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सहानुभदूदत ्के दायरे में होता है , तबि त्क हमारी दृष्ट में यह ठी्क ्कहा जाता है लेद्कन जयों ही वे अपने अदध्कारों ्की मांग ्करते हैं हमारे लिए हिंसा और घृणा ्के पात् बिन जाते है । “ हजारों साल त्क जातीय अपमान व घृणा से उतपीदड़त लोग आज स्मान चाहते है , सवर्ण समुदाय में गरीबि से गरीबि वयषकत ्को भी सामादज्क सतर पर िदूसरों से स्मान मिलता है , लेद्कन आर्मा्क दृष्ट से स्पन्न दलित ्को उस्की जातीय पहचान ्के ्कारण वय्हार में वैसा स्मान नहीं मिलता है । इसलिए दलित ्की पीड़ा आर्मा्क ्कम सामादज्क अदध्क है । आर्मा्क द््कास होने पर वयषकत ्का रहन सहन और जीवन यापन ्के तौर तरी्के बििल जाते
है , लेद्कन धर्म और जातिगत समाज ्की नजरों में वह रहता निम्न ही है । जातिवाद ्की समसया मात् दलितों ्की समसया नही है , यह सम्पूर्ण समाज एवं रा्ट्र ्की समसया है । दलित मुषकत ्की समसया सारे देश ्के बिहुजन ्की आवश्यकता है ।
वर्तमान समय में गरीबिी ्की रेखा से नीचे रहने वाली ्कुल 49 प्रतिशत जनता ्के मु्काबिले दलितों ्की 70 प्रतिशत उस अतिदरिद्रता ्की हालत में रहती हैं । देश ्की ्कुल आबिादी ्का 16 प्रतिशत होने ्के बिाद भी दलितों ्के पास ्कुल खेती योगय जमीन ्का ्केवल ए्क प्रतिशत हिससा ही है । 2011 ्की जनगणना ्के अनुसार दलितों में रा्ट्रीय साक्रता दर लगभग 62
प्रतिशत है । इन्की तीन-चौथाई आबिादी ग्ामीण क्ेत्ों में रहती है तथा इतनी ही खेती ्के ्कायणो में लगी है । देश ्के बिारह प्रदेशों में छूआछूत प्रचलन में है और अनय राजयों में इस्का असर ्कुछ ्कम हुआ है । 20वीं सदी ्के िदूसरे दश्क से डा . आंबिेड्कर ने निरनतर दलित मुषकत और मानवादध्कार ्के मामले उठा्कर सर्कार एवं पदूरे देश ्का धयान आ्कदरमात द्कया । महाड़ एवं ्कालाराम मंदिर प्र्करण , गोलमेज स्मेलन , पदूना पैकट , स्तंत् मजिदूर दल , अनुसदूदचत जाति संघ , संविधान सभा से होते हुये देश ्के प्रथम ्कानदून मंत्ी और उससे तयागपत् ्का सफर विपरीत हालात से गुजरता हुआ 14 अक्टूबर 1956 ्को बिौद् धर्मानतरण ्के साथ ही पदूणमा
30 tuojh 2024