सावित्रीबाई ्के प्रयासों से उन्के स्कूल में िबिी- पिछड़ी जातियों ्के बिच्चे , विशेर्कर लड़कियों ्की संखया बिढ़ती गई । इस दौरान उनहें ्काफी परेशानियों ्का सामना ्करना पड़ा । जबि वह पढ़ाने जाती थी , तो उन्का रोजाना घर से विद्ालय जाने त्क ्का सफर बिेहद कष्टदाय्क होता था । लोगों ने उनहें प्रताड़ित भी द्कया और
सावित्ीबाई फु ले ने के वल महिला की शिक्ा पर ही ध्ान नहीं दिया , बल्कि ल््रियों की दशा सुधारने के लिए भी उन्ोंने कई महत्वपूर्ण काम किए । उन्ोंने 1852 में '' महिला मंडल '' का गठन किया और भारतीय महिला आंदोलन की पहली अगुआ बनीं ।
उन्का अपमान भी द्कया , लेद्कन सावित्रीबाई यह सबि चुपचाप सहती रहीं और महिलाओं ्को शिक्ा दिलाने ्के लिए पदूरी दह्मत और आतमद्श्ास ्के साथ डटीं रहीं ।
्काफी संघरषों ्के बिाद 1848 से ले्कर 1852 ्के मधय सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले ्के साथ दबिना द्कसी आर्मा्क मदद ्के लड़कियों ्को दशदक्त ्करने ्के लिए अठारह स्कूल खोले । सावित्रीबाई और जयोदतराव फुले 1851 ्के अंत त्क पुणे में तीन अलग-अलग
महिला स्कूलों ्के प्रभारी थे और तीन संस्ानों में लगभग 150 छात् नामांद्कत थे । तीनों स्कूलों ने सर्कारी स्कूलों में उपयोग ्की जाने वाली अलग-अलग दशक्ण रणनीतियों ्का उपयोग द्कया , जैसा द्क पाठ्यकम ने द्कया था । फुले ्के तरी्कों ्को सर्कारी स्कूलों में नियोजित लोगों ्के लिए बिेहतर माना जाता था । इस प्रतिष्ा ्के ्कारण , पब्लिक स्कूलों में नामांद्कत लड़कों ्की संखया ्की तुलना में लड़कों ्की तुलना में फुले स्कूलों में अदध्क लड़कियों ने भाग लिया । वह लगातार महिलाओं ्को उच्च शिक्ा दिलाने ्के लिए ्कार्य ्करती रहीं । शिक्ा क्ेत् में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ्के योगदान ्को देखते हुए ब्रिटिश सर्कार ्के शिक्ा विभाग ने उनहें 16 नवम्बर 1852 में स्मादनत भी द्कया ।
सावित्रीबाई फुले ने ्केवल महिला ्की शिक्ा पर ही धयान नहीं दिया , बिषल्क षसत्यों ्की दशा सुधारने ्के लिए भी उनहोंने ्कई महत्पदूणमा ्काम द्कए । उनहोंने 1852 में '' महिला मंडल '' ्का गठन द्कया और भारतीय महिला आंदोलन ्की पहली अगुआ बिनीं । उनहोंने विधवाओं ्की षस्दत ्को सुधारने और बिाल हतया पर भी ्काम द्कया । उनहोंने विधवा पुनर्विवाह ्की भी शुरुआत ्की और 1854 में विधवाओं ्के लिए आश्रम भी बिनाया । उनहोंने नवजात शिशुओं ्के लिए भी ्का आश्रम खोला ताद्क ्कनया भ्रूण हतया ्को रो्का जा स्के । सावित्रीबाई रुढिवादिता से स्यं ्को िदूर रखा और समाज ्कलयाण एवं महिला उत्ान ्के ्काम में जीवन भर लगी रही ।
