Feb 2025_DA | Page 50

पुसतक समीक्षा

अवशय हो गया था , परनतु संत रैदास नरे बलपूर्वक बनाए गए दद्लत समाज में उपस्रत करके स्वाभिमानी दद्लत द्हनदुओं का उतसाहवर्धन करनरे का साहद्सक प्रयास द्कया । जाद्त और कर्म को उच् और नीच सरे अलग परिभाद्षत करतरे हुए वह अपनरे को ्वयं ‘ चमार ’ कहनरे में गर्व करतरे ररे , द्जससरे अनय दद्लतदों के अनदि हीन भावना का जनम न होनरे पाए । अपमान और दयनीय आद्र्थक स्थिति को ईशवि का आशीर्वाद समझकर ्वीकार करनरे और द्कसी भी दशा में इ्लाम नहीं ्वीकार करनरे का उनका सुझाव लोगदों नरे ्वीकार द्कया । द्हनदुओं के स्वाभिमान को जागृत करके संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे द्हनदू धर्म और समाज की सराहनीय सरेवा की और दद्लत द्हनदुओं के मसीहा कहलाए I
पु्तक का सातवां अधयाय सामाद्जक समरसता के पर्याय संत रैदास द्ािा स्पूण्थ द्हनदू समाज के साथ भकत द्शिोमद्ण मीराबाई , महाराणा संग्ाम द्संह , महारानी झाली आद्द को द्दए गए आशीर्वाद पर केंद्रित है । यह अधयाय द्हनदू समाज के सच्चे गुरु संत रैदास , स्पूण्थ द्हनदू समाज में संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास प्रद्तसष्ठत , दद्लतोतरान एवं द्हनदू संगठन के संदरेशवाहक गुरु रैदास , भकत द्शिोमद्ण मीराबाई के गुरु संत रैदास , राजाओं के राजा महाराणा संग्ाम द्संह के पूजय गुरु रैदास , राणा सांगा की महारानी झाली के आराधय गुरु रैदास , मुसलमान
फकीर सदना द्ािा गुरु रैदास का द्शष्यतव ्वीकार एवं सामाद्जक समरसता के प्रथम प्रणरेता गुरु रैदास जैसरे द्वषयदों पर केंद्रित है । डा . सोनकर शा्त्री नरे द्लखा है द्क संत रैदास जी उच्कोद््ट के द्वद्ान एवं सनातन द्हनदू धर्म के प्रचारक ररे । फकीर सदना उनको इ्लाम धर्म का अनुयायी बनाना चाहता था । उसनरे अललाह के नाम पर इस्लामिक एकेशविवाद की प्रशंसा की Iलरेद्कन संत रैदास द्ािा द्कए गए प्रद्तकार के बाद फकीर सदना नरे उनके सामनरे नतम्तक हो गया और उनका द्शष्यतव ग्हण कर द्लया । इसी तरह संत रैदास और द्शष्या मीराबाई की गुरु-द्शष्य पि्पिा भारतीय भसकत साद्हतय में एक उच्कोद््ट का उदाहरण प्र्तुत करती है । महारानी झाली उनसरे इतना अद्धक प्रभाद्वत थीं द्क उनका द्शष्यतव ग्हण करनरे के बाद सरे उनको अपना आराधयदरेव माननरे लगी । उनकी आराधना सरे संत रैदास भी इतना सन्तुष्ट हुए द्क उनको अपनरे द्लए ‘ काशया मरणात् मुक्तः ’ का भी धयान नहीं रहा और वह द्चत्ौड़ में रहतरे हुए ही ” महासमाद्ध ” को प्रापत हुए I
पु्तक के आठवें एवं अंद्तम अधयाय में अपराजरेय संत गुरू रैदास की अपिद्मत उपादरेयता को बताया गए है । इस अधयाय में संत रैदास एवं फकीर सदना का शा्त्रार्थ , काशी निरेश द्ािा गुरु रैदास की परीक्ा , मीराबाई का अ्टल द्वशवास , मुगल शासन में चाणडाल जादूगर की उपाद्ध ,
कु्भ पर्व में गुरु रैदास की कुद््टल लोगदों द्ािा परीक्ा , काशी के ब्ाह्मणदों सरे गुरु रैदास का शा्त्रार्थ , संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास के समक् द्सकनदि लोदी नतम्तक एवं संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास की वर्तमान समय में उपादरेयता को िरेखांद्कत द्कया गया है । तथ्यों का अन्वेषण करतरे हुए डा . सोनकर शा्त्री नरे बताया है द्क मधय युगीन द्वदरेशी इस्लामिक-उतपीड़न काल में एक निर्भीक द्संह की तरह गुरु रैदास नरे पृथवी मां को प्रणाम करतरे हुए पदार्पण द्कया । रैदास नरे द्हनदू एवं अद्हनदू-पंथ को अपनानरे वालदों , दोनदों के समक् द्हनदू धर्म एवं द्हनदू जीवन पद्धद्त की लोकोपयोगी गुणवत्ा के असंखय एवं अकाट्य उदाहरण प्र्तुत द्कया और समझाया द्क द्वशव की सम्त संस्कृद्तयदों को केवल द्हनदू संस्कृद्त एवं यहां की संत पि्पिा सरे ही उर्जा प्रापत होती है । द्हनदू ज्ान ही महान है और इसी ज्ान के स्मान में सारा संसार नतम्तक है । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे इस भ्रम का खणडन द्कया द्क धर्म का स्बनध द्कसी द्वशरेष जाद्त अथवा समाज सरे है । उन्होंनरे कहा था द्क स्पूण्थ संसार एक ही समाज का दूसरा नाम है और सभी समाज में केवल मानव धर्म को ही माननरे वालरे रहतरे हैं ।
पु्तक में संत रैदास की वाद्णयदों को भी प्र्तुत द्कया गया है । संत रैदास नरे वाद्णयदों के माधयम सरे जो उपदरेश स्पूण्थ समाज को द्दए , वह भसकत की सच्ी भावना , समाज के वयापक द्हत की कामना तथा मानव प्ररेम सरे ओत-प्रोत हैं । उनके भजनदों तथा उपदरेशदों सरे लोगदों को ऐसी द्शक्ा द्मलती है , द्जससरे उनकी शंकाओं का सनतोषजनक समाधान हो जाता है । इसीद्लए संत रैदास की वाद्णयां आज भी स्पूण्थ समाज के द्लए उपयोगी हैं । स्पूण्थ पु्तक संत रैदास के स्पूण्थ वयसकततव को द्हनदू समाज के समक् रखती है , वह आम जनमानस के कई प्रश्नदों का तथयातमक आधार पर उत्ि दरेनरे में सक्म है I
( नोट- उपरो्त पुसतक निम्नलिखित
मोबाइल नंबर एवं ई-मेल पर संपर्क करके प्ापत की जा सकती है- मोबाइल न . 8700313767
ईमेल-ckumar0629 @ gmail . com )
50 iQjojh 2025