Hybrid Hues '15-'17 AIIMS, New Delhi | Page 79

वो जो मर्द कहते हैं खुदको, औरत की कोख से जन्मे हैं। वो जो मर्द कहते हैं खुदको आज जानवरों से भी निकम्मे हैं। दफ़न हो जाती है ज़िंदगी इक-इक सपनों को दामन में पिरोते-पिरोते, वो जो मर्द कहते हैं खुदको, दामन को दामिनी बना सड़क पे छोड़ते। वो जो 'मर्द' कहते हैं खुदको उम्र भर माँ के हाथ जिन, बेटों का जीवन सवारतें हैं, वो जो मर्द कहते हैं खुदको, किसी माँ की बेटी की खाल उतारते हैं। उम्र भर रक्षा का वादा कर, करोड़ों हाथ राखी बंधवाते हैं। वो जो मर्द कहते हैं खुदको, उन्ही हाथों से बहनों को, तबाह कर ज़िंदा जलाते हैं। चल नहीं सकते, एक कदम भी, औरत के सहारे के बिना, वो जो मर्द कहते हैं खुदको, उसे बेबस बेसहारा बनाते हैं। ऐसे हाल में जब हम, नारी से अभिशापित हो जाएं गे, वो जो मर्द कहते हैं खुदको, खुद अपनी ही अर्थी उठाएं गे। शर्म हया के पर्दे त्याग जब, जननी ज्वाला बन जाएगी। वो जो मर्द कहते हैं खुदको, उनकी मर्दानगी ख़ाक में मिल जाएगी। इज्जत गर चाहते हो तो, इज्जत सम्मान देना सीखो, वो जो मर्द कहते हैं खुदको, नारी को स्वाभिमान देना सीखो। डॉ. पंकज वर्मा वर्ष २००४