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आतमकथा का शरीि्भक है ' उ्पारा ' ( बाहररी व्यमकत ) ( 1980 ) जो मराठरी में लक्मर माने द्ारा लिखरी गई थरी । ्यह ककृकत केकाड़री समुदा्य के बारे में है । ्यह समुदा्य महाराष्ट् में एसईडरीबरीसरी करी सूिरी में शामिल है । ्यह एक ऐसा समुदा्य है जिसे औ्पकनवेशिक काल में आ्पराधिक जनजाति अकधकन्यम 1871 के तहत
आ्पराधिक जनजाति करार कद्या ग्या था । केकाड़री , आंध् प्देश के ्येरूकुला के समकषि हैं , जिनहें ्पूर्व में ' दमित जाकत्यों ' करी सूिरी में शामिल कक्या ग्या था और बाद में एसटरी का दर्जा दे कद्या ग्या । ्ये दोनों कर्नाटक के कोराचा , जो एससरी करी सूिरी में हैं और तमिलनाडु के कोरावा के समकषि हैं । कोरावा के कुछ तबकों को एसटरी और कुछ को क्पछड़री जाकत्यों में शामिल कक्या ग्या है । अलग-अलग राज्यों में उनहें जो ररी दर्जा कद्या ग्या हो । इसमें कोई संदेह नहीं कि केकाड़री समुदा्य , समाज के सबसे निचले ्पा्यदान ्पर है और उनके जरीवन के बारे में लिखे गए साहित्य को ' दलित साहित्य ' कहा हरी जाना चाहिए , लेकिन ऊ्पर बताए गए स्पष्टरीकरण के साथ । प्कसद्ध लेखिका महाशवेता देवरी ने लोध और सबर नामक एसटरी समुदा्यों ्पर केमनद्रत ककृकत्याँ रिरी हैं ।
दलित सादहत् में सामने आ रहा सच सामान्यतः दलित शबद का इसतेमाल
अनुसूचित जाति के लिए कक्या जाता है अर्थात उन जाकत्यों के लिए जो अछूत प्था करी शिकार थीं । लेकिन समाज में आदिवासरी और अनेक घुमंतू जाकत्याँ ररी शोषण का शिकार रहीं हैं । वे ररी इस दा्यरे में शामिल हैं । इसलिए जब कोई व्यमकत इस शबद का इसतेमाल अधिक व्या्पक अर्थ में करता है तब उसे ्यह अवश्य स्पष्ट करना चाहिए कि वह इसका इसतेमाल किस संदर्भ में कर रहा है । ्यह एक ऐसे दलित िड़के करी कहानरी है जिसके साथ एक ब्ाह्मण उसके द्ारा संस्कृत शिोक उच्ारित करने के ‘ अ्पराध ’ में दुर्व्यवहार करता है । बाद में ्यह िड़का कशषिा प्ापत कर जज बनता है । एक अन्य ्पुराना उदाहरण है मल्लापलिे ( 1922 में प्काशित )। मल्लापलिे का अर्थ है – माला लोगों का निवास सथान । माला , आंध् प्देश करी दो प्मुख एससरी जाकत्यों में से एक है । इसके लेखक उन्नावा लक्मरीनारा्यरा ( 1877- 1958 ) एक ऊँिरी जाति से थे । दो मार्मिक ककृकत्यां जो हाथ से मैला साफ करने करी प्था और उस समुदा्य के चरित्ों को चिकत्त करतरी हैं , वे हैं थोकट्युडे माकन और थोट्टी । इन दोनों ककृकत्यों के लेखक क्रमश : थकाजरी शिवशंकर क्पलिई ( जो अ्पने उ्पन्यास चेमेन के लिए अधिक जाने जाते हैं और जिस ्पर फिलम ररी बनाई जा चुकरी है ) और नागवल्ली आर . एस . कुरू थे । ्ये दोनों ककृकत्यां 1947 में प्काशित हुईं थीं । ्यह दिलचस्प है कि ' मेहतर का ्पुत् ', ' मेहतर ' के ्पूर्व प्काशित हुआ था । कुमारन आसन करी दुरावसथा व चंडाल करषिुकरी ररी दलित समुदा्यों के बारे में हैं । कुमारन आसन स्वयं इकड़वा समुदा्य के थे । उस सम्य इकड़वाओं को ररी ' अछूत ' माना जाता था , हालांकि वे इस प्था से उतने ्परीकड़त नहीं थे जितने कि दलित ।
शिक्षा के लिए हुए संघर्ष पर आधारित ' जूठन '
हिंदरी दलित साहित्य में ओमप्काश वाल्मीकि करी आतमकथा ' जूठन ' ने अ्पना एक विशिष्ट सथान बना्या है | इस ्पुसतक ने दलित , ग़ैर-
दलित ्पाठकों , आलोचकों के बरीि जो लोकप्रियता अर्जित करी है , वह उलिेखनरी्य है । सवतनत्ता प्ामपत के बाद ररी दलितों को कशषिा प्ापत करने के लिए जो एक लंबा संघर्ष करना ्पड़ा , ' जूठन ' इसे गंररीरता से उठातरी है । प्सतुकत और भाषा के सतर ्पर ्यह रचना ्पाठकों के अनतम्भन को झकझोर देतरी है । भारतरी्य जरीवन में रिरी-बसरी जाति-व्यवसथा के सवाल को इस रचना में गहरे सरोकारों के साथ उठा्या ग्या है । सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक विसंगकत्यां क़दम – क़दम ्पर दलित का रासता रोक कर खड़री हो जातरी है और उसके ररीतर हरीनताबोध ्पैदा करने के तमाम षड्ंत् रचतरी है । लेकिन एक दलित संघर्ष करते हुए इन तमाम विसंगकत्यों से अ्पने आतमकवशवास के बल ्पर बाहर आता है और जेएन्यू जैसे विशवकवद्यालय में विदेशरी भाषा का विद्ान बनता है । ग्रामरीर जरीवन में अकशकषित दलित का जो शोषण होता रहा है , वह किसरी ररी देश और समाज के लिए गहररी शकमांदगरी का सबब होना चाहिए था ।' ्पच्चीस चौका डेढ़ सौ ' ( ओमप्काश वाल्मीकि ) कहानरी में इसरी तरह के शोषण को जब ्पाठक पढ़ता है , तो वह समाज में व्यापत शोषण करी संस्कृति के प्कत गहररी निराशा से भर उठता है ।
सदियों के उत्ीड़न से पनपा आक्ोश
दलित कहाकन्यों में सामाजिक ्परिवेशगत ्परीड़ाएं , शोषण के विविध आ्याम खुल कर और तर्क संगत रू्प से अभिव्यकत हुए हैं । ' अ्पना गाँव ' मोहनदास नैमिशरा्य करी एक महत्व्पूर्ण कहानरी है जो दलित मुमकत-संघर्ष आंदोलन करी आंतरिक वेदना से ्पाठकों को रूबरू करातरी है । दलित साहित्य करी ्यह विशिष्ट कहानरी है । दलितों में सवाकरमान और आतमकवशवास जगाने करी भाव भूमि तै्यार करतरी है । इसरीकिए ्यह विशिष्ट कहानरी बन कर ्पाठकों करी संवेदना से दलित समस्या को जोड़तरी है । दलितों के ररीतर हज़ारों साल के उत्परीड़न ने जो आक्रोश जगा्या है वह इस कहानरी में सवाराविक रू्प से अभिव्यकत होता है । �
tuojh 2023 47