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जन्म दिवस पर विशेष

द्िन्दू धर्म रक्षक संत शिरोमणि गुरु रैदास

डा . विजय सोनकर शासत्ी fg

नदू सं \ स्कृद्त के संक्टकालीन बरेला में जब इ्लाम अथवा मृतयु में सरे द्कसी एक को अंगीकार करना अद्नवार्य कर द्दया गया था , ऐसरे समय में अनरेकदों द्हनदू धम्थिक्कदों का आद्वभा्थव हुआ । गुरु रैदास , द्जनहें गुरु िद्वदास भी कहा जाता है , उनमें सरे एक ररे । 12 फरवरी को उनकी जनम द्दवस के अवसर पर पूरा दरेश उनहें याद किरेगा । ततकालीन समय में गुरु रैदास के दूरदृसष््ट युकत नरेत्रदों नरे शासन और सत्ा सरे सीधा संघर्ष करनरे में भयंकर रकतपात के भद्वष्य की ओर दृसष््टपात कर बड़ी चतुराई सरे अपनरे द्हनदू धर्मानुयाद्ययदों एवं ्वजाद्तयदों को अनावशयक मारका्ट सरे बचा द्लया और बाधय होकर , अ्वचछ वयवसाय चर्म-कर्म को समाद्जक रूप सरे अपनातरे हुए इ्लाम को ्वीकार करनरे की द्ववशता को समापत करतरे हुए , उसरे ठुकरा कर द्कसी भी स्थिति में द्हनदू बनरे रहनरे का संदरेश द्दया । ऐसरे में धर्म की रक्ा हरेतु द्नम्नतर परेशरे को भी ्वीकार कर बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के प्रचणड वरेग को संत रैदास नरे असफल कर द्दया ।
महान आतमाओं का जनम और मृतयु नहीं , अद्पतु उनका ” आद्वभा्थव ” और अननत की ओर ” महाप्रयाण ” ही होता है , इसद्लए प्रायः प्राचीन काल के सन्तों की जनम द्तद्र एवं द्तिोधान प्र्रान के द्दन का ठीक-ठीक पता नहीं चलता है । द्फि भी हम जयनती एवं पुणय द्तद्र का
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