Hybrid Hues '15-'17 AIIMS, New Delhi | Page 149

कुशा पां डे ३२६४, वष २०१६ मेरा गावँ सबसे सं ुदर, सबसे �ारा, �ारा मेरा गावँ । �म� � मैना गीत सुनात े जहा ँ आम क� �ावँ ।। कोलाहल से दर ू नदी क� कल कल करती धार । �� हवा म� इठलाती गाती ह ै म� बहार ।। बारी बारी से सारी ऋतएुं आनं द �ब�ाती । गम , वषा,� शीत �कृ �त के नए रंग िदखलाती ।। हरी-हरी सरसो ं पर जब आत � ह � पीले फू ल । धरती मा ँ के आचँल पर उड़ती ह ै कही ं न धल ।। ब�राए आमो ं क� डाली जी को ब�त लुभाती । वैशाखी क� भरी दपहरी नदी तीर ले जाती ।। िफर अषाढ़ के मेघ गजन�ा करत े घोर गं भीर । सहम-सहम उठता ह ै मन, डर जात े बालक वीर ।। सावन क� ह�रयाली िफर राखी का वह �ोहार । पुलक-पुलक हो जाता भैया देख बहन का �ार ।। िफर आती ह ै शीत उड़ाती कं बल और रजाई । कोहरे और �स म� भीगी धरती भी िठठु राई ।। खेत जोतत े काका ता� क� त�ीर �नराली । बल ो ं क� �नझन ु म� बबेस करती नृ� मराली ।। । सच पू�ो तो �कृ �त यहा ँ करती ह ै रोज़ �सगार अपनी इस मा�ी पर म� भी हो जा�ँ ब�लहार ।।