Hybrid Hues '15-'17 AIIMS, New Delhi | Page 148

146 सुनसान अध रेी ब�ी म�, अ� का दाता सोता ह.ै न कु � बचा उसक� क�ी म�, मन ही मन वह रोता ह.ै िफर भी झल अकाल तो कभी पाला, आज गया और कल भी उसको िदखता काला, � ई�र� ा ह ै तरेी मज़ ? ा त ू �नकाल कर ही �ोड़ेगा उसका िदवाला? सपने भी उसके अपने नही, ं दद� उसे दे जात े सब. हर ण यही खयाल आता, मेरी सुबह होगी कब? हल सा कठोर सीना और फू ल सा कोमल मन उसका, होगी रोशनी, �नकलेगा सूरज, इं तज़ार ह,ै उसे नई सुबह का. बारी तरेी ह,ै िदखा दे करतब त ू भी, नही ं तो कै से कहगेा त ू एक ह ै मा�लक सबका. �� ब�त पाले थ े उसने, घर होगा, सं सार होगा, मेरे भी होगे ं अपने. खेत िदया उसको उसने �ई�र ने�, �ई�र ने कहा�� जा खाद बना दे सपनो ं क�, तािक चैन से जी सक� मेरे अपने. मान गया, और कहता ा, था वह भोला-भाला, ����� प�े ल ३२५५, वष २०१६