Jan 2024_DA | Page 30

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सहानुभदूदत ्के दायरे में होता है , तबि त्क हमारी दृष्ट में यह ठी्क ्कहा जाता है लेद्कन जयों ही वे अपने अदध्कारों ्की मांग ्करते हैं हमारे लिए हिंसा और घृणा ्के पात् बिन जाते है । “ हजारों साल त्क जातीय अपमान व घृणा से उतपीदड़त लोग आज स्मान चाहते है , सवर्ण समुदाय में गरीबि से गरीबि वयषकत ्को भी सामादज्क सतर पर िदूसरों से स्मान मिलता है , लेद्कन आर्मा्क दृष्ट से स्पन्न दलित ्को उस्की जातीय पहचान ्के ्कारण वय्हार में वैसा स्मान नहीं मिलता है । इसलिए दलित ्की पीड़ा आर्मा्क ्कम सामादज्क अदध्क है । आर्मा्क द््कास होने पर वयषकत ्का रहन सहन और जीवन यापन ्के तौर तरी्के बििल जाते
है , लेद्कन धर्म और जातिगत समाज ्की नजरों में वह रहता निम्न ही है । जातिवाद ्की समसया मात् दलितों ्की समसया नही है , यह सम्पूर्ण समाज एवं रा्ट्र ्की समसया है । दलित मुषकत ्की समसया सारे देश ्के बिहुजन ्की आवश्यकता है ।
वर्तमान समय में गरीबिी ्की रेखा से नीचे रहने वाली ्कुल 49 प्रतिशत जनता ्के मु्काबिले दलितों ्की 70 प्रतिशत उस अतिदरिद्रता ्की हालत में रहती हैं । देश ्की ्कुल आबिादी ्का 16 प्रतिशत होने ्के बिाद भी दलितों ्के पास ्कुल खेती योगय जमीन ्का ्केवल ए्क प्रतिशत हिससा ही है । 2011 ्की जनगणना ्के अनुसार दलितों में रा्ट्रीय साक्रता दर लगभग 62
प्रतिशत है । इन्की तीन-चौथाई आबिादी ग्ामीण क्ेत्ों में रहती है तथा इतनी ही खेती ्के ्कायणो में लगी है । देश ्के बिारह प्रदेशों में छूआछूत प्रचलन में है और अनय राजयों में इस्का असर ्कुछ ्कम हुआ है । 20वीं सदी ्के िदूसरे दश्क से डा . आंबिेड्कर ने निरनतर दलित मुषकत और मानवादध्कार ्के मामले उठा्कर सर्कार एवं पदूरे देश ्का धयान आ्कदरमात द्कया । महाड़ एवं ्कालाराम मंदिर प्र्करण , गोलमेज स्मेलन , पदूना पैकट , स्तंत् मजिदूर दल , अनुसदूदचत जाति संघ , संविधान सभा से होते हुये देश ्के प्रथम ्कानदून मंत्ी और उससे तयागपत् ्का सफर विपरीत हालात से गुजरता हुआ 14 अक्टूबर 1956 ्को बिौद् धर्मानतरण ्के साथ ही पदूणमा
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