कुशा पां डे
३२६४, वष २०१६
मेरा गावँ
सबसे सं ुदर, सबसे �ारा, �ारा मेरा गावँ ।
�म� � मैना गीत सुनात े जहा ँ आम क� �ावँ ।।
कोलाहल से दर ू नदी क� कल कल करती धार ।
�� हवा म� इठलाती गाती ह ै म� बहार ।।
बारी बारी से सारी ऋतएुं आनं द �ब�ाती ।
गम , वषा,� शीत �कृ �त के नए रंग िदखलाती ।।
हरी-हरी सरसो ं पर जब आत � ह � पीले फू ल ।
धरती मा ँ के आचँल पर उड़ती ह ै कही ं न धल
।।
ब�राए आमो ं क� डाली जी को ब�त लुभाती ।
वैशाखी क� भरी दपहरी
नदी तीर ले जाती ।।
िफर अषाढ़ के मेघ गजन�ा करत े घोर गं भीर ।
सहम-सहम उठता ह ै मन, डर जात े बालक वीर ।।
सावन क� ह�रयाली िफर राखी का वह �ोहार ।
पुलक-पुलक हो जाता भैया देख बहन का �ार ।।
िफर आती ह ै शीत उड़ाती कं बल और रजाई ।
कोहरे और �स म� भीगी धरती भी िठठु राई ।।
खेत जोतत े काका ता� क� त�ीर �नराली ।
बल
ो ं क� �नझन ु म� बबेस करती नृ� मराली ।।
।
सच पू�ो तो �कृ �त यहा ँ करती ह ै रोज़ �सगार
अपनी इस मा�ी पर म� भी हो जा�ँ ब�लहार ।।