बाहर विरोध प्दर्शन कक्या , क्योंकि दलितों को इस मंदिर ्परिसर में प्वेश नहीं करने कद्या जाता था । इसने भारत में दलित आंदोलन को शुरू करने में एक महत्व्पूर्ण भूमिका निभाई ।
डॉ . आंबेडकर ने हर बार लंदन में तरीनों गोलमेज़ स्मेिनों ( 1930-32 ) में भाग लि्या और सशकत रू्प से ' अछूत ' के हित में अ्पने विचार व्यकत कक्ये । वर्ष 1932 में उनहोंने महातमा गांधरी के साथ ्पूना समझौते ( Poona Pact ) ्पर हसताषिर कक्ये , जिसके ्परिणामसवरू्प वंचित वगगों के लि्ये अलग निर्वाचक मंडल ( सांप्दाक्यक ्पंचाट ) के विचार को त्याग कद्या ग्या । हालाँकि दलित वगगों के लि्ये आरकषित सरीटों करी संख्या प्ांतरी्य विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्ररी्य विधानमंडल में कुल सरीटों का 18 % कर दरी गई ।
वर्ष 1936 में बाबासाहेब आंबेडकर ने सवतंत् लेबर ्पाटटी करी स्थापना करी । वर्ष 1939 में कद्तरी्य विशव ्युद्ध के दौरान उनहोंने बड़री संख्या में नाज़ीवाद को हराने के लि्ये भारतरी्यों को सेना में शामिल होने का आह्ान कक्या । 14 अकतूबर , 1956 को उनहोंने अ्पने कई अनु्याक्य्यों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कक्या ।
उसरी वर्ष उनहोंने अ्पना अंतिम लेखन का्य्भ ' बुद्ध एंड हिज़ धर्म ' ्पूरा कक्या । वर्ष 1990 में डॉ . बरी . आर . आंबेडकर को भारत रत्न ्पुरसकार से स्माकनत कक्या ग्या था । 14 अप्ैि , 1990 से 14 अप्ैि , 1991 करी अवधि को बाबासाहेब करी ्याद में ' सामाजिक न्या्य के वर्ष ' के रू्प में मना्या ग्या ।
भारत सरकार द्ारा डॉ . आंबेडकर फाउंडेशन को सामाजिक न्या्य और अधिकारिता मंत्रालय के तत्वावधान में 24 मार्च , 1992 को सोसा्यटरी ्पंजरीकरण अकधकन्यम -1860 के तहत एक ्पंजरीककृत सोसा्यटरी के रू्प में स्थापित कक्या ग्या था । फाउंडेशन का मुख्य उद्ेश्य बाबासाहेब डॉ . बरी . आर . आंबेडकर करी विचारधारा और संदेश को भारत के साथ-साथ विदेशों में ररी जनता तक ्पहुँचाने के लि्ये का्य्भक्रमों और गकतकवकध्यों के का्या्भन्वयन करी देखरेख करना है । डॉ . आंबेडकर करी कुछ महत्व्पूर्ण ककृकत्याँ : समाचार पत्र मूकना्यक ( 1920 ), एनिहिलेशन ऑफ कासट ( 1936 ), द अनटचेबलस ( 1948 ), बुद्ध ऑर कार्ल माकस्भ ( 1956 ) इत्यादि ।
कशषिा : बाबासाहेब के लि्ये ज्ञान मुमकत का एक मार्ग है । अछूतों के ्पतन का एक कारण ्यह था कि उनहें कशषिा के लाभों से वंचित रखा ग्या था । उनहोंने कनििरी जाकत्यों करी कशषिा के लि्ये ्प्या्भपत प्रयास नहीं करने के लि्ये अंग्रेज़ों करी आलोचना करी । उनहोंने छात्ों के बरीि सवतंत्ता और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लि्ये धर्मनिर्पेषि कशषिा ्पर जोर कद्या ।
आर्थिक प्गति : वह चाहते थे कि अछूत लोग ग्रामरीर समुदा्य और ्पारं्परिक नौकरर्यों के बंधन से मुकत हों । वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्ापत करें और एक न्या व्यवसा्य शुरू करें तथा औद्ोगरीकरण का लाभ उठाने के लि्ये शहरों करी ओर रुख करें । उनहोंने गाँवों को ' सथानरी्यता का एक सिंक , अज्ञानता , संकरीर्णता और सांप्दाक्यकता का एक खंड ' के रू्प में वर्णित कक्या ।
राजनरीकतक ताकत : वह चाहते थे कि अछूत खुद को राजनरीकतक रू्प से संगठित करें ।
राजनरीकतक शमकत के साथ अछूत अ्पनरी रषिा , सुरषिा और मुमकत संबंधरी नरीकत्यों को ्पेश करने में सषिम होंगे ।
रू्पांतरण : जब उनहोंने महसूस कक्या कि हिंदू धर्म अ्पने तौर-तररीकों को सुधारने में सषिम नहीं है , तो उनहोंने बौद्ध धर्म अ्पना्या और अ्पने अनु्याक्य्यों को ररी बौद्ध धर्म अ्पनाने को कहा । उनके लि्ये बौद्ध धर्म मानवतावाद ्पर आधारित था और समानता एवं बंधुतव करी भावना में विशवास करता था । " मैं अ्पने जनम के धर्म को अस्वीकार करते हुए ्पुनर्जनम लेता हूँ । मैं उस धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के विकास के लिए रुकावट ्पैदा करता है और जो मुझे एक नरीि के रू्प में मानता है ।“ इसलि्ये सामाजिक सतर ्पर कशषिा , भौतिक सतर ्पर आजरीकवका के नए साधन , राजनरीकतक सतर ्पर राजनरीकतक संगठन और आध्यामतमक सतर ्पर आतम- विशवास और रु्पांतरण ने अस्पृश्यता को समापत करने का एक समग्र का्य्भक्रम तै्यार कक्या ।
वर्तमान सम्य में आंबेडकर करी प्ासंगिकता : भारत में जाति आधारित असमानता अररी ररी का्यम है , जबकि दलितों ने आरषिर के माध्यम से एक राजनरीकतक ्पहचान हासिल कर िरी है और अ्पने स्वयं के राजनरीकतक दलों का गठन कक्या है , किंतु सामाजिक आ्यामों ( सवासथ्य और कशषिा ) तथा आर्थिक आ्यामों का अररी ररी अभाव है । सांप्दाक्यक ध्ुवरीकरण और राजनरीकत के सांप्दाक्यकरण का उद्य हुआ है । ्यह आवश्यक है कि संवैधानिक नैतिकता करी आंबेडकर करी दृष्टि को भारतरी्य संविधान में सथा्यरी षिकत से बचाने के लि्ये धार्मिक नैतिकता का समर्थन कक्या जाना चाकह्ये ।
इतिहासकार आर . सरी . गुहा के अनुसार , डॉ . बरी . आर . आंबेडकर अधिकांश कव्पररीत ्परिस्थितियों में ररी सफलता का अनूठा उदाहरण हैं । आज भारत जातिवाद , सांप्दाक्यकता , अलगाववाद , लैंगिग असमानता आदि जैसरी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौकत्यों का सामना कर रहा है । हमें अ्पने ररीतर आंबेडकर करी भावना को खोजने करी ज़रूरत है , ताकि हम इन चुनौकत्यों से खुद को बाहर निकाल सकें । �
tuojh 2023 7