Jan 2023_DA | Page 6

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नेता तकनरीकरी रू्प से संविधान का दुरु्प्योग कर सकते हैं । इसलि्ये ऐसे सुरषिा उ्पा्य आवश्यक हैं । इससे ्पता चलता है कि वह जानते थे कि संविधान लागू होने के बाद भारत को किन व्यावहारिक कठिनाइ्यों का सामना करना ्पड़ सकता है ।
संवैधानिक नैतिकता : बाबासाहेब आंबेडकर के ्परिप्ेक््य में संवैधानिक नैतिकता का अर्थ विभिन्न लोगों के ्परस्पर विरोधरी हितों और प्शासनिक सह्योग के बरीि प्रावरी समन्वय होगा । उनके अनुसार , भारत को जहाँ समाज में जाति , धर्म , भाषा और अन्य कारकों के आधार ्पर विभाजित कक्या ग्या है , एक सामान्य नैतिक विसतार करी आवश्यकता है तथा संविधान उस विसतार में महत्व्पूर्ण भूमिका निभा सकता है ।
लोकतंत् : उनहें लोकतंत् ्पर ्पूरा भरोसा था । उनका मानना था कि जो तानाशाहरी तवरित ्परिणाम दे सकतरी है वह सरकार का मान्य रू्प नहीं हो सकतरी है । लोकतंत् श्ेष्ठ है क्योंकि ्यह सवतंत्ता में अभिवृद्धि करता है । उनहोंने लोकतंत् के संसदरी्य सवरू्प का समर्थन कक्या , जो कि अन्य देशों के मार्गदर्शकों के साथ संरेखित होता है । उनहोंने ' लोकतंत् को जरीवन ्पद्धति ’ के रू्प में महत्व कद्या , अर्थात् लोकतंत् का महत्व केवल राजनरीकतक षिेत् में हरी नहीं बमलक व्यमकतगत , सामाजिक और आर्थिक षिेत् में ररी है । इसके लि्ये लोकतंत् को समाज करी सामाजिक ्परिस्थितियों में व्या्पक बदलाव लाना होगा , अन्यथा राजनरीकतक लोकतंत् ्यानरी ' एक आदमरी , एक वोट ' करी विचारधारा गा्यब हो जाएगरी । केवल एक लोकतांकत्क समाज में हरी लोकतांकत्क सरकार करी स्थापना से उत्पन्न हो सकतरी है , इसलि्ये जब तक भारतरी्य समाज में जाति करी बाधाएँ मौजूद रहेंगरी , वासतकवक लोकतंत् करी स्थापना नहीं हो सकतरी । इसलि्ये उनहोंने लोकतंत् और सामाजिक लोकतंत् सुकनमशित करने के लि्ये लोकतंत् के आधार के रू्प में बंधुतव और समानता करी भावना ्पर ध्यान केंद्रित कक्या ।
सामाजिक आ्याम के साथ-साथ आंबेडकर ने आर्थिक आ्याम ्पर ररी ध्यान केंद्रित कक्या ।
वे उदारवाद और संसदरी्य लोकतंत् से प्रावित थे तथा उनहोंने इसे ररी सरीकमत ्पा्या । उनके अनुसार , संसदरी्य लोकतंत् ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को नज़रअंदाज कक्या । ्यह केवल सवतंत्ता ्पर केंद्रित होतरी है , जबकि लोकतंत् में सवतंत्ता और समानता दोनों करी व्यवसथा सुकनमशित करना ज़रुररी है ।
समाज सुधार : बाबा साहेब ने अ्पना जरीवन समाज से छूआछूत व अस्पृश्यता को समापत करने के लि्ये समक्प्भत कर कद्या था । उनका मानना था कि अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट् करी प्गति नहीं हो सकतरी है , जिसका अर्थ है समग्रता में जाति व्यवसथा का उनमूिन । उनहोंने हिंदू दार्शनिक ्परं्पराओं का अध्य्यन कक्या और उनका महत्व्पूर्ण मूल्यांकन कक्या । उनके लि्ये अस्पृश्यता ्पूरे हिंदू समाज करी गुलामरी ( Slavery ) है जबकि अछूतों को हिंदू जाकत्यों द्ारा गुलाम बना्या जाता है , हिंदू जाति स्वयं धार्मिक मूकत्भ्यों करी गुलामरी में रहते हैं । इसलि्ये अछूतों करी मुमकत ्पूरे हिंदू समाज को मुमकत करी ओर ले जातरी है ।
सामाजिक सुधार करी प्ाथमिकता : उनका मानना था कि सामाजिक न्या्य के लक््य को प्ापत करने के बाद हरी आर्थिक और राजनरीकतक
मुद्ों को हल कक्या जाना चाकह्ये । ्यह विचार कि आर्थिक प्गति सामाजिक न्या्य को जनम देगरी , ्यह जातिवाद के रू्प में हिंदुओं करी मानसिक गुलामरी करी अभिव्यमकत है । इसलि्ये सामाजिक सुधार के लि्ये जातिवाद को समापत करना आवश्यक है । सामाजिक सुधारों में ्परिवार सुधार और धार्मिक सुधार को शामिल कक्या ग्या । ्पारिवारिक सुधारों में बाल विवाह जैसरी प्थाओं को हटाना शामिल था । ्यह महिलाओं के सशक्तीकरण का ्पुरज़ोर समर्थन करता है । ्यह महिलाओं के लि्ये सं्पकत्त के अधिकारों का समर्थन करता है जिसे उनहोंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से हल कक्या था ।
जाति व्यवसथा ने हिंदू समाज को मसथर बना कद्या जो निम्न जाकत्यों करी समृद्धि के मार्ग में बाधक है जिसके कारण नैतिक ्पतन हुआ । इस प्कार अस्पृश्यता को समापत करने करी लड़ाई मानव अधिकारों और न्या्य के लि्ये लड़ाई बन जातरी है । वर्ष 1923 में उनहोंने ' बकहष्ककृत हितकाररररी सभा ( आउटकास्टस वेलफे्यर एसोसिएशन )’ करी स्थापना करी , जो दलितों के बरीि कशषिा और संस्कृति के प्िार-प्सार के लि्ये समक्प्भत थरी । वर्ष 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में आंबेडकर ने कालाराम मंदिर के
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