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सुनसान अध
रेी ब�ी म�,
अ� का दाता सोता ह.ै
न कु � बचा उसक� क�ी म�,
मन ही मन वह रोता ह.ै िफर भी झल
अकाल तो कभी पाला,
आज गया और कल भी उसको िदखता काला,
� ई�र� ा ह ै तरेी मज़ ?
ा त ू �नकाल कर ही �ोड़ेगा उसका िदवाला?
सपने भी उसके अपने नही, ं
दद� उसे दे जात े सब.
हर ण यही खयाल आता,
मेरी सुबह होगी कब? हल सा कठोर सीना और फू ल सा कोमल मन उसका,
होगी रोशनी, �नकलेगा सूरज,
इं तज़ार ह,ै उसे नई सुबह का.
बारी तरेी ह,ै िदखा दे करतब त ू भी,
नही ं तो कै से कहगेा त ू एक ह ै मा�लक सबका.
�� ब�त पाले थ े उसने,
घर होगा, सं सार होगा,
मेरे भी होगे ं अपने.
खेत िदया उसको उसने �ई�र ने�,
�ई�र ने कहा�� जा खाद बना दे सपनो ं क�,
तािक चैन से जी सक� मेरे अपने.
मान गया, और कहता ा, था वह भोला-भाला,
����� प�े ल
३२५५, वष २०१६