सावित्रीबाई ने दलित वर्ग ्के उत्ान ्के लिए भी ्कई महत्पदूणमा ्काम द्कए । उनहोंने समाज ्के हित ्के लिए ्कई अभियान चलाए । समाज हित में ्काम ्करने वाले उन्के पति ज्योतिबा ने 24 सितंबिर 1873 ्को अपने अनुयायियों ्के साथ ‘ सतयशोध्क समाज ’ नाम्क ए्क संस्ा ्का निर्माण द्कया , जिस्के अधयक् ज्योतिबा फुले थे और महिला प्रमुख सावित्रीबाई फुले ्को बिनाया गया था । इस संस्ा ्की स्ापना ्करने ्का मुखय उद्ेशय शदूद्रों और अति शदूद्रों ्को उच्च जातियों ्के शोषण और अतयाचारो से मुषकत
दिला्कर उन्का द््कास ्करना था ताद्क वह अपनी सफल जिंदगी वयतीत ्कर स्कें । इस तरह महिलाओं ्के लिए शिक्ा ्का द्ारा खोलने वाली सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा ्के हर ्काम ्कंधे से ्कंधे मिला्कर सहयोग द्कया । अपने पति ज्योतिबा ्की मौत ्के बिाद भी उनहोंने समाज ्की सेवा ्करना नहीं छोड़ा । इस दौरान साल 1897 में पुणे में “ पलेग ” जैसी जानलेवा बिीमारी ्काफी खतरना्क तरी्के से फैली , तो इस महान समाजसेवी ने इस बिीमारी से पीड़ित लोगों ्की सेवा ्करनी शुरू ्कर दी । इसी दौरान वह स्यं इस जानलेवा बिीमारी ्की चपेट में आ गई और 10 मार्च 1897 में उन्की मृतयु हो गई । तमाम तरह ्की परेशानियों , संघरषों और समाज ्के प्रबिल विरोध ्के बिावजदूि भी सावित्रीबाई ने महिलाओं ्को शिक्ा दिलाने और उन्की षस्दत में सुधारने में जिस तरह से ए्क लेख्क , कांदत्कारी , समादज्क ्कायमा्कतामा बिन्कर समाज हित में सराहनीय ्कार्य द्कया । वासत् में देखा जाए तो सावित्रीबाई फुले ने लोगों ्के लिंग और जाति ्के आधार पर पूर्वाग्रह और अनयायपदूणमा वय्हार ्को खतम ्करने ्का ्काम द्कया ।
सावित्रीबाई फुले ने ्कद्ता और गद् भी लिखा । उनहोंने “ गो , प्रापत शिक्ा ” नाम्क ए्क ्कद्ता भी जारी ्की , जिसमें उनहोंने उन लोगों से शिक्ा प्रापत ्कर्के खुद ्को मुकत ्करने ्का आग्ह द्कया , जिनहें शिक्ा प्रापत ्करने ्के लिए उतपीदड़त द्कया गया है । उनहोंने 1854 में ्कावया फुले और 1892 में बिावन ्काशी सुबिोध रत्नाकर ्को प्र्काशित द्कया । वह अपने अनुभवों और प्रयासों ्के परिणामस्रूप ए्क उत्कट नारीवादी बिन गई । महिलाओं ्के अदध्कारों से संबिंधित मुद्ों ्के बिारे में जागरू्कता ्को बिढ़ा्ा देने ्के लिए , उनहोंने महिला सेवा मंडल ्की स्ापना ्की । उनहोंने यह भी मांग ्की द्क ए्क ऐसी जगह होनी चाहिए जहां महिलाएं एकत्र हो स्कती हैं जो द्कसी भी प्र्कार ्के जाति-आधारित पूर्वाग्रह से रहित हो । यह आवश्यकता द्क उपषस्दत में प्रत्येक महिला ए्क ही चटाई पर बिैठती है , इस्के प्रती्क ्के रूप में ्कार्य ्करती है । �
tuojh 2024 37