और पूजा-पाठ आद्द के कर्म सरे प्रद्तिोद्धत करके चमड़े का काम करनरे पर द्ववश द्कया गया । यह उतपीड़न गुरु रैदास की इस उसकत सरे द्वद्दत हो जाता है- ” चमरठा गांठ न जनई , लोग गठावै पनहीं ”। और यहां तक द्क उनके हाथ-पांव बांधकर जरेल में डाल द्दया गया तथा उनको अन्न-जल भी दरेना बनद कर द्दया गया । परनतु इस उतपीड़न के फल्वरूप सुलतान द्सकनदि लोदी की यह दशा हुई द्क उसरे प्रत्येक ्रान पर संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास दृसष््टगोचर होनरे लगरे , द्जससरे वह भयभीत हो गया और अपनरे अद्नष््ट की आशंका सरे उसनरे संत रैदास को जरेल सरे मुकत कर द्दया । गुरु रैदास के शाप के कारण लोदी वंश का बहुत जलद ही अनत हो गया । इस वंश के बाद द्दलली की गद्ी सूनी हो गई और उस पर मुगलदों का आद्धपतय हो गया था । द्सकनदि लोदी गुलाम वंश का असनतम शासक था ।
संत रैदास को इसका पूर्वानुमान था द्क
धर्मानध द्वदरेशी मुस्लम शासक को द्कसी न द्कसी द्दन दुद्द्थन भी दरेखनरे पड़ेंगरे । अतएव उन्होंनरे उसके प्रत्येक धाद्म्थक उतपीड़न को ्वीकार द्कया । वह इसद्लए भी उस पीड़ा को सहतरे गए कयदोंद्क उनकी धाद्म्थक दृढ़ता पर द्वशाल द्हनदू धाद्म्थक समाज भी आद्धृत था । संत रैदास की धाद्म्थक दृढ़ता इसी हरेतु सरे थी भी अनयरा उनके धर्मानतरित होतरे ही द्हनदुओं की एक द्वशाल जनसंखया का धर्मानतिण हो गया होता ।
द्सकनदि लोदी जैसरे द्वदरेशी मुस्लम शासन- काल में जहां द्हनदुओं का खून एक क्ण में इ्लाम न ्वीकार करनरे पर बहा द्दया जाता था और द्जससरे द्हनदू समाज कांपनरे लगा था , उस पर गुरु रैदास नरे निर्भीक होकर द्सकनदि लोदी के सामनरे कहा था द्क वह मृतयु सरे नहीं डरतरे । इसका प्रभाव द्हनदुओं पर पड़ा । उनमें दृढ़ता आई और वह इ्लाम को अ्वीकार करनरे लगरे । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे समाज की इस कमजोरी को दूर
द्कया । इसका प्रभाव यह हुआ द्क इ्लामीकरण की आंधी को रोका जा सका ।
ततकालीन समाज में द्नध्थनदों का कोई साथ नहीं दरेता था । ऐसरे द्हनदुओं सरे धनी-वर्ग के द्हनदू भी दूरी बनाए रखतरे ररे । इस कमजोरी को भांपकर मुस्लम शासकदों नरे द्हनदुओं को कर आद्द लादकर तथा उनकी स्पद्त् को दणड द्दए जानरे के बहानरे छीन कर , उनको द्नध्थन-कंगाल बनानरे का काम द्कया था । युद्धबसनदयदों के द्वषय में अफवाहें फैलाई गई थीं द्क सभी बनदी इ्लाम ्वीकार कर चुके हैं । द्हनदू लोग द्हनदू बंद्दयदों सरे इस आधार पर भी दूरी रखनरे लगरे । गुरु रैदास नरे समाज को आगाह द्कया द्क वह द्मथयापवाददों पर धयान न दें और द्ववश होकर बनदी अथवा मुसलमान बनाए गए द्हनदुओं के प्रद्त दुर्भावनापूर्ण वयवहार न करके उनको अपनाए रखें ताद्क द्हनदू जनसंखया में ह्ास न होनरे पाए । उनकी जाद्त के लोगदों नरे उनका अनुकरण द्कया और एक भी चर्मकार जाद्त ( चंवर जाद्त ) के वयसकत नरे इ्लाम ्वीकार नहीं द्कया ।
द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे उस समय द्निाकर पूजा को प्रचारित द्कया और कहा द्क मुस्लम आतताइयदों सरे जान बचातरे हुए अपनी पूजा-पाठ की क्रिया को जारी रखनरे का यह सरल उपाय है द्क सभी द्हनदू अपनी सनातन पूजा को द्निाकर पूजा में परिवद्त्थत करें और द्बना रकतपात के अपनरे आराधय को समद्प्थत हुआ करें । संत रैदास नरे यह भी प्ररेरणा दी थी द्क सत्ा सरे सीधा संघर्ष करके द्कसी को अपनी जान संक्ट में डालनरे की आवशयकता नहीं है । इसके द्लए आतमबल को द्वकद्सत करना और प्रदत् कायथों को करतरे जाना ही श्रेयष्कर है । इसमें कोई द्कसी के भी कार्य का उपहास न किरे कयदोंद्क अंधी मानवता वालरे मुस्लम आरिांता शासक-वर्ग की ओर सरे कभी भी द्कसी के भी द्लए कार्य परिवर्तन का आदरेश जारी हो सकता था । काशी में अवतीर्ण और द्चत्ौड़ में द्तिोद्हत होनरे वालरे संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे अपनरे चंवर वंश का नाम गौरवासनवत द्कया , काशी नगरी की ख्याति पि्पिा को बनाए रखा । �
iQjojh 2025 11