल रुमच
मलए रहती है । पर वह साफ मना कर देती है मक उसे
नहीं रखती है । वह कहती है-“ तुम्हें लग रहा होगा मक
कु छ नहीं चामहए, उसे के वल दूबे जी चामहए । वह
मैं उन बीते हुए वर्षों की डोर थामकर अब भी तुम्हारे
कहती है मक-“ मैंने कोई उनसे शादी तो की नहीं है जो
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017