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हिन्दू धर्म रक्षक

संत रविदास

डा . विजय सोनकर शास्त्री

आज संसञार में संस्कृति एवं उस पर आधञारित सभयतञा के उदगम के संदर्भ में व्यापक चचञा्य हो रही है । संस्कृति एवं सभयतञा के सञाथ , धर्म को सर्वदञा अलग कर नए ढ़ंग से वि्िेवषत करने कञा प्रयञास होतञा है । संस्कृति एवं सभयतञा कञा आधञार तो धर्म ही है । तब , यह कैसे समभि है कि संस्कृति एवं सभयतञा-संघर्ष को धर्म से अलग कियञा जञा सके , कैसे ? जो लोग इस्लाम अथिञा ईसञाईयत को धर्म समझने की भूल कर रहे हैं , उनहें समझ लेनञा चञावहए कि धर्म तो धर्म है , धर्म की नींव पर संस्कृति एवं सभयतञा के सञाथ अन्यानय मतमतञानतर कञा आधञार होतञा है । धर्म कञा तञातपय्य मञानव के कुछ मूलभूत चरित्रा यञा सिभञाि से है । धैर्य , क्मञा , तपस्या , चोरी न करनञा , पवित्तञा , इषनद्रय-नियंत्ण , आधयञाषतमक ज्ञान , विद्या , सतय तथञा अहिंसञा , धर्म के यही दस तति हैं । यही हिनदू भी है यञावन हिनदू धर्म ।

गुरु रविदञास , जिनहें संत रैदञास के नञाम से भी जञानञा जञातञा है , एक ब्राह्मण सनत थे । आज भी उनके अनुयञायी ” रैदञासी मत ” के पोषक के रूप में समपूण्य उत्र भञारत में फैले हुए हैं । रैदञासी मत एक उपञासनञा पद्धति है , जिसे गुरु रैदञास ने अपने जीवनकञाि में प्रतिपञावदत कियञा । प्रञाचीन कञाि में विदेशी इस्लामिक आक्रान्ताओं , लुटेरों द्वारञा डरञा-धमकञाकर अत्याचञार तथञा उतपीड़न करके बलपूर्वक हिनदू धर्म रक्क योद्धञाओं को असिचछ वृवत् में लगञाने एवं उनहें दलन कर दलित बनञाने कञा रिम प्रञारमभ कियञा गयञा थञा ।
6 iQjojh 2024