जनमकदवस आंबेडकर ज्यंतरी के रू्प में ्पूररी दुकन्या में मना्या जाता है । बि्पन में वे भिवा , ररीम , ररीमराव के नाम से जाने जाते थे लेकिन आज हम सब उनहें बड़े आदर के साथ बाबा साहेब आंबेडकर के नाम से ्पुकारते हैं । वे बि्पन से हरी प्कतराशािरी छात् थे और उनहोंने कोलंकब्या विशवकवद्यालय तथा लंदन सकूि ऑफ इकॉनोमिकस दोनों हरी विशवकवद्यालयों से अर्थशासत् में डॉकटोरेट करी उ्पाकध्यां हासिल करी । अर्थशासत् के साथ विधि एवं राजनरीकत विज्ञान में ररी शोध का्य्भ कक्या । प्ारंभ में वे अर्थशासत् के प्ोफेसर रहे , वकालत ररी करी , लेकिन बाद में वे राजनैतिक गकतकवकध्यों में सम्मकित होकर भारत करी वासतकवक सवतंत्ता , सामाजिक सवतंत्ता तथा आर्थिक सवतंत्ता के लिए अ्पना ्पूरा जरीवन समक्प्भत कर कद्या ।
उस सम्य हिंदू धर्म में अनेक कुररीकत्यां , छुआछूत और ऊंच-नरीि करी प्था्यें प्ििन में थीं । जिसके लिए उनहोंने अथक संघर्ष कक्या । वे स्वयं दलित वर्ग से स्बमनधत थे । छुआछूत के दंश को , समाज में व्यापत सामाजिक असमानता , जाति-व्यवसथा , शूद्रों के साथ होने वाले अमानवरी्य व्यवहार को उनहोंने अ्पने बाल्यकाल से देखा-जाना और भोगा था । उस भोगे हुए जरीवन-्यथार्थ से उनहें प्त्येक प्कार करी सामाजिक असमानता के लिए आवाज उठाने करी प्ेरणा कमिरी । उनका मानना था कि “ छुआछूत गुलामरी से ररी बदतर है ।” सन 1927 तक डॉ . आंबेडकर ने छुआछूत के विरूद्ध एक सकक्र्य आंदोलन प्ारंभ कक्या और सार्वजनिक आंदोलन , सत्याग्रह और जुलूसों के माध्यम से ्पे्यजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सररी वगगों के लिए खुलवाने का प्रयास कक्या । वे निरंतर हिंदू समाज को सुधारने , समानता लाने के लिए प्रयास करते रहे , लेकिन कुप्थाओं करी जड़ें इतनरी गहररी थीं कि उनका समूल उनमूिन उनहें कठिन लगने लगा । एक बार तो वे गहररी हताशा में कहते हैं कि “ हमने हिंदू समाज में समानता का सतर प्ापत करने के लिए हर तरह के प्रयास और सत्याग्रह किए , ्परंतु सब निरर्थक सिद्ध हुए । हिंदू समाज में समानता के लिए कोई
सथान नहीं है ।”
इसका ्परिणाम ्यह हुआ कि 14 अकटूबर , 1956 को नाग्पुर में उनहोंने अ्पने 3.85 लाख समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म को अ्पनाते हुए वंचित दलित समुदा्य को नवरीन धार्मिक , अध्यामतमक , नैतिक मूल्यों , ररीकत रिवाजों करी एक जरीवंत ्परं्परा प्दान करी । उनहोंने भारतरी्य समाज व्यवसथा , जाति व्यवसथा , धर्म का , अर्थ-तंत् , वंचित वर्ग के अधिकार , मजदूरों और कामगारों का हित , महिला-अधिकार , व्यवस्थापिका , का्य्भ्पालिका एवं सरकाररी सेवा में दलित