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कवर स्टोरी

और वीर सावरकर नरे ही द्हनदू समाज को एकजु्ट करके प्राचीन भारत की भूद्म की अस्मता को बचायरे रखनरे का कार्य द्कया । इस स्बनध में डा . बालककृष्ण द्शवराम मुंजरे के योगदान को कभी भी द्हनदू समाज नकार नहीं सकता है ।
वामपंलर्यों के िलर्यार हैं राहुल गांधी
कांग्रेस के नरेताओं सरे अगर पूछा जाए द्क डा . बालककृष्ण द्शवराम मुंजरे कौन ररे ? तो शायद उनहें इसका उत्ि ढूंढनरे में काफी समय लगरेगा । लरेद्कन डा . मुंजरे दरेश के एक ऐसरे ्वतंत्रता सरेनानी
ररे , द्जनकी द्हनदू महासभा के गठन में अहम भूद्मका थी । 1927 में अद्खल भारत द्हनदू महासभा के अधयक् भी रहरे । उनका जनम 1872 में मधय प्रानत ( वर्तमान में छत्ीसगढ़ ) के द्बलासपुर में हुआ । 1898 में मु्बई में ग्रांट मरेद्डकल कलॉलरेज सरे मरेद्डकल द्डग्ी ली । सैनय जीवन में उनकी गहरी रुद्च के चलतरे वो सरेना में कमीशन अद्धकारी बन गए । सरेना की द्चद्कतसा शाखा उन्होंनरे दक्षिण अफ्ीका में बोअर युद्ध में भाग द्लया । जब 1907 में सूरत में कांग्रेस के अद्धवरेशन में नरम दल और गरम दल के बीच द्विोधाभास पैदा हुआ , उस समय डा . मुंजरे
नरे बाल गंगाधर द्तलक का समर्थन द्कया ।
कांग्रेस नरेताओं को शायद ही पता होगा द्क डा . मुंजरे का डा . भीमराव आंबरेडकर सरे काफी संपर्क था । डा . आंबरेडकर नरे द्हनदू महासभा की लगातार पैरवी की । यहां पर धयान दरेनरे लायक द्बंदु यह भी है द्क एक तरह जहां डा . आंबरेडकर द्हनदू महासभा के वकील के रूप में कार्य करतरे रहरे , वहीं वीर सावरकर द्ािा दद्लत द्हतदों को लरेकर चलाए गए तमाम काय्थरिमदों एवं आंदोलन में डा . आंबरेडकर ्वयं सहभागी बनरे । वामपंथी लरेखकदों नरे डा . आंबरेडकर को द्हनदू द्विोधी बना कर इस तरह सरे प्र्तुत द्कया , द्जससरे आम
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