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सुकख्भ्यों से आरंभ होकर एक — दो दिनों के ररीतर अंतिम ्पन्ने के हाशिए से होते हुए चर्चा से गा्यब हो जातरी हैं । ्यह किसरी एक राज्य का मामला नहीं है , बमलक देश के हर कोने से ऐसरी अमानवरी्यता करी खबरें आतरी रहतरी हैं । दलितों ्पर अत्याचार और उत्परीड़न का कहर ढ़ाने वाले ररी किस एक जाति ्या बिरादररी अथवा मत — ्पंथ ्या संप्दा्य के नहीं होते , हर गैर — दलित वर्ग इसमें बराबर का साझरीदार और भागरीदार रहता है । कहने को इसे कानून — व्यवसथा का मसला बताकर इसके जातरी्य ्पहलू करी अनदेखरी करी जा सकतरी है लेकिन इस सच को झुठला्या नहीं जा सकता कि दलित और ्पूरे अनुसूचित समाज को जातरी्य आधार ्पर लंबे सम्य से दमित , उत्परीकड़त और शमित करने करी कुचेष्टा लगातार करी जातरी है । नतरीजन आंकड़े ररी इस बात करी गवाहरी देते हैं कि जिस तेजरी से दलित वर्ग अ्पने सवाकरमान करी राह ्पर आगे बढ़कर हर सतर ्पर बराबररी हासिल करने करी दिशा में तेजरी से आगे बढ़ रहा है वहीं दलितों के इस उतथान से समाज के एक बड़े कुंठित व अभिमानरी वर्ग को भाररी ्परेशानरी हो रहरी है । दलितों का सवाकरमान के साथ आगे बढ़ना उसे रास नहीं आ रहा । हजम नहीं हो रहा । लिहाजा वह मौके करी तलाश में रहता है कि अनुसूचितों को कब और कैसे अ्पने निशाने ्पर लेकर उनहें दमित कक्या जाए , नरीिा दिखा्या जाए और उनहें हताश — निराश कक्या जाए ।
सर्वव्ापी समस्ा : संकु चित सोच
दलित विरोधरी मानसिकता वाले वर्ग करी जलन — कुढ़न अब उसरी तेजरी से उभर कर सामने आ रहा है जिस तरीव्र गति से तरक्की करी राह ्पर दलित समाज आगे बढ़ रहा है । वर्ना कोई कारण नहीं था कि सभ्य समाज में दलितों ्पर होने वाले अन्या्य , अत्याचार और उत्परीड़न के मामलों में वृद्धि दिखाई ्पड़े । सच तो ्यह है कि देश भर में दलितों के खिलाफ अत्याचार साल दर साल बढ़ते हरी जा रहे हैं । भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने औ्पिारिक
तौर ्पर संसद में माना है कि 2018 से 2020 के बरीि दलितों के खिलाफ अ्पराध के तकररीबन डेढ़ लाख मामले दर्ज हुए । गृह मंत्रालय ने जो आंकड़ा कद्या है , उसमें साफ दिख रहा है कि दलितों ्पर अत्याचार के मामले साल दर साल बढ़े हैं । साल 2018 में दलितों ्पर अत्याचार के 42,793 मामले दर्ज हुए थे , जो कि 2019 में बढ़कर 45,961 हो गए । आगे चल कर साल 2020 में एससरी-एसटरी एकट के तहत 53,886 मामले दर्ज कक्ये गए । ्यह सिलसिला लगातार जाररी है । सरकाररी आंकड़े बताते हैं कि दलितों ्पर अत्याचार के मामले सबसे ज्यादा ्यू्परी , बिहार और राजसथांन में हुए हैं । इसे राजनरीकतक नजरिए से देखें तो ्यू्परी में भाज्पा , बिहार में जद्यू के नेतृतव में महागठबंधन जबकि राजसथान में कांग्रेस करी सरकार है । ्यानरी किसरी एक दल को दलितों ्पर अत्याचार के लिए दोिरी ठहरा देना सहरी नहीं होगा । अलबत्ता भाज्पा और गैर — भाज्पा शासित राज्यों में ्यह अंतर अवश्य है कि भाज्पा शासित ्यू्परी से लेकर कर्नाटक और मध्य प्देश तक में ऐसे मामलों के सामने आने ्पर शासन तंत् तवरित और कठोर कार्रवाई करता हुआ दिखाई ्पड़ता है जबकि राजसथान , बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल सररीखे गैर — भाज्पा शासित राज्यों से ऐसरी खबरें अकसर सामने आतरी हैं कि ्पहले तो ्परीकड़त करी शिका्यत हरी दर्ज नहीं होतरी और अगर मामला उछलने ्पर मुकदमा दर्ज ररी करना ्पड़े तो शासन करी संवेदना आरो्परी वर्ग के पक्ष में झुकरी हुई हरी दिखाई ्पड़तरी है ।
पर उपदेश कु शल बहुतेरे
वर्ष 2011 करी जनगणना के आंकड़े बताते है कि देश करी कररीब 24 प्कतशत आबादरी अनुसूचितों करी है । ्यह वे लोग हैं जो दशकों से नहीं बमलक सकद्यों से समाज के सताए हुए हैं । इनहें जातरी्य आधार ्पर लगातार आर्थिक गैरबराबररी के अलावा जातरी्य उत्परीड़न , छूआछूत , भेदभाव और प्ताड़ना का शिकार होना ्पड़ा है । हालांकि ्यह सच है कि समाज
का बहुत बड़ा वर्ग अब जातरी्य कुंठा से बाहर निकल कर मानव मात् को एक समान समझने और उसके अनुरू्प हरी आचरण करने करी दिशा में आगे बढ़ा है लेकिन इस बात से ररी इनकार नहीं कक्या जा सकता कि जिस तरह दिए करी लौ बुझने से ्पहले बहुत तेजरी से फड़फड़ातरी है , वैसे हरी सकद्यों से ्पालित — ्पोषित दलित विरोधरी कुंठा समापत होने से ्पहले लगातार तेजरी से जोर ्पकड़तरी दिख रहरी है । चुंकि अनुसूचित समाज का बहुत बड़ा वोट बैंक ररी है और उससे ररी बड़ा वोट बैंक गैर — अनुसूचित समाज का है । लिहाजा वोट बैंक करी राजनरीकत करने वाले लोग इन दोनों वगगों को लड़ाने — भिड़ाने का कोई ररी मौका हाथ से जाने देना गवारा नहीं करते । खुद को दलितों का सबसे बड़ा मसरीहा और हितैिरी साबित करने करी होड़ में इन राजनरीकतक दलों के बरीि अ्पने ्या समान विचारधारा वाले दलों द्ारा शासित राज्य करी तस्वीर गुलाबरी दिखाने
10 tuojh 2023