वर्ग के सवाराविक प्कतकनकधततव के साथ हरी कशषिा , ज्ञान-विज्ञान आदि मुद्ों ्पर सर्वाधिक तार्किक ढ़ंग से सोचा-विचारा और अ्पने कनष्किगों को हमारे सामने रखा । वे एक बहु्पकठत और बहुज्ञ व्यमकततव के सवामरी थे . उनका वैचारिक-पक्ष न्या्योचित एवं मानवरी्य था । उनका सम्पूर्ण जरीवन और वैचारिक-भूमिका भारतरी्य समाज और चेतना में समरसता को स्थापित करने हेतु न्या्योचित ्परिवर्तन के लिए समक्प्भत रहा ।
उनहोंने अ्पनरी श्मसाध्य ज्ञानातमक प्रयासों
से ्यह ्पा्या कि भारतरी्य समाज व्यवसथा में निहित संरचनाएं , जैसे , जाति-व्यवसथा , वर्ण- व्यवसथा , अस्पृश्यता , ऊंच-नरीि , शोषण , अन्या्य आदि बाद के दिनों में आ्ये विभिन्न गतिरोधों एवं विककृकत्यों करी उ्पज हैं न कि प्राचीन भारतरी्य समाज-व्यवसथा का मूल सवराव । भारतरी्य समाज व्यवसथा , आर्थिक तंत् , राजनैतिक प्रक्रियाओं एवं सभ्यता करी उ्पिमबध्यां तथा दुविधाओं के प्कत बाबा साहेब का समझ अतुलनरी्य है । अ्पनरी इसरी विशिष्ट प्कतरा के चलते वे सवतंत् भारत के प्थम विधि एवं न्या्य मंत्री बने । वह भारतरी्य संविधान के जनक एवं भारतरी्य गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे । उनके भारतरी्य संविधान के अभूत्पूर्व ्योगदान के लिए उनहें ‘ भारतरी्य संविधान का क्पतामह ’ कहा जाता है । सन् 1951 में उनहोंने ‘ भारत के कवत्तरी्य कमरीशन ’ करी स्थापना करी ।
डॉ . आंबेडकर करी अंतिम ्पांडुलिक्प “ द बुद्धा एंड हिज़ ध्म ” को ्पूरा करने के 3 दिन ्पशिात् , उनकरी मृत्यु 6 दिसंबर , 1956 को दिल्ली में नींद में हरी हो गई ्पर आज ररी वे ‘ बाबा साहेब ररीमराव आंबेडकर ’, ‘ ज्य ररीम ’ , ‘ एक महाना्यक ’ के रू्प में अमर हैं । गूगल द्ारा उनके 124वें जनमकदवस ्पर एक होम ्पेज Doodle ( डूडल ) प्ारंभ कक्या ग्या । डॉ . अ्बेडकर कहा करते थे , “ हम शुरू से लेकर अंत तक भारतरी्य हैं और मैं चाहता हूँ कि भारत का प्त्येक मनुष््य भारतरी्य बने , अंत तक भारतरी्य रहे और भारतरी्य के अलावा कुछ न बने ।”
ऐसे ्युग निर्माता के जनमकदवस ्पर हम सररी भारतरी्यों के लिए उनका संदेश “ कशकषित बनो , संगठित बनो , संघर्ष करो ” प्ेरणा का स्ोत बना हुआ है । भारतरी्य संविधान में बहुमूल्य ्योगदान इस देश को एक नई दिशा देने वाले बाबा साहेब समता , सवतंत्ता और समरसता के सौन्दर्य के सवाराविक प्तरीक ्पुरुष थे । उनके क्रांतिकाररी विचार और निष्कर्ष , उनके द्ारा खोजे और ्पा्ये ग्ये प्ाथमिक स्ोतों ्पर आधारित हैं । इसरीकिए वर्तमान सम्य में ररी उनके विचारों करी प्ासंगिकता बनरी हुई है बमलक ्यूं कहें कि और बढ़ गई है ।
( साभार )
tuojh 2023 19