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समाज सुधारक , बुद्धिजीवी और दलित चिन्तन

राजेश कुमार शर्मा

20वी शता्िी ्के महत्पदूणमा समाजसुधार्क ज्योतिबा फूले ्की रचनाधर्मिता व आनिोलनों ने महारा्ट में जो जनजागरण द्कया I उस्का प्रभाव हिनिी भाषी राजयों त्क पहुंचा I इतिहास्कार लाल बिहादुर वर्मा उन्की तुलना राजाराम मोहन राय से ्करते हुये लिखते है-राजाराम मोहन राय ्के मु्काबिले ज्योतिबा फूले ्के सरो्कार अदध्क गहरे थे । सैद्ाषनत्क विवेचन ्कभी-्कभी सबि्के लिए ग्ाह्य और प्रासंदग्क नहीं होता , पर ए्क

वय्हारर्क तथा आसान तरी्का है , परिणामों ्के माधयम से चीजों ्को समझने ्का । राजा राम मोहन राय ने जिन सुधारों और उप्करणों ्की बिात ्की थी , वह समाज ्को आधुदन्क बिनाने ्के लिए जरुरी थे , पर उस्का क्ेत् सीमित था और आज 150 ्रणो बिाद भी उनसे समाज ्का अभिजन मुखय रुप से प्रभावित है । पर ज्योतिबा फूले ्के सुधार समाज में ्कुछ आधारभदूत परिवर्तन ्के दबिना लागदू ही नहीं हो स्कते थे । उनहोने जो मुद्े उठाए , वह सामादज्क परिवर्तन ्के एजेणड़े पर आज सबिसे उपर है ।
इतिहास्कारों ने अपनी सामादज्क सं्कीर्णताओं ्के ्कारण राजाराम मोहन राय ्को तो नवजागरण ्का अग्रदूत ्कहते हुए उन पर बिहुत ्कुछ लिखा लेद्कन फूले ्का दजक त्क नहीं द्कया । ज्योतिबा फूले तो ए्क विचार्क-सुधार्क थे , उनहे नजरअंदाज द्कया जा स्कता था और द्कया जाता रहा । इसलिए इतिहास लेखन में दलित दृष्ट और उन्की वास्तविक षस्दत ्को दचषनहत द्कया जाए , तभी इतिहास वासत् में प्रामादण्क और जन इतिहास बिन स्केगा ।
्कंवल भारती ’’ दलित विमर्श ्की भदूदम्का ”
28 tuojh 2024